दास्तां—-

पूनम झा
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कुछ दास्तां होती ऐसी जिसे,हम दिल में छुपाये रहते हैं
आंचल में खुशियां भर कर, हम मुस्कुराया करते हैं
क्यूं बनना खुदगर्ज हमें, दुनिया तो सबकी अपनी है
लालच की बुरी बला से, दूर रहा हम करते हैं
लोग क्यूं दौलत के पीछे, सुख चैन अपना खोते हैं
छोटी सी है जिंदगी, सबको खुश रहने को कहते हैं
बेचैन क्यों होता है मानव, दूर दृष्टि तो खोले
क्या जाता है साथ में अपने,बस इतना ही हम कहते हैं
मन की सुंदरता को बांटो, यही सदा रह जाएगा
अहंकार का बीज न बोना, इतनी विनती हम करते हैं
जन्म दिया है ईश्वर ने, फिर कुछ तो सोचा होगा
सुख दुख की सौगात मिली, इसे सर आंखों पर रखते हैं
जिओ पल पल खुश होकर, कल में जीना छोड़ो
निराशा को दूर भगा कर, आशाओं की कामना करते हैं
इंसा से रखो स्नेह का नाता,इंसानियत ही असली गहने है
चलो गरीबों को थोड़ा, हम नि: स्वार्थ मदद करते हैं
बहुत मुश्किलें आती राहों में,हंस कर मंजिल तक जाना है
क्या हुआ जीवन के सफर में, हम पीछे अगर रह जाते हैं
आए हर मुसीबत को, क्यूं न हंस कर गले लगाएं
चट्टानों सा मजबूत बने हैं, बस आगे को बढ़ते जाते हैं।।

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