यहीं व्यापार है…राजनेता चालाक तो मतदाता बुद्धिमान हैं….

मनीष बरणवाल

जामताड़ा:4 जून को चुनाव परिणाम घोषित होना है। कौन सी पार्टी के सिर जीत का सेहरा बंधेगा यह भविष्य के गर्भ में है। लेकिन चुनाव परिणाम के उपरांत कुछ चेहरे खिलेंगे, कुछ मुरझाएंगे। और तो और जीतने वाले लड्डू भी बाटेंगे।दुमका लोकसभा के चुनाव परिणाम का असर हमारे जामताड़ा शहर पर भी पड़ेगा। ये बात मैंने मोती के दुकान में अनुभव किया। शहर के प्रतिष्ठित मिष्ठान भंडार जे के स्वीट में मंगलवार देर शाम मैं इसी दुकान पर था। दो लोग आए,सौ किलोग्राम लड्डू का ऑर्डर देना है। वैसे मैं दोनों को पहचानता हूं। दोनों ही मंझे हुए राजनेता हैं। दुकानदार ने पूछा भाई चुनाव में तो आप दोनों ही पार्टी के उम्मीदवार नहीं हैं, फिर आप लड्डू का ऑर्डर क्यों दे रहे। दुकानदार को बताया गया कि राजनीतिक समझौते के तहत उन्होंने किसी तीसरी पार्टी को अपना समर्थन दिया है। दोनों के चेहरे पे रहस्यमयी मुस्कान थी। दुकानदार को बताया गया कि मतदान से लेकर मतगणना तक कार्यकर्ताओं का जोश बनाए रखना होता है। लड्डू का ऑर्डर उनमें यह विश्वास भरने के लिए है कि जीत हमारी ही हो रही है। दुकानदार को पांच हजार रुपए एडवांस देकर सौदे की गंभीरता पर उसका भी विश्वास जीता गया। लेकिन यहां भी वे चंदे वाली बात न भूले। दुकानदार ने उनके एडवांस वाली रसीद पर पांच हजार का चंदा लिख दिया, इस कंडीशन के साथ कि उनके द्वारा किया गया एडवांस वापस नहीं होगा। इस तरह पंद्रह हजार में से दस हजार का भुगतान हो चुका था। दोनों ही कार्यकर्ता बड़े खुश थे, उनको पांच हजार का निजी फायदा हो गया था। दुकानदार का बेटा अपने पिता के पांच हजार चंदे  वाले गणित को समझने की कोशिश कर ही रहा था कि फूल से खिले चेहरे के साथ राष्ट्रीय पार्टी का कार्यकर्ता भी सौ किलोग्राम लड्डू के ऑर्डर के साथ उसी दुकान पर पंहुचा। दुकानदार ने सौदे में उससे पांच हजार एडवांस लिए और पांच हजार रुपए का चंदा उसके भी रसीद पर लिख दिया। वह कार्यकर्ता भी उतनी ही खुशी के साथ वापस गया। दुकानदार के बेटे ने अपने पिता से प्रश्न किया कि आपने खामख्वाह दस हजार रुपए का नुकसान कर लिया। हम तो यहां कमाने बैठे हैं। इनको चंदा देने नहीं।फिर एक ही दिन दौ 

सौ किलो लड्डू बनाने लायक जुगाड भी हमारे पास नहीं है।पिता ने मुस्कुराते हुए कहा बेटा , यहीं व्यापार है। बेटा अभी भी अपने पिता को अवाक देख रहा था। दस हजार रुपए चंदा देकर भी पापा खुश क्यों हैं? बाजार से अपने आवास तक मैं यही सोच रहा था कि आप चाहे जितने भी चालाक हों, बुद्धिमान व्यक्ति से पाला पड़े तभी समझ में आए।

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