डुमरी उपचुनाव जीतकर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की लोकप्रियता आसमान में

अरुण कुमार चौधरी
राँची :डुमरी विधानसभा उपचुनाव में इंडिया गठबंधन की प्रत्याशी बेबी देवी ने भारी मतों से जीत हासिल की है. उन्होंने निकटतम प्रतिद्वंदी एनडीए प्रत्याशी यशोदा देवी को 1,00,231 मत और आजसू की यशोदा देवी को 83,075 वोट मिले. एआईएमआईएम पत्याशी को 3471 वोट मिले. निदर्लीय प्रत्याशी कमल प्रसाद साहू को 712 वोट मिले. निर्दलीय प्रत्याशी नारायण गिरी को 610 वोट मिले. निर्दलीय प्रत्याशी रोशल लाल तुरी को 1898 वोट मिले. जबकि नोटा 3649 रहा.दिवंगत जगरनाथ महतों ने इस सीट पर लगातार 4 बार जीत हासिल की थी, जिसे बरकरार रखते हुए पत्नी बेबी देवी ने 5वीं बार JMM की झोली में ये सीट डाल दी.
राज्यों में विधानसभा उपचुनाव का परिणाम राज्य सरकार की लोकप्रियता मापने का भी पैमाना है। इस कसौटी पर हेमंत सोरेन खरे उतरे हैं। इस वर्ष के अंत में यानी तीन माह बाद बतौर मुख्यमंत्री वे चार वर्ष पूरे कर लेंगे।इस दरम्यान राज्य में छह विधानसभा उपचुनाव हुए हैं। इसमें सत्तारूढ़ गठबंधन की जीत का शानदार रिकॉर्ड है। छह में से पांच विधानसभा सीटों पर उन्होंने जीत हासिल की।यही नहीं मधुपुर में उन्होंने अपने प्रत्याशी को मंत्री पद की शपथ दिलाकर लड़ाया और जिताने में कामयाबी पाई। यही फॉर्मूला उन्होंने डुमरी में दोहराया और दोबारा सफल रहे।
जब हेमंत सोरेन ने झारखंड मुक्ति मोर्चा की कमान संभाली थी तो उनकी कार्यक्षमता पर संदेह किया जा रहा था। काफी कम समय में उन्होंने इस आकलन को गलत साबित कर दिया। पांच वर्ष विपक्ष में रहने के दौरान वे लगातार मुखर रहे और अलग पहचान बनाई।इसका परिणाम हुआ कि वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में उनके नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 30 सीट झटके। उन्होंने भाजपा को पीछे धकेल दिया।
डुमरी में भी प्रत्याशी चयन से लेकर रणनीति बनाने और प्रचार अभियान में खुद को झोंक दिया। रणनीतिक तरीके से उन्होंने अलग-अलग मोर्चे पर विश्वस्तों को लगाया। इस लिहाज से वे विरोधियों के लिए वन मैन आर्मी बनकर उभरे।
हेमंत सोरेन झारखंड मुक्ति मोर्चा के कार्यकारी अध्यक्ष होने के नाते इंडिया के सर्वोच्च नीति निर्धारिकों में एक हैं। वे पूरी मजबूती से एक साथ कई मोर्चे पर लड़ रहे हैं। बीते वर्ष राज्य में ईडी की बढ़ी सक्रियता के बाद से वे निशाने पर हैं। उनकी तगड़ी घेराबंदी पत्थर खनन लीज मामले में हुई।
चुनाव आयोग की सुनवाई के बाद यहां तक अफवाह उड़ी कि उनकी विधायकी समाप्त हो गई है। कठिन परिस्थिति में उन्होंने अपने दल के साथ-साथ गठबंधन के विधायकों को एकजुट रखा।
यह परेशानी टली तो ईडी ने उन्हें समन किया। एक ओर वे ईडी के समन पर उपस्थित भी हुए तो दूसरी तरफ राजनीतिक मुहिम भी आरंभ की। तमाम राजनीतिक झंझावातों को झेलते हुए अभी भी वे मजबूती से डटे हुए हैं। उनके पक्ष में आया डुमरी विधानसभा का परिणाम राहत देने वाला है। ईडी एक अन्य मामले में उन्हें समन कर बुला रही है।इसके विरुद्ध उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली है। हेमंत सोरेन ने स्पष्ट तौर पर आरोप भी लगाया है कि उन्हें इस वजह से लक्ष्य बनाया जा रहा है क्योंकि वे केंद्र में उस दल का साथ नहीं दे रहे हैं, जो सत्ता में है। ऐसे में डुमरी में कामयाबी से वे अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ और अधिक आक्रामक होकर सामने आएंगे।
