विशेष प्रतिनिधि द्वारा
बस्तर : बस्तर क्षेत्र की हसीन वादियों में स्तिथ है, दन्तेवाड़ा का प्रसिद्ध दंतेश्वरी मंदिर। देवी पुराण में शक्ति पीठों की संख्या 51 बताई गई है । जबकि तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। जबकि कई अन्य ग्रंथों में यह संख्या 108 तक बताई गई है। दन्तेवाड़ा को हालांकि देवी पुराण के 51 शक्ति पीठों में शामिल नहीं किया गया है लेकिन इसे देवी का 52 वा शक्ति पीठ माना जाता है। मान्यता है की यहाँ पर सती का दांत गिरा था इसलिए इस जगह का नाम दंतेवाड़ा और माता क़ा नाम दंतेश्वरी देवी पड़ा। दंतेश्वरी मंदिर शंखिनी और डंकिनी नदीयों के संगम पर स्तिथ हैं। दंतेश्वरी देवी को बस्तर क्षेत्र की कुलदेवी का दर्ज़ा प्राप्त है। इस मंदिर की एक खासियत यह है की माता के दर्शन करने के लिए आपको लुंगी या धोति पहनकर ही मंदीर में जाना होगा। मंदिर में सिले हुए वस्त्र पहन कर जानें की मनाही है।
और कल्ह विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा का महत्वपूर्ण विधान जोगी बिछाई की रस्म रविवार की देर शाम सिरहासार भवन में पूरी हुई। बीते 611 सालों से लगातार चली हा रही परंपरा के अनुसार बड़ेआमावाल गांव के रघुनाथ नाग इस साल चौथी बार जोगी बनकर साधना में बैठे हैं। साधना में बैठने से पहले उन्होंने विधि-विधान से मावली माता की पूजा की, जिसके बाद वे गाजे-बाजे के साथ सिरहासार भवन स्थित साधना स्थल पहुंचे। बताया जाता है कि रघुनाथ अगले पूरे 9 दिनों तक 4 फीट गहरे गड्ढे में बैठकर साधना में लीन हो जाएंगे। ऐसा माना जाता है कि 9 दिनों की साधना के दौरान जोगी निराहार रहते हैं और क्षेत्र के सुख-समृद्धि की कामना करते हैं। इस दौरान बस्तर दशहरा समिति के पदाधिकारी व सदस्य भी मौजूद रहे। पुरातन परंपरा के मुताबिक बस्तर ब्लॉक के ग्राम बड़ेआमावाल के जोगी परिवार के वंशज ही जोगी के रूप में पूरे 9 दिनों तक साधना में बैठते हैं। रविवार की शाम साधना में बैठने से पहले रघुनाथ को मांझी-चालकी व पुजारियों की मौजूदगी में नए कपड़े पहनाए गए।
इसके बाद गाजे-बाजे के साथ एक बड़े कपड़े का पर्दा बनाकर इसकी आड़ में उन्हें मावली माता मंदिर ले जाया गया। मंदिर में पूजा कर उन्होंने तलवार की पूजा की। इसके बाद वही तलवार लेकर सिरहासार भवन लौटे। पुजारी की प्रार्थना के बाद जोगी 9 दिनों के लिए साधना में लीन हो गए। साधना काल में जोगी की सेवा के लिए बड़ेआमावाल के 20 से ज्यादा ग्रामीण यहां मौजूद हैं। ऐसी मान्यता है कि जोगी की साधना से देवी प्रसन्न होती हैं और निर्विघ्न रूप से बस्तर दशहरा मनाने का आशीर्वाद देती हैं। जोगी बिठाई की रस्म को पूरा करने से पहले रघुनाथ ने शनिवार को परिवार के लोगों के साथ ही अपने पूर्वजों का तर्पण किया और फिर वे विधान में शामिल हुए। रघुनाथ बताते हैं कि हर साल उनके परिवार से ही सदस्य इस विधान को पूरा करते हैं। पिछले साल उनके चचेरे भाई दौलत नाग ने विधान को पूरा किया था।
बस्तर दशहरा के फूल रथ की परिक्रमा सोमवार से शुरू होगी। रथ परिक्रमा 21 अक्टूबर तक जारी रहेगी। फूल रथ को खींचने चोलनार के ग्रामीण पहुंच चुके हैं। इससे पहले रविवार की देर रात तक रथ कारीगर रथ को खड़ा करने जुटे रहे। उन्होंने बताया कि सोमवार की दोपहर तक रथ निर्माण पूरा कर लिया जाएगा। इसके बाद शाम 6 बजे से मावली माता मंदिर से रथ परिक्रमा शुरू होगा। यहां से रथ सिरहासार चौक होते हुए गोल बाजार चौक से गुरूनानक चौक के रास्ते माईं दंतेश्वरी मंदिर पहुंचेगा
