जिंदगी भी खूब मसखरी करती
और हम भी रहते खूब मुस्कुराते
अब न जमीं से उठने की तलब रही
और न आसमां के तलबगार ही रहते
जहर भी बेअसर रहा हम पर
अब तो यादों के कहर बरसते
तेरी पोशीदा नजरें ढूंढती अब भी
हम रूठ कर तुमसे दूर दूर रहते
खुशियां तो खुशियां है जनाब
हम औरों के गम के भागीदार बन जाते
जिंदगी को समझें ऐसी हमारी औकात कहां
खामोशियों के आगोश में सिमट के रह जाते।।
पूनम झा
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