सोशल इंजीनियरिंग का शकील फॉर्मूला किसी सवर्ण को पसंद नहीं

राजनीतिक संवाददाता द्वारा
बिहार कांग्रेस की ओर से राजगीर में आयोजित नव संकल्प शिविर में इस पर खूब बहस हुई कि पार्टी को किस ओर ले जाना है। आंदोलन जमीन पर कांग्रेस क्यों नहीं कर पा रही है? कांग्रेस पीड़ितों के आंसू पोछने घटनास्थल पर क्यों नहीं जा पा रही है? वे कौन हैं जो कांग्रेस में रहकर भी राजद के बड़े नेताओं से मिले हुए हैं और कांग्रेस को खोखला कर रहे हैं? ये सारे सवाल हाशिए पर रहे। बिहार कांग्रेस की बागडोर जिन बड़े नेताओं के हाथ में है उनमें पांच-सात नेता सवर्ण जाति से आते हैं। नव संकल्प शिविर में ऐसे नेताओं के भाषण में यह चिंता दिखती रही कि यह बागडोर कैसे आगे भी मजबूती से कायम रहे।
डॉ. शकील अहमद खान सरीखे वरिष्ठ नेताओं ने बुलंदी से यह बात रखी कि कांग्रेस को बिहार की अन्य पार्टियों की तरह सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को अपनाना चाहिए। पिछड़ी जाति, अतिपिछड़ी जाति, दलित, अकलियत को संगठन के उच्च पदों पर आसीन करना चाहिए। संगठन की तस्वीर उस बहुसंख्यक जनता को दिखनी चाहिए जो वोटर्स हैं। डॉ. शकील अहमद खान ने यह मांग रखी तो उसे खारिज करने में बाकी नेता लग गए। श्याम सुंदर सिंह धीरज, अखिलेश सिंह सरीखे नेताओं ने इसे घुमाफिरा कर जातिवाद की राजनीति करार दिया। एक अन्य वरिष्ठ नेता ने तो यहां तक कह दिया कि नेतृत्व के लिए बोल्डनेस जरूरी है और एक-दो बार विधायक बन जाने से बोल्डनेस नहीं आ जाता। बता दें इस शिविर में वे राजेश राम भी मौजूद थे जिन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाने के लिए नाम का प्रस्ताव कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्त चरण दास ने सोनिया गांधी को भेजा है। राजेश राम ने कांग्रेस नव संकल्प शिविर में क्या महसूस किया होगा वे बेहतर बता सकते हैं। ओवरऑल यही दिखता रहा कि जो भी सवर्ण नेता हैं और ऊंचे पदों पर जिन्हें बोलने का मौका मिला वे सवर्ण लीडरशिप का समर्थन करते रहे। अपने-अपने जाति-वर्ग में सभी बंटे हुए दिखे। यह साफ हो गया की अध्यक्ष पद के लिए दलित नेता राजेश राम की राह आसान नहीं होने वाली है।
कांग्रेस के इस शिविर में बुधवार को चर्चा के केन्द्र में जो दूसरी बात रही वह यह कि राजद से कांग्रेस को अब गठबंधन नहीं करना चाहिए और अकेले दम पर ताकत बढ़ानी चाहिए। हां उन विधायकों ने इस बात का जरूर विरोध किया जिन्हें लगता है कि वे राजद के वोट बैंक से जीत कर ही विधायक बने हैं। पहले दिन में शिविर का आधा समय राजद और कांग्रेस के रिश्ते ने ले लिया। दिलचस्प यह कि इस बीच अखिलेश सिंह ने राजद-कांग्रेस गठबंधन पर कुछ नहीं कहना ही मुनासिब समझा।
कांग्रेस की सोशल इंजीनियरिंग पर नजर डालें तो जिलाध्यक्षों में 25 जिलाध्यक्ष सवर्ण हैं, अतिपिछड़ा 2, जबकि वैश्य एक भी नहीं है। पार्टी में अध्यक्ष पद सवर्ण के पास है। चार कार्यकारी प्रदेश अध्यक्षों में से दो सवर्ण, एक दलित और एक मुस्लिम हैं। विधायक दल के नेता सवर्ण हैं। कांग्रेस कंपेनिंग कमेटी के चेयरमैन भी सवर्ण हैं। यानी प्रदेश स्तर के सात शीर्ष पदों में पांच सवर्ण के पास हैं, जिनमें तीन भूमिहार, एक राजपूत और एक ब्राह्मण हैं। पांच वर्षों में तीन बार विधान परिषद व राज्यसभा भेजने का मौका पार्टी को मिला तो पार्टी ने दो सवर्ण को उच्च सदन भेजा। राज्य सभा एक सवर्ण को भेजा। विधान सभा चुनाव 2000 में 70 सीटों पर पार्टी ने चुनाव लड़ा और उसमें 15 रिजर्व थीं। शेष 55 सीटों में से 33 सीटों पर सवर्ण को उतारा था।

जो नीति कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय सदाकत आश्रम में बनती रही या यहां से बड़े नेता जो संदेश देते रहे उसे अब तक जमीन पर नहीं उतारा गया। जनता के मुद्दों पर लगातार संघर्ष करेंगे, आंदोलन करेंगे का नारा बड़ा नेता देते हैं और जमीन पर इसे उतारने में कांग्रेस नाकाबिल साबित हो जाती है। वही सब आदर्श वाली बातें राजगीर में भी हुईं। भाषण दीजिए, सुनिए, भंडारा का आनंद लीजिए और जाइए ! कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता आसित नाथ तिवारी से भास्कर ने बात की। उन्होंने कहा कि किसी भी राजनीतिक दल का कार्यक्रम होता है तो उसमें मतभिन्नता होती ही है और यहीं से आगे का रास्ता निकलता है। यह मतभेद हो सकता है पर गतिरोध नहीं। अलग-अलग विचारों से ही तो राजनीति का गुलदस्ता बनता है। राजगीर शिविर बिहार कांग्रेस को काफी मजबूत करेगा, यह आने वाले समय में आपको दिख जाएगा।

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