आजादी की लड़ाई में भी रांची अपर बाजार का बड़ा योगदान

विशेष संवाददाता द्वारा
रांची. झारखंड में सबसे बड़ी कारोबार की थोक मंडी रांची का अपर बाजार (Upper Bazaar) इन दिनों सुर्खियों में है. 400 से ज्यादा छोटी बड़ी गलियों वाले अपर बाजार की पहचान महज रांची नगर निगम की कार्रवाई तक सीमित नहीं है. बल्कि दिल्ली के चांदनी चौक की तरह ही इसके कारोबार का इतिहास करीब 200 साल पुराना है. झारखंड की सबसे बड़ी थोक मंडी रांची का अपर बाजार पिछले कुछ दिनों से लगातार रांची नगर निगम के निशाने पर है. लेकिन, 200 साल पुराने इस बाजार में अंग्रेजों के घोड़े के टाप की आवाज भी दबी है और बाहर से आने वाले कारोबारियों के पदचिन्हों के निशान भी यहां मौजूद हैं.
करीब 80 साल के कारोबारी कमल केडिया अपर बाजार के इतिहास के सवाल पर बेहद उत्साहित हो उठते हैं.‌ वे बताते हैं कि 1912-13 में रांची तक रेल लाइन नहीं पहुंची थी. तब मुरी स्टेशन से ही ट्रेनें गुजरती थी.‌ राजस्थान और कोलकाता के कारोबारी फुसफुस गाड़ियों से रांची पहुंचते थे और सामान लेकर वापस मुरी लौट जाते थे. ‌सौ साल पहले चलने वाली फुसफुस गाड़ियां दरअसल एक बस की तरह होती थी, जिसका इंजन कोयले से चलता था.
मारवाड़ी शिक्षा ट्रस्ट के ट्रस्टी विश्वनाथ जी नरसरिया बताते हैं कि करीब 400 से ज्यादा गलियों वाले अपर बाजार का विस्तार 200 साल पहले रांची के शहीद चौक से लेकर रातू रोड के कब्रिस्तान तक होता था. उस समय अपर बाजार ऊपर बाजार के नाम से जाना जाता था और इस बाजार में उस समय करीब 150 दुकानें हुआ करती थी जिसमें ज्यादा दुकान कपड़े और खाने-पीने और राशन से जुड़े होते थे. स्थानीय स्तर पर उस समय सबसे ज्यादा कारोबार डालटेनगंज, पुरुलिया, बांकुरा और रामगढ़ से होता था. उस समय अंग्रेज अपनी जरूरत का सामान और टैक्स वसूलने के लिए अपर बाजार की गलियों में घोड़े से आया करते थे. ‌दरअसल करीब 100 साल पहले रांची जिला नहीं था और उस समय लोहरदगा जिला हुआ करता था.
75 साल के बुजुर्ग माहेश्वरी सभा रांची के अध्यक्ष शिवशंकर साबू ने अपने पिता से सुनी बातों को याद कर बताया कि सिर्फ कारोबार ही नहीं बल्कि आजादी की लड़ाई में भी रांची की अपर बाजार का एक बड़ा योगदान रहा है. 1913 में महात्मा गांधी, जमुना लाल बजाज और राम मनोहर लोहिया के आह्वान पर रांची और कोलकाता में आर्थिक योगदान के लिए मारवाड़ी रिलीफ सोसाइटी की स्थापना की गई थी. 200 साल पहले यहां कारोबार को लेकर मारवाड़ियों ने ही अपर बाजार को अपना ठिकाना बनाया था. तब उस समय भीमराज वंशीधर मोदी, चुन्नीलाल गणपत राय बुधिया, अर्जुन दास मुरलीधर, लक्ष्मी नारायण और दीवान कुंजलाल कन्हैया लाल जैसे कारोबारियों ने यहां अपनी जड़ें जमाने शुरू की थी. ‌ अपर बाजार की सबसे पुरानी गलियों में बूचड़ गली हुआ करती थी, जो बाद में बूचड़ों के हट जाने के बाद उसका नामाकरण भगवत साहू लेन पर किया गया. ‌ उसके बाद सोनार पट्टी, रंगरेज गली और जेजे रोड भी करीब 200 साल पुरानी गलियां हैं.
कारोबारी उमाशंकर साबू बताते हैं कि रांची में सबसे पुरानी जेल अपर बाजार के बेस्ट मार्केट में ही बनाई गई थी. उस समय कैदियों को इसी जेल में रखा जाता था. लेकिन, आज जेल की उस जगह पर कारोबारियों की दुकानें हैं. ‌करीब डेढ़ सौ साल पहले कल्लू नाम के एक ट्रैवल एजेंट की अपर बाजार में खूब चलती थी. ‌अपर बाजार और आसपास के इलाके में कल्लू एजेंट के इशारे पर ही तमाम गाड़ियां चलती थी. कारोबारी बताते हैं कि उस दौर में व्यापार में लिखा पढ़ी नहीं होती थी, बल्कि सब कुछ जुबानी भरोसे पर चलता था. 70 साल पहले अपर बाजार की दुकानों में टेलीफोन आया, जिसके बाद संपर्क के जरिए कारोबार का फैलाव शुरू हुआ

Related posts

Leave a Comment