आदिवासी समाज का अपना धर्म कोड ना होने के कारण आदिवासियों का अस्तित्व खतरे में

विश्व का पहला धर्म सरना धर्म कोड केंद्र सरकार लागू करें : मनोज टुडू

हजारीबाग। यंगब्लड आदिवासी समाज ऑल संथाल स्टूडेंट्स यूनियन के केंद्रीय अध्यक्ष मनोज टुडू ने आज सरना धर्म कोड को लेकर भारत बंद का समर्थन करते हुए कहा कि झारखंड सरकार के विधानसभा से सरना धर्म कोड का बिल पास होकर केंद्र सरकार के पास भेजा गया है परंतु केंद्र सरकार द्वारा अभी तक सरना धर्म कोड को लेकर किसी भी प्रकार के तथ्य को आदिवासियों के बीच नहीं रखा है इससे आदिवासी समाज के बीच एक आक्रोश उत्पन्न हो रही है क्योंकि आदिवासी समाज का अपना धर्म कोड ना होने के कारण आदिवासियों की अस्तित्व खतरे में आ गया है

धीरे-धीरे आदिवासियों की संख्या कम होती जा रही है ठीक वैसे ही है जब टूटे हुए घड़े से बूंद बूंद कर पानी टपकने जैसा है एक समय ऐसा आएगा जब बूंद बूंद से घड़ा के पानी समाप्त हो जाएगा ।दूसरे शब्दों में कहा जाए तो पूरे विश्व से आदिवासियों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा क्योंकि आदिवासियों को संरक्षित करने के लिए इनका जो रूढ़िवादी सरना धर्म जो है अभी तक इन्हें प्राप्त नहीं हो सका है।

जो कि बहुत ही गंभीर विषय है।आदिवासियों का समाज वास्तव में लाखों साल पुराना है और सभी आदिवासियों को शासन व्यवस्था है और इसी शासन व्यवस्था के तहत देश में शासन व्यवस्था को स्थापित किया गया। संथालियों के लिए संथाल शासन व्यवस्था, मुंडा शासन व्यवस्था के लिए मुंडा शासन व्यवस्था, उरांव के लिए पहाड़ा शासन व्यवस्था इसी प्रकार अन्य जनजातियों की शासन व्यवस्था है ।

आज भी शासन व्यवस्था में एक मुखिया या ग्राम प्रधान, एक पुजारी ,एक संदेशवाहक, और सभी गोत्रों को अलग-अलग क्षेत्र में अलग-अलग जिम्मेदारी देकर विभाजित किया गया जिनके अलग-अलग नामकरण है , जिन्हे अपने अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है जो वर्तमान समय में भी प्रत्येक ग्राम में शासन व्यवस्था देखने को मिलती है।प्राचीन काल से अभी भी वर्तमान समय में हमारे गांव के मांझी थान में शिवलिंग आकार के तीन पत्थर होता है जिन्हें आदिवासी समाज पुजते हैं और आर्य समाज इसी पत्थरों देवताओं का नामांकन शिवलिंग कर दिया गया।

आदिवासी समाज द्वारा अगस्त सितंबर में आदिवासियों द्वारा करमा पूजा भाई बहनों का त्यौहार है जिसे आर्य समाज प्रभावित होकर इसका नाम रक्षाबंधन किया। अक्टूबर-नवंबर में सोहराय पर्व जो एक आदिवासियों के लिए धन लक्ष्मी की पूजा की जाती है जिसे आर्य समाज ने दीपावली का नामकरण किया।आदिवासियों का सरहुल महापर्व एक फूलों का त्यौहार है प्राचीन काल में स्कूलों से ही लोग फूलों के रंग से रंग खेलते थे और इसका नामकरण आर्य समाज ने अपने लिए बाद में होली कर दिया गया और भी बहुत सारे बातें जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि सरना ही सनातन है। जो धर्म ,दुनिया में सर्वप्रथम धर्म (प्राकृतिक धर्म )सरना धर्म है तो उसका अधिकार बनता है कि उनको सरना धर्मकोड दिया जाए जो भारत देश का सर्वप्रथम धर्म है

जो प्रकृति पर आधारित है धरती ,आकाश ,वायु ,अग्नि एवं जल, आदिवासी सरना धर्म के लोग प्रकृति के रूप की अपने सारे विधि-विधानों को संपन्न करते हैं।केंद्र सरकार से आग्रह करता हूं कि यह गंभीर विषय जो आदिवासियों के अस्तित्व से जुड़ा हुआ है जो दुनिया का सर्वप्रथम धर्म प्रकृति धर्म सरना धर्म उसे दिया जाए क्योंकि पूरा दुनिया प्रकृति पर निर्भर है

धरती आकाश जल अग्नि वायु, यह है तो संसार है अन्यथा संसार तबाह हो जाएगा इसलिए जो प्राकृतिक धर्म सरना धर्म है उसे जल्द से जल्द लागू किया जाए आदिवासियों के लिए।एक बार फिर से आदिवासी समाज पूरे संगठित होकर गोल बंद होकर केंद्र सरकार से अपनी मांग करता है कि सरना धर्म को देश के लिए लागू किया जाए , ना मिलने पर वृहत पैमाने में आंदोलन भी किया जाएगा क्योंकि सरना धर्म आदिवासियों के अस्तित्व को संरक्षित करने का एक अनमोल कार्य है।

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