लोगों का कहना है किजब जगन्नाथ महतो का निधन हुआ तब यह लगा था कि उसकी विरासत पत्नी बेबी देवी शायद ही संभाल सके !बेबी देवी विशुद्ध रूप से ग्रहणी थी! पुत्र की उम्र कम थी ! जगन्नाथ महतो भले ही चार बार विधायक बने थे पर पत्नी बेबी देवी की राजनीति का मात्रा भी नहीं आता था और डुमरी विधानसभा क्षेत्र का बनावट भी पता नहीं था लेकिन जैसे ही वह झारखंड मुक्ति मोर्चे ने अपनी उम्मीदवार बनाया उन्होंने पार्टी समर्थकों से मिलना जुलना शुरू किया ! और तब उन्होंने ग्रामीण मतदाताओं से सीधा संवाद करना शुरू किया! ठेठ और गवाई के अंदाज लोगों को पसंद आया !राजनीतिक टीकाकारों का मानना है एक तो मंत्री जगन्नाथ महतो के निधन से लोगों में व्याप्त सहनभूति और दूसरी बेबी देवी का सीधापन लोगों ने पसंद किया ! उनके साथ उनके पुत्र अखिलेश महतो भतीजा दिवाकर ने भी उसकी मदद किया! कम समय ही हुए वह पार्टी के नेताओं कार्यकर्ताओं में बिल्कुल उनको जानने पहचानने लगी !बरहाल रिकॉर्ड प्राप्त कर उन्होंने पति जगन्नाथ महतो को विरासत बचा ली बल्कि झारखंड मुक्ति मोर्चा को डुमरी में जमीन ओर मजबूत करने में सफल रही !
डुमरी विधानसभा सीट में बीवी देवी ऐसी दूसरी महिला विधायक के रूप में बनी है! यह रिकॉर्ड 46 वर्ष पहले बार ही बनाने में सफल !इसके पहले 1967 में राजा पार्टी के राजामाता एस मंजरी देवी डुमरी सीट से विधायक चुनी गई थी
झारखंड के डुमरी में हुए उपचुनाव (में भी मुस्लिमों ने अपने वोट को बिखरने नहीं दिया. पूरे समुदाय के मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा पर भरोसा जताया और ओवैसी फैक्टर को फेल कर दिया. डुमरी में मुस्लिमों की बड़ी आबादी होने के बावजूद AIMIM प्रत्याशी को सिर्फ 3471 वोट मिले, जो नोटा से भी कम हैं
जबकि वर्ष 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के आंकड़ों पर गौर करें तो ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रत्याशी अब्दुल मोबिन रिजवी को 24132 वोट मिले थे. लेकिन, मुस्लिमों ने इस बार एकमुश्त वोट की प्रत्याशी बेबी देवी को दिया. जगरनाथ के निधन से बेबी को जनता की सहानुभूति मिली. यही वजह है कि भाजपा का साथ मिलने के बावजूद आजसू की यशोदा देवी चुनाव हार गई. झामुमो की जीत ने कि बजह निम्म है :1. ओवैसी फैक्टर को फेल कर मुस्लिम वोटर्स ने झामुमो को समर्थन दिया.2 इंडिया के घटक दल एकजुट रहे, 2019 में जदयू और भाकपा ने भी चुनाव लड़ा.3. भाजपा का पूरा वोट बैंक आजसू को ट्रांसफर नहीं हो पाया.4. इस बार चुनावी दंगल में मात्र 6 प्रत्याशी थे, जबकि पिछले चुनाव में 16 प्रत्याशी थे.5. जगरनाथ महतो के निधन से उनकी पत्नी बेबी देवी को सहानुभूति मिली.

Related posts

Leave a Comment