नालंदा के बच्चों गांव के नाम को सरनेम के रूप में लगाते

विशेष संवाददाता द्वारा

नालंदा: आज के जमाने में माता-पिता अपने बच्चों का नाम फ़िल्म अभिनेता अभिनेत्री या फिर मशहूर राजनेताओं के नाम पर रखना पसंद करते हैं। ऐसे में आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि नालंदा के 7 ऐसे गांव है, जहां के लोग अपने नाम के साथ गांव के नाम को सरनेम के रूप में लगाते हैं। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। इसका निर्वहन आज की युवा पीढ़ी भी कर रही है। युवाओं का कहना है कि इससे उनकी पहचान बनी रहती है। लोग समझ जाते है कि किस इलाके से हैं। कई लोग तो ऐसे हैं जो दशकों से दूसरे राज्यों में रह रहे हैं। दोबारा गांव नहीं आए, बावजूद वे अपने बच्चों के नाम के साथ गांव का नाम रखे हुए हैं। गिलानी गांव के लोग अपने नाम के साथ गिलानी जोड़ते हैं। इसी तरह अस्थावां के अस्थानवी, हरगावां के हरगानवी, डुमरावां के डुमरानवी, उगावां के उगानवी, चकदीन के चकदीनवी व देशना गांव के लोग देशनवी लगाते हैं।गिलानी गांव में हिंदू-मुस्लिम दोनों लगाते हैं गिलानी सरनेमइन सबमें गिलानी सबसे खास है। अन्य छह गांवों में सिर्फ मुस्लिम धर्म के लोग इस परंपरा का पालन कर रहे हैं। वहीं गिलानी में हिन्दू-मुस्लिम दोनों समुदाय के लोग यह परंपरा निभा रहे हैं। गांव के हमजा गिलानी की माने तो मुगलकाल से ही यह परंपरा चली आ रही है। ऐसी मान्यता है कि विश्व के सबसे बड़े बुजुर्ग हजरत अब्दुल कादिर जिलानी के नाम से ‘गिलानी’ नाम रखा गया है।

अरबी भाषा में ‘ग’ अक्षर नहीं होता, इसलिए लोग उनको जिलानी कहते हैं। इसकी वजह से गांव का पूरा नाम मोहीउद्दीनपुर गिलानी है। ऐसे शुरू हुआ गिलानी सरनेम मौलाना मुजफ्फर गिलानी की किताब ‘मजमीन’ के अनुसार गिलान एक जगह का नाम है। जहां बड़े पीर के अनुयायी रहा करते थे। वहां से किसी कारणवश कुछ लोग मोहीउद्दीनपुर गिलानी आए थे। उनलोगों के सरनेम में भी गिलानी लगा हुआ था। यहां उन लोगों के प्रभाव व आपसी सौहार्द को देख कर लोग अपने नाम के सरनेम में गांव का नाम लगाने लगे।गिलानी गांव में 5000 लोगों की आबादीगिलानी गांव में कुल 5000 लोगों की आबादी है। यहां मुस्लिम समुदाय के अलावा हिंदू धर्म के पासवान, कोइरी, यादव, नाई, रविदास, कहार, कुम्हार पंडित जाति के लोग रहते हैं। दोनों धर्म के लोग अपने अपने नाम के पीछे गिलानी सरनेम का उपयोग करते हैं। गांव के लोगों ने बताया कि मोहीउद्दीनपुर गिलानी सदियों पुराना गांव है। यहां एक नहीं अनेकों विद्धान, अदीव, साहित्यकार, कई आईएएस, इंजीनियर, डॉक्टर हुए हैं। इतना ही नहीं यहां के कई लोग विदेशों में भी परचम लहरा चुके हैं। आम के लिए प्रसिद्ध है यह गांवयहां के रहने वाले मौलाना मनाजिर अहसन गिलानी की किताब विश्व प्रसिद्ध है। इनके द्वारा लिखी गईं 14 किताबें विश्व प्रसिद्ध हुई हैं। यह गांव आम के लिए भी काफी प्रसिद्ध है। यहां आम के बड़े-बड़े बगीचे हैं। यहां दूसरे जिले के लोग भी आम खरीदने आते हैं। नाम के साथ गांव का नाम सरनेम रखने से अपनी मिट्टी की खुशबू साथ रहती हैं।

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