जहां लोग करते हैं मौत का इंतज़ार

130 फीट ऊपर टावरों के बीच फंसा महिला का शव

News Agency : पास के कमरे से भजन की आवाज़ आ रही थी. नाटे कद की एक महिला ने मेरे पास आकर नमस्ते किया. उनके हाथ में नमक पारे का एक बड़ा पैकेट था.उनकी उम्र करीब 80 साल रही होगी. उन्होंने मुझे नमक पारे खाने को दिया तो मैंने भूख नहीं होने की बात कही.उन्होंने प्यार से कहा “मैं तुम्हें बिना कुछ खाये जाने नहीं दूंगी.” वह मुस्कुराईं तो मैंने एक नमक पारे लेकर खा लिया.वह थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ खाते रहने की सलाह देती हुई चली गईं. मैं उनसे भजन के बारे में पूछना चाहती थी लेकिन तब तक वह अहाते से निकल चुकी थीं.लॉज के मैनेजर मनीष कुमार पांडे ने बाद में मुझे बताया कि सरस्वती अग्रवाल विधवा हैं और उनकी कोई औलाद नहीं है.वह चार साल पहले यहां आई थीं जब उनके पति का निधन हो गया था.उनके साथ रहने वाली गायत्री देवी राजस्थान की हैं. वह पिछले 5 साल से लॉज में रह रही हैं.उनका एक बेटा और दो बेटियां देश के दूसरे हिस्सों में रहते हैं, लेकिन वे शायद ही कभी मां से मिलने आते हैं.हम लॉज के अहाते में ही एक बेंच पर बैठकर घर-परिवार और उनके जीवन-दर्शन से लेकर महिला अधिकारों तक दुनिया-जहान की बातें करते रहे.उनकी मुस्कान बड़ी अच्छी थी. बातें करके उनको अच्छा लग रहा था. उन्होंने कहा- “बच्चों की शादी हो जाने के बाद चीजें बदल जाती हैं.”सती देवी हमारे पास में ही बेंच पर बैठी हुई थीं. उन्होंने सिर हिलाकर गायत्री देवी की बात का समर्थन किया. सती देवी भी यहां पांच साल से रह रही हैं.गायत्री देवी कहे जा रही थीं, “मुझे कोई शिकायत नहीं है. जब मैं मर जाऊंगी तो मुझे उम्मीद है कि वे मुझे चिता तक पहुंचाने के लिए आएंगे.”ये तीनों महिलाएं उन सैकड़ों लोगों में शामिल हैं जो कई सालों से वाराणसी में रहकर अपनी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं.मुमुक्षु भवन इस तरह के सबसे पुराने प्रतिष्ठानों में से एक है. यहां के 116 कमरों में से 40 कमरे मृत्यु का इंतज़ार करने वाले काशीवासियों के लिए आवंटित हैं.यहां के मैनेजर वीके अग्रवाल का कहना था कि “हर साल हमें ढेरों आवेदन मिलते हैं, लेकिन कमरों की संख्या सीमित है और हम सबको नहीं रख सकते.””हम उनको प्राथमिकता देते हैं जो ज़्यादा ज़रूरतमंद होते हैं, जो अपने ख़र्च उठा सकते हैं और जिनके रिश्तेदार उनकी सेहत और मृत्यु के बाद दाह-संस्कार की ज़िम्मेदारी उठा सकते हैं.”

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