हर घर तिरंगा अभियान को लेकर आरएसएस पर क्यों उठ रहे हैं सवाल

दिलनवाज़ पाशा
कांग्रेस के नेता जवाहर लाल नेहरू की तिरंगे के साथ तस्वीर साझा कर आरएसएस पर सवाल उठा रहे हैंप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘हर घर तिरंगा’ अभियान की घोषणा की है जिसके तहत देश के 24 करोड़ घरों में 13-15 अगस्त के बीच तिरंगा फहराया जाएगा. ये भारतीय आज़ादी के 75 वर्ष पूर्ण होने पर मनाए जा रहे अमृत महोत्सव के तहत किया जा रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भारतीय जनता पार्टी के मंत्रियों और नेताओं ने सोशल मीडिया पर अपनी प्रोफ़ाइल पिक्चर में तिरंगा लगाया है.
विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की तिरंगा लहराते हुए तस्वीर को प्रोफ़ाइल पिक्चर बनाया है. कांग्रेस के अन्य नेताओं ने भी इसी तस्वीर को लगाया है.
‘हर घर तिरंगा’ अभियान को लेकर एक नया विवाद भी शुरू हो गया है. कांग्रेस ने हिंदुत्ववादी संगठन आरएसएस पर तिरंगा विरोधी होने का आरोप लगाया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं एक आरएसएस स्वयंसेवक रहे हैं और आरएसएस के साथ जुड़ाव और उसके प्रति लगाव को उन्होंने कभी नहीं छुपाया है.
आरएसएस पर निशाना साधते हुए राहुल गांधी ने एक ट्वीट में कहा, “इतिहास गवाह है, ‘हर घर तिरंगा’ मुहीम चलाने वाले, उस देशद्रोही संगठन से निकले हैं, जिन्होंने 52 सालों तक तिरंगा नहीं फहराया.”
हालांकि बातचीत में आरएसएस के प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने इन सभी आरोपों को ख़ारिज किया है और कहा है कि आरएसएस तिरंगे का सम्मान करता है.
भारत सरकार के मंत्रियों और बीजेपी के नेताओं ने तो अपनी प्रोफ़ाइल पिक्चर में तिरंगा लगाया है लेकिन आरएसएस ने अपने आधिकारिक पेज या आरएसएस से जुड़े शीर्ष लोगों ने सोशल मीडिया पर प्रोफ़ाइल तस्वीर में तिरंगे का इस्तेमाल नहीं किया है.राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अपना ध्वज भगवा है और तिरंगे के प्रति आरएसएस के नज़रिए को लेकर सवाल उठते रहे हैं.धार्मिक राष्ट्रवाद के स्कॉलर और दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ा चुके शम्स-उल-इस्लाम ‘हर घर तिरंगा’ अभियान पर बीजेपी और आरएसएस की आलोचना करते हुए कहते हैं कि आरएसएस ने कभी भी तिरंगे को स्वीकार नहीं किया है.
शम्स-उल-इस्लाम कहते हैं, “1925 में अपनी स्थापना के बाद से ही आरएसएस ने हर उस चीज़ से नफ़रत की है जो ब्रितानी हुकूमत के ख़िलाफ़ एकजुट भारतीय संघर्ष का प्रतीक रही है. दिसंबर, 1929 में कांग्रेस ने अपने लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का नारा दिया था और लोगों से हर साल 26 जनवरी को तिरंगा (तब उसमें अशोक चक्र की जगह चरखा हुआ करता था) फहराकर स्वतंत्रता दिवस मनाने का आह्वान किया था. साल 1930 में जब 26 जनवरी आ रही थी तब तत्कालीन सरसंघचालक हेडगेवार ने सभी स्वयंसेवको को राष्ट्रध्वज के रूप में भगवा झंडे की पूजा करने का आदेश देते हुए सर्कुलर जारी किया था.”
