डा. रश्मि दुबे जिन दरख़्तों की जड़ें गहरी रहीं हैं आंधियों के बाद भी ठहरी रहीं हैं होती है शहादत देश के नाम पर सरकारें हमेशा ही बहरी रहीं हैं मूल में बैठा नाग जो आतंक का क्या करें जो मार बैठा इस डंक का हवायें भी वहां की जहरी रहीं हैं सरकारें हमेशा ही बहरी रहीं हैं नाम जन्नत दिया इश्क के दीवानों ने दोजख़ बनाया जिहादी मेहमानों ने अपनों के लिये ऊंची दहरी रही है सरकारें हमेशा ही बहरी रही है वतन पर कुर्बांन होते हैं लोग…
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आदमी कैसे जिये जीना भी मुश्किल हो गया
डॉ रश्मि चरागों का जलाना नहीं आसान होता कि रूठों को मनाना नहीं आसान होता पहाड़ों पर पहुंचना है मुमकिन आज फिर भी मगर रस्ते बनाना नहीं आसान होता कि लहरें चीर कर के चले जाते हैं सारे किनारे रोक पाना नहीं आसान होता ग़मों का रोज ही हम रहे रोते हैं रोना गमों में मुस्कुराना नहीं आसान होता खुदाई पर भरोसा सभी को आज भी है निरा इंसान होना नहीं आसान होता
Read Moreदास्तां—-
पूनम झा *** कुछ दास्तां होती ऐसी जिसे,हम दिल में छुपाये रहते हैं आंचल में खुशियां भर कर, हम मुस्कुराया करते हैं क्यूं बनना खुदगर्ज हमें, दुनिया तो सबकी अपनी है लालच की बुरी बला से, दूर रहा हम करते हैं लोग क्यूं दौलत के पीछे, सुख चैन अपना खोते हैं छोटी सी है जिंदगी, सबको खुश रहने को कहते हैं बेचैन क्यों होता है मानव, दूर दृष्टि तो खोले क्या जाता है साथ में अपने,बस इतना ही हम कहते हैं मन की सुंदरता को बांटो, यही सदा रह जाएगा…
Read Moreजिंदगी भी खूब —-
जिंदगी भी खूब मसखरी करती और हम भी रहते खूब मुस्कुराते अब न जमीं से उठने की तलब रही और न आसमां के तलबगार ही रहते जहर भी बेअसर रहा हम पर अब तो यादों के कहर बरसते तेरी पोशीदा नजरें ढूंढती अब भी हम रूठ कर तुमसे दूर दूर रहते खुशियां तो खुशियां है जनाब हम औरों के गम के भागीदार बन जाते जिंदगी को समझें ऐसी हमारी औकात कहां खामोशियों के आगोश में सिमट के रह जाते।। पूनम झा
Read Moreमेरे अल्फ़ाज़..
कीर्ति सिंह गौड़ वो गलियाँ छूट गईं जहाँ बचपन की चौखट पर जवानी की बाट जोहते थे हम सावन की बूँदों में भीग कर गीली सौंधी मिट्टी में सपनों के बीज बोते थे हम सालों साल उस मिट्टी को नहीं खोदा की उसमें सपने पल रहे होंगे कि अचानक एक दिन वो गलियाँ छूट गईं और वो बचपन की चौखट रूठ गई काश एक बार उस चौखट पर माथा लगाया होता वापस नहीं जा पाऊँगी वहाँ इस ग़म ने नहीं सताया होता और जब जाना हुआ उस ओर तो गलियाँ…
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