क्यों झारखंड में आदिवासियों के लिए सरकारी राशन लेना दिनोंदिन मुश्किल होता जा रहा है?

झारखंड में रघुबर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन लेने के लिए राशन कार्ड में दर्ज सभी सदस्यों का आधार लिंक करवाना अनिवार्य कर दिया है. इस निर्णय से आने वाले दिनों में बड़े पैमाने पर लोग राशन से वंचित हो सकते हैं.

बीते पांच फरवरी को झारखंड सरकार ने जन वितरण प्रणाली के अंतर्गत राशन लेने के लिए राशन कार्ड में दर्ज सभी सदस्यों का आधार लिंक करवाना अनिवार्य कर दिया. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून अनुसार योग्य परिवारों को प्रति माह कार्ड पर दर्ज प्रत्येक सदस्य के लिए सस्ते दरों पर पांच किलो अनाज का अधिकार है (अन्त्योदय कार्डधारियों को 35 किलो प्रति परिवार).

राज्य खाद्य विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध सरकारी आंकड़ों के अनुसार जन वितरण प्रणाली से जुड़े 2.62 करोड़ लोगों में से 68.8 लाख का आधार अभी भी उनके परिवार के राशन कार्ड के साथ लिंक नहीं है.

अगर सरकार के पिछले दो वर्षों के मिसाल को देखे, तो इस संभावना को खारिज नहीं किया जा सकता कि इस निर्णय के कारण आने वाले दिनों में व्यापक पैमाने पर लोग अपने राशन से वंचित हो सकते हैं.

केंद्र सरकार ने फरवरी 2017 में राशन कार्ड से आधार का जुड़ाव और जन वितरण प्रणाली में आधार-आधारित बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण व्यवस्था अनिवार्य कर दी थी. उस आदेश (व उसके बाद के कई आदेशों) में यह भी कहा गया था कि अगर परिवार के केवल एक सदस्य का आधार उनके राशन कार्ड के साथ जुड़ा है, तो भी परिवार को कार्ड पर दर्ज सभी सदस्यों का अनाज मिल जाता है.

झारखंड में पिछले दो वर्षों से ही अधिकांश राशन दुकानों में बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण व्यवस्था लागू है. अभी तक वैसे परिवार भी राशन ले पा रहे हैं जिनके कार्ड में केवल एक सदस्य का ही आधार जुड़ा है.

लेकिन यह भी अक्सर देखा जाता है कि राशन डीलर कार्ड में दर्ज वैसे सदस्यों का अनाज नहीं देते हैं जिनका आधार नहीं जुड़ा है. इसमें शायद ही कोई शक है कि सरकार के हाल के निर्णय के बाद यह समस्या और गहन हो जाएगी.

भ्रष्टाचार कम करने के नाम पर जन वितरण प्रणाली में बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण व्यवस्था लागू की गई थी. लेकिन मज़े की बात है कि इस व्यवस्था से अनाज की कटौती (जो झारखंड में राशन चोरी का मूल जरिया है) कम नहीं हुई है.

बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण राशन डीलर को कार्डधारियों को उन्हें देय अनाज से कम देने से नहीं रोक सकता. राशन कार्ड को आधार से जोड़ने से केवल डुप्लीकेट और फ़र्ज़ी कार्डों को हटाया जा सकता है. लेकिन जन वितरण प्रणाली में यह समस्या न के बराबर है.

बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण व्यवस्था के कारण झारखंड के लाखों कार्डधारी राशन से से वंचित हो रहे हैं. जून 2017 में राज्य के आठ ज़िलों में किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला कि बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण व्यवस्था वाली राशन दुकान में 37 प्रतिशत कार्डधारी राशन नहीं ले रहे थे.

बिना बायोमेट्रिक व्यवस्था वाली दुकान में यह अनुपात 14 प्रतिशत था. बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण व्यवस्था से अनाज लेने के लिए ये सभी शर्तें पूरी होनी चाहिए…

1) परिवार के कम-से-कम एक सदस्य के पास आधार हो.

2) परिवार के कम-से-कम किसी एक व्यक्ति का आधार राशन कार्ड के साथ सही प्रकार से लिंक हो.

3) बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण वाली पॉस मशीन सही तरह से काम करे.

4) प्रमाणीकरण के समय इंटरनेट कनेक्शन रहे.

5) पॉस मशीन में कार्डधारी के उंगलियों के निशान काम करे.

6) प्रमाणीकरण के समय इस ऑनलाइन व्यवस्था का सर्वर काम करे.

7) डीलर बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण के बाद कार्डधारी का अनाज गबन न कर दे. अगर इनमें से एक भी शर्त पूरी न हो, तो कार्डधारी को राशन नहीं मिल पाएगा.

पिछले दो वर्षों में राज्य में भूख से कम-से-कम 19 लोगों की मौत हुई हैं. इनमें  से नौ लोग आधार-संबंधित कारणों से अपने राशन से वंचित थे.

झारखंड सरकार ने मार्च 2017 में भी एक फ़रमान जारी किया था जिससे बड़े पैमाने पर राशन कार्ड रद्द किए गए थे. राशन कार्ड के साथ आधार को जोड़ने के लक्ष्य को पूरा करने के लिए स्थानीय कर्मचारियों ने वैसे कार्डों को भी रद्द कर दिया था जिनमें परिवार के एक भी सदस्य का आधार जन वितरण प्रणाली से नहीं जुड़ा था.

