लोहरदगा में सालों से ढेला मार होली खेली जाती है

विशेष संवाददाता द्वारा
लोहरदगा. आपने रंग-गुलाल से होली और लठमार होली के बारे में जरूर सुना होगा, लेकिन झारखंड में इन सबसे अलग ढेला मार होली की अनोखी प्रथा है. राज्य के लोहरदगा जिले के बरही में ढेला मार होली खेलने की अनोखी प्रथा सदियों से चली आ रही है. इसे देखने के लिए राज्य के बाहर से भी लोग पहुंचते हैं.
लोहरदगा जिले के सेन्हा प्रखंड क्षेत्र अंतर्गत बरही गांव में खेली जाने वाली ढेला मार होली सिर्फ लोहरदगा में ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य में प्रसिद्ध है. बरही गांव के लोगों का कहना है कि साल संवत कटने के दूसरे दिन लोग फागुवा खूंटा उखाड़ने जाते हैं. इसी समय लोग खूंटा उखाड़ने वालों को ढेला मारते हैं. खूंटा उखाड़ने वाले ढेला से बचते हुए जोश के साथ दौड़ते हुए खूंटा उखाड़ने जाते हैं.
माना जाता है कि यह असत्य पर सत्य के विजय का प्रतीक है. इसे देखने के लिए जिले के अलावा विभिन्न इलाकों से ग्रामीण पहुंचते हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि इस ढेला मार होली में मुस्लिम समुदाय के लोग भी खूंटा उखाड़ने के लिए दौड़ते हैं.
बरही गांव के रहने वाले रामलखन साहू का कहना है कि यहां के लोग वर्षों से इस परंपरा को निभा रहे हैं. गांववालों का मानना है कि पत्थर से लोगों को चोट नहीं लगती. पत्थर मारने के बावजूद जो बिना डरे खंभे को उखाड़ कर देवी मण्डप के पीछे फेंकता है, उसे सुख, शांति और सौभाग्य की प्राप्ति‍ होती है.
ढेला मार होली में प्रतियोगिता का भी आयोजन किया जाता है. ग्रामीणों के अनुसार इस परंपरा को निभाने और प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए लोगों में उत्सुकता रहती है. ग्रामीणों के अनुसार सालों से इस गांव में ढेला मार होली खेली जाती है और लोग इस अनोखे होली को देखने के लिए उत्साहित रहते हैं.
स्थानीय लोगो का कहना है कि ढेला मार होली को दूसरे गांव से आये लोग सिर्फ देख सकते हैं. इसमें हिस्सा नहीं ले सकते हैं. अगर वे इस परंपरा में शामिल होते हैं, तो उनके साथ कुछ अनहोनी हो सकती है. इस दिन नये मेहमानों का स्वागत ढोल-नगाड़ों के साथ अंगवस्त्र एवं पगड़ी पहनाकर किया जाता है. इसके साथ ही पाहन, पुजारी, महतो और प्रतियोगीता में शामिल होने वाले लोगों को सम्मानित भी किया जाता है.

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