शम्स-उल-इस्लाम कहते हैं, “इस सर्कुलर को कभी भी वापस नहीं लिया गया. आरएसएस के सबसे प्रमुख विचारक एमएस गोलवलकर ने 14 जुलाई 1946 को नागपुर में आरएसएस मुख्यालय में गुरु पूर्णिमा पर उपस्थित लोगों को संबोधित करते हुए कहा था, भगवा ध्वज भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है. ये ईश्वर का प्रतीक है और हमारा ये दृढ़ विश्वास है कि एक दिन संपूर्ण राष्ट्र इसी ध्वज को नमन करेगा.”
शम्स-उल-इस्लाम कहते हैं कि जब 15 अगस्त 1947 की पूर्व संध्या जब लाल किले पर तिरंगा फहराने की तैयारी हो रही थी और देश भर में लोग तिरंगा हाथ में लेकर जश्न मना रहे थे तब भी आरएसएस ने तिरंगे का विरोध किया था.
इस्लाम कहते हैं, “14 अगस्त, 1947 को आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र में प्रकाशित एक संपादकीय में कहा गया था- जो लोग भाग्य से सत्ता में आ गए हैं, उन्होंने हमारे हाथों में तिरंगा पकड़ा दिया है लेकिन इसे हिंदू कभी स्वीकार नहीं करेंगे और कभी इसका सम्मान नहीं करेंगे. तीन शब्द अपने आप में अशुभ है और तीन रंगों वाला झंडा निश्चित तौर पर बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा करेगा और देश के लिए हानिकारक साबित होगा.”
शम्स-उल-इस्लाम सवाल करते हैं, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज हर घर तिरंगा अभियान चला रहे हैं. वो स्वयं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहे हैं. तो क्या अब वो संघ के इन विचारों को खारिज करेंगे और इनकी आलोचना करेंगे. क्या वो आरएसएस के प्रमुख विचारक गोलवलकर की पुस्तक विचार नवनीत से उस पाठ को हटवाएंगे जिसमें तिरंगे की आलोचना की गई है?”
आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर इन आरोपों और आलोचना को खारिज करते हैं.
बात करते हुए सुनील आंबेकर ने कहा, “जिस दिन से भारत की संविधान सभा में निर्णय हुआ और विधिवत भारत ने तिरंगे को अपने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया, उस दिन सिर्फ संघ ही क्या वो पूरे देश के लिए तिरंगा राष्ट्रीय ध्वज हो गया. संघ राष्ट्र से जुड़े जितने भी प्रतीक हैं, फिर वो चाहें राष्ट्र ध्वज हों या राष्ट्रगान हों, उनका सम्मान करता है.”
आंबेकर कहते हैं, “संघ का उद्देश्य ही राष्ट्र के लिए है. जब संघ ने संविधान को स्वीकार किया है, देश को स्वीकार किया है तो उससे जुड़ी हर चीज़ को भी स्वीकार किया है. सरसंघचालक मोहन भागवत ने विज्ञान भवन के संबोधन में इस बारे में विस्तार से बताया भी था.”
साल 2002 तक तिरंगा ना लगाने के प्रश्न पर आंबेकर कहते हैं, “2004 तक निजी तौर पर तिरंगा लगने को लेकर कई तरह की पाबंदियां थीं. 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में निर्णय दिया. तब से संघ कार्यालय पर भी राष्ट्रध्वज फ़हराया जा रहा है. इससे पहले भी स्वयंसेवक और कई संस्थाएं तो राष्ट्रध्वज को फहराते ही रहे हैं.”
वहीं, दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और आरएसएस समर्थक प्रोफ़ेसर अवनिजेश अवस्थी कहते हैं, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर घर तिरंगा अभियान का आह्वान किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संघ के स्वयंसेवक हैं. अगर नरेंद्र मोदी ये कर रहे हैं तो इसका सीधा मतलब है कि संघ ये कर रहा है.”
