झारखंड में मुसलमानों का घोर उपेक्षा

Zoroastrian neglect in Jharkhand

झारखंड की कुल आबादी का 14.53 फीसदी होने के बावजूद यहां के मुसलमान सियासी हाशिये पर हैं. संसद में यहां से उनका प्रतिनिधित्व नहीं है. साल 2014 के संसदीय चुनावों में राज्य से से एक भी मुस्लिम सांसद नहीं चुने जा सके. अभी हो रहे लोकसभा चुनावों में भी किसी भी प्रमुख पार्टी या गठबंधन ने उन्हें टिकट नही दिया है. जाहिर है कि इस बार भी यहां से कोई मुसलमान एमपी नही होगा. ऐसा पिछले कई चुनावों से होता आ रहा है. फुरकान अंसारी वैसे इकलौते मुस्लिम राजनेता हैं, जिन्हें झारखंड से सांसद बनने का मौका मिला.

उनके बाद किसी भी मुसलमान को न तो लोकसभा जाने का मौका मिला और न राज्यसभा. झारखंड राज्य गठन (15 नवंबर, 2000) के बाद साल 2004 में फुरकान अंसारी ने कांग्रेस के टिकट पर गोड्डा से लोकसभा का चुनाव जीता था. बाद के चुनावों में वे दोबारा नहीं जीत सके. इस बार भी वे टिकट के इच्छुक थे लेकिन गोड्डा सीट महागठबंधन में शामिल झारखंड विकास मोर्चा (प्रजातांत्रिक) के खाते में चली गयी. वे चुनाव नहीं लड़ सके. शुरुआती विरोध के बाद अब उन्होंने चुप्पी साध ली है. झारखंड की 81 सदस्यीय विधानसभा में अभी सिर्फ दो मुस्लिम विधायक हैं. दोनों एक ही पार्टी कांग्रेस से चुने गए हैं. झारखंड अलग होते वक्त यहां पांच मुस्लिम विधायक थे. साल 2005 के विधानसभा चुनाव में इनकी संख्या घटकर दो हो गई.

साल 2009 में हुए चुनाव में सिर्फ तीन मुस्लिम विधायक बने. ये या तो कांग्रेस से जीते, या फिर झारखंड मुक्ति मोर्चा से. भाजपा ने पिछले 19 साल के दौरान यहां से किसी भी मुसलमान को विधानसभा, लोकसभा या राज्यसभा का प्रत्याशी नहीं बनाया. इस कारण भाजपा कोटे से कोई मुसलमान आज तक सांसद या विधायक नहीं बन सका. झारखंड में सर्वाधिक समय तक भाजपा का शासन रहा. लिहाजा, मुसलमानों का मंत्रिमंडल में भी प्रतिनिधित्व नहीं के बराबर रहा. झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और कांग्रेस के मौजूदा विधायक आलमगीर आलम ने कहा कि उनकी पार्टी ने हमेशा से मुसलमानों को प्रतिनिधित्व दिया है.

यह सच है कि इस बार हमने लोकसभा चुनाव में कोई मुस्लिम प्रत्याशी नही बनाया लेकिन महागठबंधन ने पहले ही तय कर लिया है कि झारखंड से किसी मुस्लिम को ही राज्यसभा भेजेंगे. ऐसे में प्रतिनिधित्व नहीं होने का सवाल नहीं उठना चाहिए. आलमगीर आलम ने कहा,” देखिए, अब चुनाव का तौर-तरीका काफी बदल गया है. टिकट उन्हें मिलता है, जो सीट निकाल सकें. हमने रणनीति के तहद गोड्डा सीट बाबूलाल मरांडी की पार्टी को दे दी. इसका मतलब यह नहीं कि कांग्रेस अलपसंख्यकों (मुसलमानों) को लेकर संजीदा नहीं है. झारखंड में तो हमारा राजपाट ही नहीं रहा. मधु कोड़ा जब मुख्यमंत्री बने, तब मुझे विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया. हाजी हुसैन अंसारी और मन्ना मल्लिक मंत्री भी रहे. “

उन्होंने यह भी कहा,”भाजपा में मुसलमानों की पूछ नहीं है. वह मुसलमान विरोधी पार्टी है. उऩके पास सांप्रदायिक तुष्टीकरण के अलावा और कोई मुद्दा ही नहीं बचा है. बची बात हमारी, तो हमलोग विधानसभा चुनावों में भी मुस्लिम नेताओं को प्रतिनिधित्व देंगे.” झारखंड भाजपा के प्रवक्ता दीनदयाल वर्णवाल इससे इत्तेफाक नहीं रखते. उन्होंने दावा किया कि भाजपा जाति और कौम की राजनीति नहीं करती है. उन्होंने कहा,”हमलोग सबका साथ सबका विकास की बात करते हैं. हमारी सरकार ने ढाई करोड़ गरीबों के आवास बनवाए, तो उनका कौम थोड़े ही पूछा. शौचालय बनाने या गैस सिलेंडर देते वक्त जाति भी नहीं पूछी. इसलिए हम पर यह आरोप उचित नहीं. “

