आदमी कैसे जिये जीना भी मुश्किल हो गया

डॉ रश्मि

चरागों का जलाना नहीं आसान होता
कि रूठों को मनाना नहीं आसान होता
पहाड़ों पर पहुंचना है मुमकिन आज फिर भी
मगर रस्ते बनाना नहीं आसान होता
कि लहरें चीर कर के चले जाते हैं सारे
किनारे रोक पाना नहीं आसान होता
ग़मों का रोज ही हम रहे रोते हैं रोना
गमों में मुस्कुराना नहीं आसान होता
खुदाई पर भरोसा सभी को आज भी है
निरा इंसान होना नहीं आसान होता

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