ट्राईबल रिसर्च इंस्टीट्यूट कुड़मी/कुर्मी को अनुसूचित जनजाति नहीं मानता है : मनोज टुडू

हजारीबाग। यंग ब्लड आदिवासी समाज सह ऑल संथाल स्टूडेंट यूनियन के केंद्रीय अध्यक्ष मनोज टुडू ने कहा कि कुडमी समुदाय लगातार अनुसूचित जनजाति की मांग सरकार से कह रही है पूर्व में इनके मांग के अनुसार ट्राईबल रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा सर्वे कराई गई थी जिनमें से कुर्मियों को जनजाति नहीं पाया गया था और एक बार फिर से कुर्मी समुदाय फिर से सर्वे करने की मांग कर अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग की जा रही है और यह यह मांग करके कुड़मी समुदाय अपने पूर्वज एवं हिंदू देवी देवताओं का अपमान कर रहे हैं।कुर्मी समुदाय भारत के मूल निवासी है और ऐतिहासिक तत्व से जानकारी मिलती है कि इनके पूर्वज कुर्मी जाति शूरवीर कर्मवीर छत्रिय,महान कर्मयोगी ,महान हिंदू कृषक जाती है।

मध्य भारत में इनके राजा राजा चलोम, मिहिरमौज,साबाजी ,महाराज छत्रपति शिवाजी इनके पूर्वज है।ब्रिटिश काल में एक पनिशमेंट के तौर पर कुडमियो को अनुसूचित जनजातियों में शामिल कर दिया गया था। उनके सभी आधुनिक भारत के पूर्वज वीर क्रांतिकारी द्वारा लगातार कई वर्षों तक अनुसूचित जनजातियों से हटाने को लेकर के सभाएं के आंदोलन किए गए 1894 ईस्वी में लखनऊ में कुर्मी सदस्य सभा बनाई गई जिसमें प्रत्येक वर्ष अनुसूची जनजाति से हटाने की मांग की जाती रही ।बाद में 1909 ईस्वी में इन्होंने अखिल भारतीय कुर्मी क्षत्रिय महासभा बनाई।

और उनके पूर्वजों की काफी संघर्ष , मेहनत एवं आंदोलन से 1935 ईस्वी में इन्हें अनुसूचित जनजातियों से बाहर करने में सफल हुए उनके वीर क्रांतिकारी पूर्वज द्वारा।और महत्वपूर्ण बात यह है कि उस समय काल में अनुसूचित जनजातियों हिंदी भाषा बोलने में सक्षम नहीं थे सभी जनजातीय अपने ही मातृभाषा में बात किया करते थे, अभी भी वर्तमान समय में बहुत सारी जनजातीय हैं जो हिंदी बोलने में सक्षम है यह सभी जनजातियों की पहचान है।इसके ठीक विपरीत कुर्मी समुदाय ब्रिटिश शासन काल में भी जमींदारों के यहां पर काम किया करते थे सरकारों के साथ भी काम क्या करते थे ,कुड़ियों का स्वभाव, कार्य, कार्यशैली ही इसे अनुसूचित जनजाति से बाहर करती है।अनुसूचित जनजातियों का पहचान उनका स्वभाव है कि उनमें संकोच ,लज्जा डर, किसी गैर लोगों के सामने अपने आप को पेश करने से डर लगता था।

आज कुडमियो के वीर क्रांतिकारी पूर्वज सोचते होंगे कि उतनी कड़ी मेहनत से अनुसूचित जनजातियों से ,आदिवासियों से तुम लोगों को बाहर निकला आज फिर से तुम आदिवासियों में शामिल होने की मांग कर रही हो इससे उनके पूर्वजों की आत्मा कुटिंत हो रही होगी साथ ही साथ हिंदू देवी देवताओं का भी अपमान किया जा रहा है क्योंकि यह आदिवासी बनने के लिए अपने हिंदू देवी देवताओं को त्याग करने के लिए भी तैयार है,सभी वेद पुराण गीता रामायण में कहा गया कि मनुष्य जिस जिस धर्म में जन्म लिया हो उसी धर्म में मरना उचित होता है यही सबसे बड़ा धर्म है, धर्म परिवर्तन करने से आदमी के कुलो का नाश होता है। कुछ स्वार्थ एवं लाभ के कारण कुडमी समुदाय अपने पूर्वजों के त्याग एवं तपस्या को भुलाने को तैयार है हिंदू देवी देवताओं को त्याग करने को तैयार है। और ये भी सरना धर्म में शामिल होना चाहते हैं।इस संबंध में राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार से कहना चाहता हूं कि वोट बैंक को ध्यान में ना रखते हुए ईमानदारी पूर्वक इन समुदायों का रिसर्च किया जाए।इनके मांग यह दर्शाता है कि यह भारतवर्ष के सभी प्रतिष्ठित जगह पर अपने आप को स्थापित करना चाहते हैं दूसरों के कंधों पर बंदूक रखकर गोली चलाना चाहते हैं।

कुडमी समुदाय तो जरूर आगे बढ़ जाएगी परंतु आदिवासी समाज और भी पिछड़ा हो जाएगा इन बातों पर भी ध्यान एवं गंभीर होकर चिंतन करने की आवश्यकता है राज्य एवं केंद्र सरकार को दो समुदायों के बीच आंतरिक कल्ह,देश में आपसी भाईचारा समाप्त होने की संभावना बढ़ जाएगी। आदिवासी समाज आदिकाल से ही शालीनता बिना छल कपट के इंसान रहे हैं यह सब के प्रति प्यार बनाकर चलते हैं आज यह कुर्मी समुदायों का आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक शिक्षा स्वास्थ्य सभी क्षेत्र में इनका स्तर अनुसूचित जनजातियों से बहुत ही ऊंचा है और इन्हें ओबीसी का भी एक के अच्छा खासा आरक्षण प्राप्त हो रहा है फिर भी यदि वोट बैंक के लालच में यदि अनुसूचित जनजातियों इन्हें बनती है तो मूल रूप से वास्तविक अनुसूचित जनजातियों को प्रत्येक क्षेत्र में भारी छती का सामना करना पड़ सकता है। आदिवासियों पर सभी क्षेत्रों मे वार किया जा रहा है सरना धर्मकोड ना देना ,सभी समुदाय को धीरे-धीरे अनुसूचित जनजातियों में शामिल करना का प्रयास करना,धर्मस्थल को भी निशाने में लेना ,जल जंगल जमीन से बेदखल करने का प्रयास चल रहा है यह सब काफी दुखद है।

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