“भाजपा मुसलमानों की विरोधी नहीं है. अगर हमारी पार्टी में कोई मजबूत मुस्लिम नेता होगा, तो आगामी चुनावों में उन्हें अवश्य टिकट मिलेगा. लेकिन, मुसलमानों को भी भारतीय जनता पार्टी पर विश्वास करना होगा. अलबत्ता हम कांग्रेस से यह पूछना चाहते हैं कि उसने फुरकान अंसारी को टिकट क्यों नहीं दिया. जबकि वे टिकट के इच्छुक थे.” पूर्व मंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता हाजी हुसैन अंसारी ने कहा कि फुरकान अंसारी को छह बार चुनाव लड़ने का मौका मिला लेकिन वे सिर्फ एक बार जीत सके. हाजी हुसैन अंसारी ने कहा,”ऐसे में महागठबंधन उन्हें टिकट क्यों देता. भाजपा के नेता यह क्यों नही बताते कि शाहनवाज हुसैन का टिकट क्यों काटा गया. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश क्यों की. गाय के नाम पर लिंचिंग क्यों हुई.”

मुस्लिमों की सामाजिक संस्था अंजुमन इस्लामिया के झारखंड प्रमुख इबरार अहमद मानते हैं कि मौजूदा वक्त में मुसलमान राजनीतिक तौर पर मजबूर हो चुके हैं. उन्होंने कहा,”अब हमें यह देखकर वोट देना होता है कि हमारे लिए कम हानिकारक पार्टी कौन है. बची बात सियासी हिस्सेदारी की, तो मुझे लगता है कि मुस्लिम नेता अपने पक्ष में वोट शिफ्ट नहीं करा पा रहे. इस कारण भी उन्हें टिकट नहीं मिल पाता है. यह स्थिति बदलनी होगी.””संयुक्त बिहार में इस इलाके से मुसलमानों को टिकट मिलता रहा है. कम्युनिस्ट पार्टियों में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व था. कांग्रेस पार्टी भी अल्पसंख्यक समुदाय को टिकट देती रही है.

लेकिन, अब जब प्रधानमंत्री ही यह कहे कि कोई हिंदू आतंकवादी नही हो सकता, तो आप किस पर भरोसा करेंगे. ऐसे बयानों से सांप्रदायिक तनाव फैलता है. लेकिन, यह हमारी तहज़ीब है और देश में कई अच्छे लोग हैं, जिनके कारण हम कुछ अच्छा होने की उम्मीद कर सकते हैं.” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कथित जुमलों पर किताब लिख चुके जमशेदपुर के पत्रकार एमएस आलम ने कहा कि गैर भाजपा सियासी पार्टियां यह मानकर चलती हैं कि ‘मुसलमान जाएगा कहां’. ऐसे में जब आपका वोट ‘टेकेन फार ग्रांटेड’ मान लिया जाए, तो आपको प्रतिनिधित्व कौन देगा.

उन्होंने कहा,” इसको एक उदाहरण से समझिए. पिछले दिनों जमशेदपुर में हेमंत सोरेन की बड़ी मीटिंग हुई. उसमें बुजुर्ग नेता और कभी विधायक का चुनाव लड़ चुके शेख बदरुद्दीन भी शामिल हुए. वे झारखंड आंदोलनकारी भी रहे हैं. मुस्लिम समाज में उनकी प्रतिष्ठा है. इसरे बावजूद उन्हें मंच पर कुर्सी नहीं मिली. वे पीछे खड़े रहे. इस अपमान के बावजूद मुसलमानों के पास विकल्प नही है. वे नोटा को दबाने की जगह मजबूत गैर भाजपा पार्टी को वोट देना मुनासिब समझते हैं. क्योंकि भाजपा सरकार में हमें सुरक्षा की गारंटी नहीं मिल सकती.”

झारखंड में 50 लाख से ज़्यादा मुसलमान रहते हैं. पाकुड़ और साहिबगंज जिले में मुसलमान कुल आबादी का करीब 30 फीसदी हैं. देवघर, जामताड़ा, लोहरदगा और गिरिडीह जिलों में यह औसत 20 फीसदी है. बाकी जिलों में मुस्लिम आबादी अपेक्षाकृत कम है. इसके बावजूद गोड्डा, चतरा, लोहरदगा और राजमहल लोकसभा क्षेत्रों में मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका अदा करते हैं.

रवि प्रकाश,
बीबीसी से साभार

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