दास्तां—-

पूनम झा *** कुछ दास्तां होती ऐसी जिसे,हम दिल में छुपाये रहते हैं आंचल में खुशियां भर कर, हम मुस्कुराया करते हैं क्यूं बनना खुदगर्ज हमें, दुनिया तो सबकी अपनी है लालच की बुरी बला से, दूर रहा हम करते हैं लोग क्यूं दौलत के पीछे, सुख चैन अपना खोते हैं छोटी सी है जिंदगी, सबको खुश रहने को कहते हैं बेचैन क्यों होता है मानव, दूर दृष्टि तो खोले क्या जाता है साथ में अपने,बस इतना ही हम कहते हैं मन की सुंदरता को बांटो, यही सदा रह जाएगा…

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जिंदगी भी खूब —-

जिंदगी भी खूब मसखरी करती और हम भी रहते खूब मुस्कुराते अब न जमीं से उठने की तलब रही और न आसमां के तलबगार ही रहते जहर भी बेअसर रहा हम पर अब तो यादों के कहर बरसते तेरी पोशीदा नजरें ढूंढती अब भी हम रूठ कर तुमसे दूर दूर रहते खुशियां तो खुशियां है जनाब हम औरों के गम के भागीदार बन जाते जिंदगी को समझें ऐसी हमारी औकात कहां खामोशियों के आगोश में सिमट के रह जाते।। पूनम झा

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