सिद्धार्थ शंकर गौतम
“बैर कराते मंदिर-मस्जिद, मेल कराती मधुशाला” – कविवर स्व. हरिवंशराय बच्चन ने जब मधुशाला लिखी तो उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि एक समय ऐसा आयेगा जब मधुशाला राजनीति का अड्डा भी बन जायेगी। जी हाँ, भारत की राजधानी दिल्ली इन दिनों मधुशालाओं की राजनीति का गढ़ बन चुकी है। शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी जैसी मूलभूत आवश्यकताओं के चलते दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी का सारा जोर अब दिल्ली में शराब की नदियाँ बहाने पर है।
वर्ष 2001 से लेकर 2021 तक दिल्ली की राजनीति में शराब कभी मुद्दा नहीं रही किन्तु अब ऐसा लगता है मानो इससे बढ़कर कोई और कथित जनहितैषी मुद्दा है ही नहीं सरकार के पास। तभी बीते एक वर्ष से आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के बीच शराब को लेकर खींचतान चल रही है।
भाजपा का आरोप है कि केजरीवाल ने नई आबकारी नीति के चलते गली-गली में शराब की दुकानें खुलवा दी हैं वहीं आम आदमी पार्टी का पलटवार है कि उसने इसी नई आबकारी नीति के चलते न सिर्फ राजस्व में बढ़ोत्तरी की है बल्कि पूर्व में स्थापित दुकानों की संख्या भी नहीं बढ़ाई है। ताजा घटनाक्रम यह है कि नई आबकारी नीति के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं और कभी भी इस मामले में ईडी और सीबीआई की छानबीन प्रारंभ हो सकती है। हालांकि बढ़ते विवाद के चलते केजरीवाल सरकार ने पुरानी आबकारी नीति को ही एक सितम्बर से लागू करने का आदेश जारी किया है। इससे दिल्ली की शराब की दुकानों में अफरातफरी का माहौल भी है। खैर, इन सबसे इतर यदि राजनीतिक दृष्टिकोण से देखें तो नई आबकारी नीति में शराब का पूरा व्यवसाय निजी हाथों में सौंपने का आप सरकार का निर्णय अब उसी पर भारी पड़ता दिख रहा है।
दिल्ली में शराब की दुकान चलाने वाले निजी लाइसेंसधारी अब डर के साए में हैं क्योंकि नई शराब नीति पर दिल्ली के उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना द्वारा सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी गई है। दरअसल, दिल्ली के मास्टर प्लान के अनुसार डीडीए द्वारा अप्रूव्ड मार्केट, शॉपिंग मॉल्स में ही शराब की दुकानें खोली जा सकती हैं लेकिन नई शराब नीति के तहत बहुत सारी दुकानें नॉन-कंफर्मिंग जोन में खुलीं जिस पर एमसीडी ने आपत्ति जताई। इन निजी लाइसेंसधारियों के लाइसेंस प्राप्त करने में भी भ्रष्टाचार का अंदेशा है।
यही कारण है कि आप सरकार ने दबाव में आकर पुरानी व्यवस्था, जिसमें शराब बेचने का नियंत्रण सरकारी हाथों में था, वापस लागू करने का मन बनाया है। किन्तु ऐसा लगता नहीं है कि आप के पलटी मार लेने से यह मामला यहीं सुलझ जायेगा। नई शराब नीति के खिलाफ दिल्ली उच्च न्यायालय में कई याचिकाएं लंबित हैं और उन पर 18 अगस्त को सुनवाई है। दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय पर भी आप सरकार की आबकारी नीति पर खासा प्रभाव पड़ेगा।
आप सरकार की नई शराब नीति को लेकर मुख्य सचिव की जांच रिपोर्ट से पहले ही सामने आ चुका है कि शराब नीति को लागू करने से पहले प्रस्तावित नीति को कैबिनेट के समक्ष भी नहीं रखा गया और इसे मंजूरी के लिए उपराज्यपाल को भी नहीं भेजा गया। इसके अलावा नई आबकारी नीति के क्रियान्वयन में जल्दबाजी और जिद के चलते केजरीवाल सरकार ने GNCTD अधिनियम 1991, व्यापार नियमों के लेनदेन (TOBR)- 1993, दिल्ली उत्पाद शुल्क अधिनियम- 2009 तथा दिल्ली उत्पाद शुल्क नियम- 2010 के प्रावधानों की भी अनदेखी की है।
नए टेंडर के बाद पुराने शराब ठेकेदारों के अनुचित तरीके से 144 करोड़ माफ करने का भी आरोप केजरीवाल सरकार पर है। इसके अलावा अपने पूंजीपति मित्रों को लाइसेंस बांटने की शिकायत भी मिल रही है। अब चूंकि इस पूरी प्रक्रिया में आप सरकार में दूसरे सबसे ताकतवर मंत्री मनीष सिसौदिया पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं और उनकी भूमिका पर सीबीआई जांच की सिराफिश हो चुकी है, ऐसे में सरकार से लेकर पूरी आम आदमी पार्टी बैकफुट पर आ गई है।
एक मंत्री सत्येन्द्र जैन पहले ही ईडी जांच के चलते जेल में हैं और अब यदि मनीष सिसोदिया पर ईडी की जांच शुरू होती है तो उनकी भी गिरफ्तारी तय है क्योंकि हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने ईडी के कानूनी प्रावधानों को बरकरार रखते हुए उसकी असीमित शक्ति को और धार दे दी है। लिहाजा, आप सरकार में डर का माहौल है और संभवतः इसी कारण शराब बिक्री को वापस सरकारी हाथों में दिया जा रहा है ताकि इन सब विवादों के बीच मिले समय में डैमेज कंट्रोल किया जा सके।
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सुशासन और आम आदमी की मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के नारे के साथ सत्ता में आई आम आदमी पार्टी की सरकार अब भ्रष्टाचार की गंगोत्री बनती जा रही है, इसमें कोई संदेह नहीं है। केजरीवाल ने अपने जिस दिल्ली मॉडल को दिखाकर पंजाब की सत्ता हासिल की, वहां भी अल्प समय में ही मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे हैं। पंजाब के स्वास्थ्य मंत्री का जेल जाना इसी कड़ी की शुरुआत है।
यदि उपराज्यपाल वी.के सक्सेना के आरोप सही हैं और उनकी सीबीआई जांच की मांग को मान लिया जाता है तो देश के सामने से आम आदमी की पार्टी होने का दंभ चकनाचूर होने की सम्भावना है। इससे निश्चित तौर पर आप की हिमाचल और गुजरात की चुनावी तैयारियों पर कुठाराघात होगा। यह भी संभव है कि केजरीवाल को स्वयं का दामन बचाने की नौबत आ जाये क्योंकि मंत्रिमंडल के मुखिया होने के नाते यह संभव ही नहीं कि उनकी जानकारी के बिना इतना बड़ा भ्रष्टाचार हुआ हो।