प्रियंका से सहमें अंधभक्त?

(एजेंसी के द्वारा), ऐसा प्रतीत हो रहा है मानों लोकसभा चुनाव 2019 कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी पर केंद्रित हो गए हैं। दरअसल सोशल मीडिया से लेकर न्यूज-चैनलों तक में अब प्रियंका छा गई हैं। वो जहां जाती हैं लोग इंदिरा गांधी जिंदाबाद के नारे लगाते हुए प्रियंका को उनकी जगह देखने लगते हैं। जनता में मानों संदेश देने का काम किया जा रहा है कि देश को दूसरी इंदिरा मिल गई है। ऐसे में जब प्रियंका ने गंगा यात्रा शुरु की तो उससे पहले विरोधियों ने उन पर निशाना साधते हुए मोदी-मोदी के नारे लगाए। इसके बाद कांग्रेस नेताओं व समर्थकों ने कहना शुरु कर दिया कि प्रियंका की लोकप्रियता से अंधभक्त घबरा गए हैं और सहमें हुए वो उनका विरोध कर रहे हैं। प्रियंका मंदिर में पूजा-अर्चना से लेकर दरगाह व अन्य धार्मिक स्थलों में जाती हैं और लोगों की समस्याएं सुनती हैं, इस कारण भारी भीड़ उनके साथ देखी जाती है। यह अलग बात है कि प्रियंका खुद चुनाव नहीं लड़ रही हैं, लेकिन कांग्रेस को उनके सक्रिय राजनीति में आने से बल जरुर मिला है।

कुछ दिनों पहले देश के 108 अर्थशास्त्रियों ने आर्थिक आंकड़ों में राजनीतिक दखल को लेकर चिंता जाहिर की थी। दरअसल इन अर्थशास्त्रि‍यों का कहना था कि ‘संस्थाओं की आजादी’ को बहाल किया जाए और सांख्यिकीय संगठनों की ईमानदारी को बनाए रखा जाए। अब जबकि लोकसभा चुनाव की तारीखें घोषित हो चुकी हैं तो इसकी काट करते हुए देश के अनेक चार्टर्ड अकांउटेंट्स ने इसे ‘अवॉर्ड वापसी जैसा ड्रामा’ करार दिया और बताया है कि आर्थिक आंकड़ों में जो बताया जा रहा है वैसा कुछ नहीं है, बल्कि देश लगातार उच्च आर्थिक वृद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। इस पर समीक्षकों का कहना है कि यदि पहली वाले आर्थिक आंकड़े और अर्थशास्त्रियों की चिंता राजनीति प्रेरित थी तो इन चार्टर्ड अकांटेंट्स का यह कहना कि ये तमाम आरोप मनगढ़ंत प्रतीत होते हैं और इससे पहले हुए ‘सम्मान की वापसी’ जैसे ड्रामे की तरह लगते हैं। भी राजनीति प्रेरित ही प्रतीत होते हैं, जिसके जरिए वो सवालों से घिरी मौजूदा केंद्र सरकार और पार्टी विशेष को बाहर निकालने का काम करते प्रतीत हो रहे हैं।

पिछले आम चुनाव में जिस तरह से गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के स्टार प्रचारक नरेंद्र मोदी को चाय वाला प्रचारित करते हुए भावनात्मक तौर पर गरीबों को पार्टी से जोड़ने का काम किया गया था अब उसी तर्ज पर मैं भी चौकीदार कैंपेन चलाकर फिर गरीबों को भावुक किया जा रहा है। खबरों में बताया जा रहा है कि इस ‘चौकीदार’ की जंग में भाजपा ने बाजी मार ली है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने आपको देश का सबसे बड़ा चौकीदार बताते रहे हैं ऐसे में राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस ने तंज कसा कि ‘चौकीदार चोर है’। अब चूंकि आम चुनाव घोषित हो चुके हैं अत: भाजपा ने इसे इलेक्शन कैंपेन के तौर पर लिया और मैं भी चौकीदार का नारा दे दिया। इससे हो यह रहा है कि देश के असली चौकीदार आहत हो रहे हैं, क्योंकि उन्हें भाजपा और उनकी सरकार बता रही है कि कांग्रेस उन्हें भी चोर कह रही है, वहीं कांग्रेस का कहना है कि फर्जी चौकीदारों ने चोरी करके असली और ईमानदार चौकीदारों को आगे करके राजनीति शुरु कर दी है, जिससे हमारे देश के चौकीदारों का अपमान हो रहा है। ठीक वैसे ही जैसे कि खुद को चायवाला बताकर असली चायवालों का अपमान किया गया, वैसे ही अब मैं भी चौकीदार का नारा देकर असली और ईमानदार चौकीदारों को अपमानित किया जा रहा है। बहरहाल मामला जो भी हो, लेकिन चौकीदार की जंग तब तक जारी रहने वाली है जब तक कि चुनाव खत्म नहीं हो जाते।

गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर की अंतिम विदाई के साथ ही एक बार फिर कांग्रेस के 14 विधायकों ने राजभवन में यह कहते हुए दस्तक दी कि वो राज्य में सबसे बड़ी पार्टी है अत: सरकार बनाने का अवसर उन्हें दिया जाए, लेकिन देर रात राज्यपाल मृदुला सिंहा भाजपा नेता प्रमोद सावंत को मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलवा कर एक बार फिर कांग्रेस को निराश कर दिया। सरकार बनी रहे और समीकरण बिगड़ें नहीं इसलिए राजभवन में प्रमोद सावंत के साथ ही महाराष्ट्रवादी गोमंतक पार्टी के सुदीन धावलीकार और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के विजय सरदेसाई समेत 11 मंत्रियों को भी पद और गोपनीयता की शपथ दिलवा दी गई। बताया जा रहा है कि चूंकि सावंत भूतपूर्व मुख्यमंत्री पर्रिकर के करीबी रहे हैं और उन्हें संघ का समर्थन भी हासिल है, अत: आगे भी किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होने वाली है। उनके नेतृत्व में यह सरकार कार्यकाल पूर्ण करेगी, ऐसी उम्मीद है और तब तक कांग्रेस विधायक अपने आपको ठगा बतलाते रहेंगे, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है।

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