संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ रांची की स्थापना की 125 वीं के जुबली समापन समारोह

विशेष संवाददाता द्वारा
रांची: आदिवासी बाहुल्य छोटानागपुर के धरती में सेवा दे रही संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ रांची की स्थापना के 125 वर्ष पूरे होने पर सम्पूर्ण वर्ष को जुबली वर्ष के रूप मनाया गया। इस अनुग्रह का शुभारंभ 26 जुलाई 2021 को भव्य समारोह के साथ प्रारम्भ किया गया। जुबली वर्ष को यादगार बनाने के लिए अनेक से गतिविधयां सम्पन्न कराये गये जिसमें प्रमुख रहे, आध्यात्मिक साधना जो धर्मसंघ के विधिकानुसार संचालित, परोपकारी कार्य, जुबली मेमोरियल का निर्माण, ेंग्रहालय का नवीनीकरण, धर्मसंघ का इतिहास का नाटिका द्वारा प्रस्तुति इत्यादि। इसके अतिरिक्त जुबली वर्ष की समाप्ति पर समापन समारोह का आयोजन की तैयारी पूर्ण किया गया। इस समारोह के अन्तर्गत पवित्र मिस्सा संत मरिया महागिरजा रांची में सम्पन्न होगा तथा रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया जायेगा।संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ रांची का संक्षिप्त इतिहास: संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ रांची की स्थापना 26 जुलाई 1897 को ईश सेविका माता मेरी बेर्नादेत किस्पोट्टा के द्वारा किया गया जिनका अभूतपूर्व सहयोग माता सेसिलिया किस्पोट्टा, माता बेरोनिका किस्पोट्टा, और माता मेरी ने किया। ये मांडर प्रखंड के सरगांव निवासी रही हैं। छोटानागपुर के सरजमी पर काथलिक ईसाई समुदाय द्वारा स्थापित धर्मसंघ का यह प्रथम स्वदेशी धर्मसंघ है। फादर कॉन्सटन्ट लीवन्स ये. स. के उत्साहपूर्ण प्रेरिताई कार्यों से प्रभावित होकर तथा तात्कालिक कोलकोता के आर्चबिशप पौल गूथल्स ये. स. के आधिकारिक अनुमति से इस धर्मसंघ की स्थापना रांची में की गई। स्थानीय आदिवासियों के पिछड़ेपन, उनपर हो रहे अत्यचार, अशिक्षा, गरीबी तथा अन्य समस्यों को ध्यान में रखकर उनके उत्थान के लिये इनकी धर्मसंघ की स्थापना हुई है। प्रारंभिक चुनौतियों के बवजूद ये चार बहनों ने अपने अदम्य साहस से नये दधर्मसंघ ‘संत अन्ना की पुत्रियों के धर्मसंघ’ की नींव डाला जो आज झारखण्ड तक ही सीमित नहीं बल्कि देश तथा विदेश में अपनी पहचान व ख्याति प्राप्त की है। इनकी सफलता का श्रेय वे ईश्वर की कृपा तथा समय की मांग के अनुरूप सेवा प्रदान करना मानते हैं।
प्रथम चार धर्मबहनों ने प्रथम व्रतधारण कर 8 अप्रैल 1901 इस धर्मसंघ में प्रथम सदस्यता सूची में अपना नाम दर्ज कराया। वर्तमान में इन धर्मबहनों की संख्या 1140 से अधिक है तथा 148 कॉन्वेंट कार्यरत है। यह चार प्रोविंश में बंटा है, रांची प्रोविंश, गुमला प्रोविंस, जलपाईगुड़ी प्रोविंस, तथा मध्यप्रदेश प्रोविंस। अंडमान रांची प्रोविंस तथा यूरोप मिशन केंद्र में आता है। आज धर्मसंघ शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक उत्थान तथा बच्चों देश निमार्ण में अहम योगदान दे रहा हैं।

 

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