सरकारी स्कूलों में सांसें गिन रही शिक्षा

सरकारी स्कूलों में सांसे गिन रही शिक्षा

News Agency : बिहार में पिछले दशक में साक्षरता वृद्धि की दर 17 फीसदी बढ़कर 63.8 प्रतिशत हो गई है फिर भी यह देश के अन्य राज्यों से कम है। सूबे में 99 फीसदी से अधिक बच्चों का स्कूलों में दाखिला हो चुका है। साक्षरता और शिक्षा के बीच बुनियादी फर्क को समझना होगा। बच्चों के लिए क्वालिटी एजुकेशन जरूरी है। मैट्रिक व इंटर की परीक्षाओं के रिजल्ट पिछले दो साल की तुलना में इस वर्ष बेहतर हुए हैं। इसके मूल में परीक्षा पैटर्न में बदलाव है।परीक्षा पास कराने वाले शॉर्टकट से शिक्षा को बेहतर नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा में हमारे बच्चे टिक नहीं पाएंगे। विश्व बैंक की 2015 की रिपोर्ट बताती है कि गणित व विज्ञान में हमारे विद्यार्थी कमजोर हैं। असर की रिपोर्ट भी यही कहती है। यू-डायस रिपोर्ट 2015-16 मानती है कि अब भी स्कूलों में सुविधाओं का अभाव है। सरकारी स्कूलों में सभी सुविधाओं के बाद भी बच्चे टिक नहीं पा रहे हैं।अधिकांश बीच में ही पढ़ाई छोड़ दे रहे। शिक्षकों के पास पढ़ाने के साथ कई काम हैं। वे बूथ लेबल ऑफिसर हैं। उनके पास जनगणना, जाति गणना का काम है। प्रधान शिक्षक मध्याह्न भोजन के उत्तरदायी हैं। हाईस्कूल व प्लस टू स्कूलों में गणित व विज्ञान शिक्षकों की नियुक्ति की रणनीति 2015 में बनी। ठोस प्रयास नहीं हुए। शिक्षकों की गुणवत्ता के लिए पहल नहीं हुई। राज्य में उच्च शिक्षण संस्थानों की भी भारी कमी है। हालात बता रहे कि सरकारी स्कूलों में शिक्षा सांसें गिन रही है। सरकार जब तक इन बिंदुओं पर गौर नहीं करती, सरकारी स्कूलों में बच्चे टिकेंगे नहीं।शिक्षा की नींंव पर ही किसी राज्य की बुलंद इमारत खड़ी होती है। बड़ी चुनौती इसी नींव को मजबूत करने की है। प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा में सुधार के प्रयास हुए हैं, लेकिन गति इतनी धीमी है कि अपेक्षित नतीजे नहीं मिल रहे हैं। योजनाएं बच्चों को स्कूलों तक तो ले आईं, लेकिन बच्चों को गुणवत्पूर्ण शिक्षा अब भी दूर की कौड़ी है। ध्यान रहे-नया बिहार शिक्षा की बुनियाद पर ही खड़ा होगा।

Related posts

Leave a Comment