200 वर्षों से भी अधिक समय से रानीपुर स्थित परगला नदी में मकर संक्रांति पूजा और मेला का होता आया है आयोजन।

* स्वर्गीय अंबिका प्रसाद तिवारी ने प्रारंभ किया था मकर संक्रांति पूजा व मेला* रानीपुर गांव के तिवारी परिवार के पूर्वजों ने सत्य घटित घटना पर सुरू की थी यह उत्सव, वर्ष2000 से स्वर्गीय ठाकुर हासदा के नेतृत्व में साफा होड़ का काफी संख्या में लोगों का होने लगा जुटाव

* इस वर्ष समुचित वर्षा नहीं होने के कारण नदी पड़ा है सूखा श्रद्धालुओं को उठाना पड़ेगा दिक्कत हालांकि आयोजकों के द्वारा नदी के अंदर ही जल कुंड का क्या गया है निर्माण।

सुस्मित तिवारीहिरणपुर ( पाकुड़)

रानीपुर स्थित परगला नदी के किनारे अंबिकेश्वर मंदिर में मकर संक्रांति के उपलक्ष में आयोजित पूजा और मेला का आयोजन 200 साल से अधिक समय से आयोजित होता आ रहा है। यह आयोजन और परंपरा रानीपुर गांव के तिवारी परिवार के पूर्वजों द्वारा दिलचस्प घटना के उपरांत प्रारंभ किया गया था।वर्तमान में तिवारी परिवार के रिटायर्ड पदाधिकारी रविंद्र नाथ तिवारी, समाजसेवी गौतम तिवारी और अरुण तिवारी आदि ने इस संबंध में पूछे जाने पर कहे हमारे पूर्वज जिसने उक्त परंपरा को प्रारंभ किया था उनका नाम अंबिका प्रसाद तिवारी था। जो शिव भक्त भी थे , और इन्होंने ही उक्त पूजा स्थल का नाम अंबिकेश्वर दिया था। पूजा प्रारंभ के संबंध में पूछे जाने पर दिलचस्प घटित घटना को अपने पूर्वजों से सुनी बातों को स्मरण करते हुए बताते हैं की, 200 पूर्व से यह आयोजन हमारे पूर्वजों द्वारा आयोजित क्या जाता था, आयोजन के सम्बन्ध में कहते हैं भले ही कोई यकीन न करें पर सत्य घटना पर आधारित पूजा की शुरुआत, स्मरण करते हुए मानो सुन्य में खो जाते हैं, कहते हैं महेशपुर राज के अधीन रानीपुर के अंबिका प्रसाद तिवारी का जमीन दारी वर्तमान में नीति पर अंचल क्षेत्र के ताल पहाड़ी डुमरिया से लेकर बलरामपुर आदि क्षेत्रों में फैला था, उस समय ताल पहाड़ी डुमरिया में कोतवाली और कोट हुआ करता था, जहां प्रत्येक दिन स्वर्गीय अंबिका प्रसाद तिवारी महेशपुर राज्य से लौटते वक्त कोतवाली और कोर्ट में जरूरी कामों का निस्तारण कर देर रात को घोड़े में सवार होकर अकेले रानीपुर स्थित आवास आते थे।उस समय अधिकांश हिस्सा विरान हुआ करता था और परगला नदी मैं पुल नहीं रहने के कारण उतर कर ही पार किया जाता था, प्रत्येक स्वर्गीय अंबिका प्रसाद तिवारी इसी तरह आते थे।क्रम में प्रायः रानीपुर परगला नदी पार करते उन्हें घुंगरू और झमाझम की आवाज देता था, बताते हैं कि इसी क्रम में एक रात से तिवारी आ रहे थे तब रानीपुर परगला नदी पार करने के क्रम में उन्हें भय का अनुभव हुआ, ऐसा भय की नदी पार करना उनके लिए असंभव था । घोड़ा भी चिंघाडाडना प्रारंभ किया। वे सहमे खड़े थे, तभी पीछे से आवाज सुनाई दी डरो मत चलते रहो, मैं तुम्हें प्रत्येक दिन नदी पार कराता हूं, मैं इसी किनारे रहता, घर जाकर आने वाले मकर संक्रांति में मेरी पूजा यहां पर आरंभ करो, ऐसा सुनने के बाद उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो लंबी जटा से लेस, हाथों में त्रिशूल, अर्धनग्न अवस्था में एक विशालकाय व्यक्ति खड़े थे, पुणे समझते देर न लगा बदहवास घर आए और बेहोश हो गए, तत्पश्चात होश आने पर घटना सभी को बताएं और दूसरे दिन ही बनारस गए और एक शिवलिंग और पूजा के लिए बेल वृक्ष लेकर आए। उस वक्त नदी किनारे कोई मंदिर न रहने के कारण और दैनिक पूजा सुचारू ढंग से करने के उद्देश्य रानीपुर स्थित अपने घर में स्थापित कर दैनिक पूजा प्रारंभ किए, और मकर संक्रांति में प्रत्येक वर्ष रानीपुर से अपने सर पर शिवलिंग लाकर नदी किनारे अस्थाई मंदिर नुमा घर बनाकर शिवलिंग और एक भगवान शिव शंकर की मूर्ति बनवाकर रखकर प्रत्येक मकर संक्रांति में पूजा और मेला का आयोजन करते। इस प्रकार रानीपुर परगला नदी किनारे मकर संक्रांति उत्सव और पूजा प्रारंभ हुआ था।उक्त शिवलिंग और बेल वृक्ष आज भी रानीपुर स्थित तिवारी परिवार में अवस्थित है।उक्त परंपरा के अंतिम अनुयाई स्वर्गीय पंकज कुमार तिवारी थे, उनके असमर्थ और अस्वस्थ होने के बाद, श्री गौतम तिवारी उक्त आयोजन को व्यापक रूप देने के उद्देश्य सामाजिक पहल प्रारंभिक कर मंदिर निर्माण का बीड़ा उठाया, जिसे भव्य रूप स्वर्गीय ठाकुर हंसदा एवं इनके सहयोग ने मिलकर दीया। स्वर्गीय ठाकुर हांसदा ने उक्त आयोजन वर्ष 2000 में साफा गुरुओं को बुलाना प्रारंभ किया फलस्वरूप सेकड़ों की संख्या में साफा गुरु अपने हजारों अनुयायियों को लेकर रानीपुर परगला नदी प्रत्येक मकर संक्रांति में पहुंचने लगे।लेकिन इस वर्ष समुचित वर्षा नहीं होने के कारण नदी में पानी नहीं रहने से सूखा पड़ा है, जिससे श्रद्धालुओं को कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा, हालांकि आयोजकों के द्वारा नदी में ही जल कुंड का निर्माण कर दिया गया है ताकि श्रद्धालु जल लेकर भगवान शंकर को चढ़ा सके।मालूम हो कि नदी किनारे के मंदिर में वर्तमान में स्थापित शिवलिंग को भी तिवारी परिवार के रिटायर्ड पदाधिकारी रविंद्र नाथ तिवारी ने अपने हाथों संकल्प कर स्थापित किया था।

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