कांग्रेस की आलोचना को खारिज करते हुए अवनिजेश कहते हैं, “कांग्रेस को नरेंद्र मोदी स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता नज़र आते हैं, लेकिन अब वही मोदी हर घर तिरंगा अभियान चला रहे हैं तो कांग्रेस पूछ रही है कि क्या संघ भी ऐसा करेगा. एक तरफ वो कहते हैं कि सरकार की सभी नीतियां संघ से परिचालित होती हैं. और एक तरफ वो ये आलोचना कर रहे हैं. ये विरोधाभासी और कम अक्ल वाली बातें कांग्रेस कर रही है.”
तिरंगे के विरोध को लेकर संघ की आलोचना को खारिज करते हुए अवनिजेश कहते हैं, “संघ ने कभी तिरंगे का विरोध नहीं किया. भारत ने जब तिरंगे को राष्ट्र ध्वज के रूप में स्वीकार किया तो संघ ने भी उसका सम्मान किया. उससे पहले तिरंगे को लेकर जो डिज़ाइन आए थे उनमें से एक में यूनियन जैक तक था. संघ का उससे पहले अपना विरोध था, जो अब नहीं है. हर स्वयंसेवक तिरंगे का सम्मान करता है.”
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने 15 अगस्त 1947 और 26 जनवरी 1950 को अपने नागपुर मुख्यालय में तिरंगा फ़हराया था. इन अपवादों को छोड़ दें तो 2002 तो संघ ने अपने मुख्यालय में तिरंगा नहीं फ़हराया.
26 जनवरी, 2001 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्यालय पर तिरंगा फ़हराने की कोशिश करने के आरोप में तीन युवकों को गिरफ़्तार भी किया गया था. पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक इन सभी को 2013 में बरी कर दिया गया था. राष्ट्रप्रेमी युवा दल के कार्यकर्ताओं बाबा मेंढ़े, रमेश कालंबे और दिलीप चट्टानी ने नागपुर के रेशमबाग स्थित आरएसएस मुख्यालय पर ज़बरदस्ती तिरंगा फ़हरा दिया था.
साल 2002 से पहले संघ कार्यालय में तिरंगा ना फ़हराये जाने की आलोचना को ख़ारिज करते हुए अवनिजेश कहते हैं, “संघ ने कभी तिरंगे का विरोध नहीं किया है. 1950 में भारत सरकार ने प्रतीक और नाम अधिनियम लागू किया था जिसके तहत राष्ट्रध्वज को कैसे और कब फ़हराया जा सकता है इसे लेकर नियम बनाए गए थे. उन नियमों के तहत निजी तौर पर तिरंगा नहीं फ़हराया जा सकता है. नवीन जिंदल के सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि कोई भी व्यक्ति अपने घर पर या दफ़्तर पर तिरंगा फ़हरा सकता है. कांग्रेस अब तिरंगे को लेकर झूठ बोल रही है और बेबुनियाद आलोचना कर रही है.”
गोलवलकर की किताब में तिरंगे की आलोचना को लेकर उठे सवाल को खारिज करते हुए अवनिजेश कहते हैं, “विचार नवनीत (बंच ऑफ़ थॉट्स) भले ही 1966 में प्रकाशित हुई हो लेकिन उसमें गुरु गोलवलकर जी के आज़ादी से पहले दिए गए विचार भी हैं. इसलिए इसे लेकर उनकी आलोचना नहीं की जा सकती है. संघ तिरंगे का सम्मान करता है.”
प्रोफ़ेसर अवनिजेश कहते हैं, “जिस तरह वामपंथियों का लाल ध्वज है और वो तिरंगे पर लाल निशान फहराने का नारा देते हैं, उसी तरह संघ का भगवा ध्वज है और अपने कार्यक्रमों में संघ उसे फहराता है. संघ की सिर्फ़ इसलिए आलोचना नहीं की जा सकती कि उसका ध्वज भगवा है. इस देश में संगठनों और दलों के अपने-अपने ध्वज हैं.”(बीबीसी से साभार )

 

 

 

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