इन परिवारों में से एक सिमडेगा की 11 वर्षीय संतोषी कुमारी का परिवार भी था. घर में भोजन के अभाव में सितंबर 2017 में संतोषी भूख की शिकार हो गई थी. उसी वर्ष, झारखंड की रघुबर दास सरकार ने 11.64 लाख डुप्लीकेट और फ़र्ज़ी राशन कार्ड रद्द करने का दावा किया था.

उसके बाद सरकार ने कई बार यह आंकड़ा बदला है. लेकिन आज तक सरकार ने न तो रद्द किए गए कार्डों की सूची सार्वजनिक की है और न ही वह किसी प्रकार का प्रमाण दे पाई है कि रद्द किए गए कार्ड सही में डुप्लीकेट या फ़र्ज़ी थे.

प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली न होने के कारण ये समस्याएं और बढ़ जाती हैं. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के अनुसार झारखंड सरकार ने ज़िला शिकायत निवारण पदाधिकारी मनोनीत किए हैं. लेकिन कार्डधारियों के लिए शिकायत करने के लिए गांवों से ज़िले तक आना आसान नहीं होता.

शिकायत प्रखंड विकास पदाधिकार के माध्यम से भेजने पर भी अधिकतर समय उनका सही रूप से निवारण नहीं होता.

हाल ही में दुमका के 45-वर्षीय कलेश्वर सोरेन की भूख से मौत होने की घटना से शिकायत निवारण प्रणाली की निष्क्रियता का अंदाज़ा लगाया जा सकता है. आधार से न जुड़े होने के कारण उनके परिवार का राशन कार्ड 2016 में रद्द कर दिया गया था. उनके गांव के 27 अन्य परिवारों का राशन कार्ड भी इसी कारण से रद्द कर दिया गया था.

एक साल तक विभिन्न स्तरों पर शिकायत और विरोध-प्रदर्शन करने के बाद 26 परिवारों को नया कार्ड निर्गत किया गया. लेकिन इतने हल्ला-हंगामा के बाद भी कलेश्वर सहित दो परिवारों को राशन कार्ड निर्गत नहीं हुआ (16 नवंबर 2018 तक, जब उनकी मौत की जांच-पड़ताल के लिए भोजन का अधिकार अभियान का एक दल उनके गांव गया था).

विभागीय पदाधिकारियों का कहना है कि जन वितरण प्रणाली के वर्तमान इलेक्ट्रॉनिक मैनेजमेंट इनफॉरमेशन सिस्टम में रद्द किए गए कार्डों को पुनः निर्गत नहीं किया जा सकता है. जिन परिवारों का राशन कार्ड रद्द होता है उन्हें फिर से नए कार्ड के लिए आवेदन देना पड़ता है. उनका भोजन का अधिकार फिर से मिले, इसकी ज़िम्मेदारी भी उन पर ही होती है, न कि सरकार पर.

आधार के कारण राशन से वंचित होने की खबरों के बाद केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2017 में राज्यों को जन वितरण प्रणाली में अपवाद व्यवस्था लागू करने का आदेश दिया, जिससे वैसे कार्डधारी जिनका राशन कार्ड आधार से जुड़ा न हो या जो बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण नहीं कर पाए, उन्हें भी अनाज दिया जा सके.

इसके लिए झारखंड सरकार ने राशन डीलरों को अपवाद पंजी बनाने का निर्देश दिया, जिसमें वैसे परिवारों को दिए गए अनाज का ब्योरा दर्ज किया जाना था.  लेकिन अधिकांश राशन डीलरों ने यह व्यवस्था शुरू ही नहीं की.

इसमें शायद ही कोई शक है कि झारखंड सरकार के हाल के निर्णय के बाद आधार से लिंक न होने के कारण अनेक लोगों का नाम उनके राशन कार्ड से काट दिया जा सकता है. इसके कारण उन परिवारों को मिलने वाली अनाज की मात्रा कम हो जाएगी.

हालांकि, इस निर्णय को सर्वोच्च न्यायालय का समर्थन प्राप्त है. आधार-संबंधी कारणों से सामाजिक-आर्थिक अधिकारों के हनन के प्रमाणों को अनदेखा करते हुए न्यायालय ने आधार अधिनियम के अनुच्छेद 7 को मान्य माना, जिसके अनुसार सरकारी सब्सिडी लेने के लिए आधार अनिवार्य है.

न्यायालय के इस आदेश को क़ानूनी रूप से चुनौती देने की आवश्यकता है. साथ ही, अगर संसद और विधान मंडल/सभा चाहे तो इस अनुच्छेद को निरस्त कर जन कल्याणकारी योजनाओं से आधार की अनिवार्यता समाप्त कर सकती है. लेकिन अपनी गलतियों से सीखने के बजाय, केंद्र और झारखंड की भाजपा सरकारें आधार से गरीबों के जीवन पर पड़ रहे प्रतिकूल असर से बेखबर बन कर बैठी हुई हैं.

वर्तमान केंद्र व झारखंड सरकार ने खाद्य सुरक्षा के मुद्दे पर कोई भी जनपक्षीय निर्णय नहीं लिया है. केवल आधार व अनाज के बदले पैसा जैसे सुधार लागू किए हैं जिनके कारण मौजूदा सामाजिक-आर्थिक अधिकार भी लेना और कठिन हो गया हैं.

सिराज दत्ता,
(द वायर से साभार)

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