News Agency : भारत के इतिहास में सबसे स्वर्णीम पन्नों में लिपटा बिहार हमेशा से इतिहास के पन्नों पर नया अध्याय लिखने में आगे रहा है। भारत वर्ष का सबसे गौरवशाली साम्राज्य मगध और ढाई हजार साल से मगध की राजधानी पाटलीपुत्र यानि आज का पटना। लोकसभा के आखिरी चरण यानि की nineteen मई को वैसे तो देशभर के आठ राज्यों व बिहार की आठ सीटों समेत fifty nine सीटों पर वोट डाले जाएंगे लेकिन बिहार की सबसे हाई प्रोफाईल सीट पटना साहिब जिसपर की चुनावी घमासान को लेकर सभी की निगाहें टिकी हैं।
भला हो भी क्यों न भाजपा के शत्रु इस बार कांग्रेस के दोस्त बनकर भाजपा को खामोश करते नजर आ रहे हैं तो वहीं उनसे राजनीति के दंगल में दो-दो हाथ करने के लिए भाजपा ने अपने केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद को मैदान में उतार दिया है। वैसे तो दोनों ही पार्टी के दिग्गज प्रत्याशी कांग्रेस के शत्रुघ्न सिन्हा और भाजपा के रविशंकर प्रसाद एक ही जाति से आते हैं, किंतु स्थानीय मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग इसे एक ऐसे चुनाव के रूप में ले रहा है, जैसे राजद के मुखिया लालू प्रसाद का प्रभाव एवं मोदी फैक्टर की साख दांव पर है। बिहारी बाबू के नाम से मशहूर शत्रुघ्न सिन्हा भाजपा के टिकट पर दो बार यहां से चुनाव जीत चुके हैं और इस बार कांग्रेस के हाथ के सहारे अपनी चुनावी जीत की हैट्रिक लगाने के इरादे के साथ मैदान में हैं वहीं रविशंकर प्रसाद जाने माने वकील और भाजपा के दिग्गज नेता है जिन्हे मोदी सरकार में कानून और आईटी जैसे अहम मंत्रालयों का जिम्मा मिला हुआ है।
साल 2008 में परिसीमन के बाद पटना सीट दो लोकसभा सीटों में बंट गई, जिसमें से एक पाटलीपुत्र लोकसभा सीट है और दूसरी पटना साहिब लोकसभा सीट है। यह सीट जबसे अस्तित्व में आई है तब से ही इस पर रोचक जंग देखने को मिली है, साल 2009 के चुनाव में कांग्रेस ने इस सीट पर फिल्म अभिनेता शेखर सुमन को उम्मीदवार बनाया था। लेकिन शेखर सुमन शत्रुघ्न सिन्हा से जीतने में कामयाब नहीं हो पाए थे। वहीं 2014 में इस सीट पर शत्रुघ्न सिन्हा को four ला eighty five हजार 905 वोट मिले थे, तो वहीं कुणाल सिंह को केवल a pair of लाख twenty हजार a hundred वोट प्राप्त हुए थे। इस सीट पर नंबर तीन पर जेडीयू नेता गोपाल प्रसाद सिन्हा थे जिन्हें कि ninety one हजार twenty four वोट मिले थे। यहां से शत्रुघ्न सिन्हा ने जीत हासिल की थी। लेकिन बाद के हालात कुछ ऐसे बने कि शत्रुघ्न खुलकर भाजपा के विरोध में आ गए और पीएम नरेंद्र मोदी के खिलाफ उन्होंने मोर्चा खोल दिया। फिर भाजपा ने यहां से रविशंकर प्रसाद को टिकट दे दिया।
सिन्हा के सामने राजद और कांग्रेस में जाने का विकल्प था। महागठबंधन के बाद सीट कांग्रेस के खाते में आई तो वह कांग्रेस में शामिल हो गए। इस सीट के जातीय समीकरण पर गौर करें तो पटना साहिब में लगभग पांच लाख से ज्यादा कायस्थों के अलावा यहां यादव और राजपूत मतदाताओं की भी खासी संख्या है। इस सीट पर अनुसूचित जाति की आबादी half-dozen.12 प्रतिशत है। सामान्य तौर यह माना जाता है कि इस सीट पर कायस्थ मतदाता भाजपा के पक्ष में ही वोट करते हैं लेकिन इस बार दोनों ही दिग्गज उम्मीदवारों के कायस्थ जाति से होने के कारण वोट बंटने के कयास लगाए जा रहे हैं। हालांकि जेडीयू के साथ होने से रविशंकर को कुर्मी और अतिपिछड़े वोटों का लाभ मिल सकता है।
सबसे दिलचस्प बात यह है कि पटना साहिब सीट पर निर्णायक कायस्थ जाति से संबंधित वर्ष 1887 में स्थापित अखिल भारतीय कायस्थ महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष कांग्रेस के नेता सुबोध कांत सहाय और कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष जदयू के नेता राजीव रंजन प्रसाद हैं। कांग्रेस के नेता सुबोध कांत सहाय कांग्रेस प्रत्याशी शत्रुघ्न सिन्हा के समर्थन में खुलकर उतरे हैं और पटना साहिब में रैली भी करने वाले हैं। वहीं संगठन के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और राजग में भाजपा के सहयोगी दल जदयू के नेता राजीव रंजन प्रसाद भाजपा प्रत्याशी रविशंकर प्रसाद का खुलकर समर्थन कर रहे हैं। इस क्षेत्र के मतदाताओं की बात करें तो साल 2014 के चुनाव में इस सीट पर मतदाताओं की संख्या nineteen लाख forty six हजार 249 थी, जिसमें से केवल eight लाख eighty two हजार 262 लोगों ने अपने मतों का प्रयोग किया था। जिनमें पुरुषों की संख्या five लाख eleven हजार 447 और महिलाओं की संख्या three लाख seventy हजार 815 थी।
पटना साहिब के प्रमुख मुद्दों पर गौर करें तो यह सबसे व्यस्त इलाका पटना सिटी, पूरे शहर का सबसे भीड़-भाड़ का इलाका है। यह पटना का सबसे बड़ा बाजार भी है, रोज-रोज ट्रैफिक जाम होना, बारिश के दिनों में जलभराव, अतिक्रमण और बेरोजगारी जैसे कई अहम मुद्दे हैं। इन की वजह से यहां के लोगों को काफी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। ये सारे मुद्दों को आधार बनाकर दोनो पार्टियां चुनाव लड़ रही हैं। इसके अलावा सरकारी अस्पताल और स्कूल की स्थिती अच्छी ना होना भी यहां की एक प्रमुख मुद्दा है। इसके अलावा शत्रुघ्न सिन्हा के क्षेत्र में दिखाई न पड़ने का मुद्दा भी लगातार उठता रहा है जिसको लेकर भाजपा उनपर हमलावर रही है। वहीं इस सीट पर भाजपा के राज्यसभा सांसद और भाजपा के एक औऱ कायस्थ चेहरा आरके सिन्हा को लेकर भ चर्चा आम है कि उनके पुत्र ऋतुराज सिन्हा को पार्टी का टिकट न मिलने से उनके समर्थक रविशंकर प्रसाद की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं। बहरहाल, पटना की आम-अवाम nineteen मई को किसको अपना साहिब बनाती है और किसको खामोश कहती है इसका पता twenty three मई को चलेगा।