दूसरी ओर शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो गई है। दंतेवाड़ा में स्थित बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी की पहले दिन विशेष पूजा अर्चना की गई। सुबह से ही मंदिर में भक्तों का तांता लगना शुरू हो गया है। अनुमान है कि इस साल लाखों की संख्या में भक्त देवी के दरबार पहुंचेंगे। माता के दरबार में इस साल करीब 10 हजार मनोकामना ज्योत भी जलाए गए हैं।
दंतेवाड़ा जिला प्रशासन और मंदिर समिति के सदस्यों ने पद यात्रियों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए सुकमा, बस्तर और बीजापुर मार्ग में कई सुविधा केंद्र खोले हैं। यहां मेडिकल स्टाफ की भी ड्यूटी लगाई गई है। विभिन्न सामाजिक संस्था के साथ मिलकर प्रशासन ने यह व्यवस्था की है।
इन मार्गों से पदयात्रियों का आना शुरू हो गया है। रविवार को नवरात्र के पहले दिन गर्भगृह से लेकर मंदिर के बाहर तक भक्तों की जबरदस्त भीड़ है।
बस्तर की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी का दरबार दुल्हन की तरह सजाया गया है। प्रशासन ने मंदिर को रंगीन झालरों से डेकोरेट किया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि, इस साल भक्तों की संख्या दोगुना हो सकती है। भक्तों की आस्था का ख्याल रखते हुए मंदिर में बेहतर इंतजाम भी किए गए हैं।
माता के दरबार आने वाले श्रद्धालुओं को कोई परेशानी न हो इसलिए भारी वाहनों का (यात्री बस सहित) दंतेवाड़ा शहर में प्रवेश बंद कर दिया गया है। ADM ने आदेश भी जारी कर दिया है। 24 अक्टूबर तक शहर में भारी वाहनों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। यात्री बसें बायपास होते हुए बचेली मार्ग से बस स्टैंड तक आ सकेगी।
गीदम की तरफ से आने यात्री बस चितालंका बायपास से होकर बस स्टैंड जाएगी। भीड़ की संभावना और यातायात के दबाव को कम करने और सुगम यातायात बनाए रखने के लिए हर प्वॉइंट पर यातायात पुलिस को तैनात किया गया है।
जिससे इस दौरान किसी भी प्रकार की कोई घटना न हो। वहीं छोटी वाहनों को प्रवेश दिया गया है, लेकिन इसके लिए भी पार्किंग की व्यवस्था की गई है।
मां दंतेश्वरी मंदिर का गर्भगृह जहां देवी की मूर्ति है, वह सदियों पहले ग्रेनाइट पत्थरों से बनाया गया था। बताया जाता है कि शुरुआत में जब मंदिर यहां स्थापित हुआ था तो उस समय सिर्फ गर्भगृह ही हुआ करता था। बाकी का हिस्सा खुला होता था।
लेकिन जैसे-जैसे राजा बदले तो उन्होंने अपनी आस्था के अनुसार मंदिर का स्वरूप भी बदला। हालांकि गर्भगृह से कोई छोड़खानी नहीं की गई। गर्भगृह के बाहर का हिस्सा बेशकीमती इमारती लकड़ी सरई और सागौन से बना हुआ है। जिसे बस्तर की रानी प्रफुल्ल कुमारी देवी ने बनवाया था।
गर्भगृह के बाहर दोनों तरफ दो बड़ी मूर्तियां भी स्थापित हैं। चार भुजाओं वाली यह मूर्तियां भैरव बाबा की है। कहा जाता है कि भैरव बाबा मां दंतेश्वरी के अंगरक्षक हैं। मंदिर के प्रधान पुजारी हरेंद्र नाथ जिया के भतीजे और माता के पुजारी विजेंद्र जिया ने बताया कि, ग्रंथों में भी कहा गया है कि माई जी का दर्शन करने के बाद भैरव बाबा के दर्शन करना भी जरूरी है।
यदि भक्त भैरव बाबा को प्रसन्न कर लिए तो वे उनकी मुराद माता तक पहुंचा देते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे भक्तों की मुराद जल्द पूरी हो जाती है।
सदियों पहले यहां गंगवंशीय और नागवंशीय राजाओं का राजपाठ था। फिर काकतीय वंश यहां के राजा बने। जितने भी राजा थे उनमें कोई देवी की उपासना करता था तो कोई शिवजी का भक्त था। कुछ विष्णु भगवान के भी भक्त हुआ करते थे।
जिन्होंने मंदिर के मुख्य द्वार के सामने गरुण स्तंभ की स्थापना करवाई। आज मान्यता यह है कि, यदि गरुण स्तंभ को पकड़कर कोई भक्त अपने दोनों हाथों की उंगलियों को छू लेता है तो उसकी मुराद पूरी जो जाती है।