दिन के क़रीब एक बजे हैं. तपती दोपहरी में रामबचन साहू अमेठी कलेक्ट्रेट परिसर में मुख्य गेट के भीतर उस दीर्घा तक पहुंचने में कामयाब हो गए हैं जिसे पत्रकारों और कैमरापर्सन्स के लिए बनाया गया है.
सामने नामांकन स्थल के बाहर भीड़ लगी है, इमारत की दीवारें मतदान करने की अपील वाली छोटी होर्डिंग्स से पटी हैं, अंदर राहुल गांधी अपने परिवार वालों के साथ नामांकन की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं और कांग्रेस के अन्य नेता कभी इस कमरे के भीतर जा रहे हैं तो कभी बाहर आ रहे हैं.
ज्योतिरादित्य सिंधिया कई बार पत्रकारों के पास आकर कुछ बातचीत करते हैं तो कुछ लोग उनके साथ सेल्फ़ी लेने की भी कोशिश करते हैं. तभी रामबचन साहू और ज्योतिरादित्य का बांस की बैरिकेडिंग के आर-पार आमना-सामना होता है. साहू ख़ुशी के मारे हाथ उठाते हैं और दाहिने हाथ का पंजा दिखाते हुए ज़ोर से कहते हैं, “अबकी पांच लाख से कम नहीं.”
हालांकि इससे ये तो नहीं स्पष्ट हो सका कि वो राहुल गांधी को पांच लाख वोट मिलने की बात कर रहे हैं या फिर हार-जीत का अंतर पांच लाख से होने की बात कर रहे हैं, लेकिन इतना ज़रूर पता लग गया कि उनकी नज़र में अमेठी में राहुल गांधी को कोई चुनौती नहीं है. अमेठी में मतदाताओं की कुल संख्या क़रीब 17 लाख है.
अमेठी से चौथी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार यानी 10 अप्रैल को नामांकन किया. नामांकन से पहले उन्होंने एक रोड शो किया जिसमें यूपी कांग्रेस के तमाम नेताओं के अलावा सोनिया गांधी समेत परिवार के कई सदस्य मौजूद रहे.
राहुल गांधी ने खुली गाड़ी में बैठकर अपना रोड शो अमेठी के ज़िला मुख्यालय गौरीगंज में किया. दो किलोमीटर लंबे इस रोड शो को पूरा करने में उन्हें दो घंटे से ज़्यादा का समय लगा और रास्ते भर लोगों ने उनका अभिवादन किया, फूल बरसाए और नारेबाज़ी की.
नामांकन के दौरान कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी, रॉबर्ट वाड्रा, उनके दोनों बच्चे, ज्योतिरादित्य सिंधिया, डॉक्टर संजय सिंह, पीएल पुनिया, प्रमोद तिवारी जैसे तमाम कांग्रेसी नेता मौजूद रहे.
ये महज़ संयोग ही था कि सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ही रफ़ाल मुद्दे पर जांच की अनुमति देने संबंधी याचिका मंज़ूर की. राहुल गांधी भी मीडिया से संक्षिप्त बातचीत में सिर्फ़ इसी मुद्दे पर केंद्रित रहे.
क़रीब दो बजे तक कलेक्ट्रेट परिसर से राहुल गांधी के बाहर निकलते ही कांग्रेस कार्यकर्ताओं की भीड़ वहां से हटने लगी और कार्यकर्ताओं के नारों में राहुल-सोनिया-प्रियंका के अलावा उन नेताओं का भी नाम शामिल हो गया जिनके साथ वे आए हुए थे. इन लोगों से बातचीत करके एक ही निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता था कि अमेठी में राहुल गांधी को चौथी बार भी चुनाव जीतने से कोई नहीं रोक सकता, बल्कि इस बार जीत का अंतर भी कहीं ज़्यादा होगा.
गौरीगंज में ही अमेठी ज़िला कांग्रेस कमेटी का भी दफ़्तर है. वहां से क़रीब 15 किमी. दूर अमेठी क़स्बे में जब लोगों से बात की गई तो वहां सबकी राय वैसी नहीं थी जैसी कि कलेक्ट्रेट परिसर का आस-पास जमा हुए लोगों की थी. इसकी वजह ये भी थी कि गौरीगंज में उस वक़्त ज़्यादातर कांग्रेस कार्यकर्ता थे जो आस-पास के ज़िलों से भी आए थे, जबकि अमेठी में वहां के स्थानीय लोग ही थे.
अमेठी के राजर्षि चौराहे पर ख़ुद का व्यवसाय करने वाले तीस वर्षीय अभिजीत शुक्ल कहते हैं, “यहां कोई मुद्दा नहीं है, कोई लड़ाई नहीं है, राहुल गांधी बड़े अंतर के साथ जीत रहे हैं.” इसकी वजह पूछने पर पास में ही खड़े प्रमोद पांडेय कहते हैं, “वजह यही है कि राहुल गांधी और उनके परिवार के लोगों ने अमेठी के विकास के लिए इतना कुछ किया है कि लोग उनके अलावा किसी दूसरे को वोट दे ही नहीं सकते.”
अनिल लोहानी का कहना था, “72 हज़ार रुपये सालाना की घोषणा गेमचेंजर बनने जा रही है. आपने देखा नहीं किस तरह से लोग टी-शर्ट्स पर इस योजना को लिखकर लाए थे और रोड शो में लहरा रहे थे. लोगों को कांग्रेस पर भरोसा है कि वो वादे निभाएगी. मोदी जी ने वादे तो बहुत किए थे पर उन्हें पूरा नहीं किया और बाद में उन्हीं के नेताओं ने उन वादों को जुमला कहकर ख़ारिज कर दिया.”
लेकिन युवा पत्रकार विक्रम भदौरिया इन दोनों बातों को सिरे से ख़ारिज कर देते हैं, “राहुल गांधी से पहले जो विकास हुआ हो, हम उसे नहीं जानते लेकिन राहुल गांधी ने जो कुछ भी किया है, वो अपने चहेतों के लिए किया है. स्मृति ईरानी यहां बार-बार आ रही हैं, लोगों के सुख-दुख में शामिल रहती हैं तो उन्हें इतना हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए.”
अमेठी में भारतीय जनता पार्टी ने राहुल गांधी के सामने एक बार फिर केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को टिकट दिया है. स्मृति ईरानी 11 अप्रैल यानी गुरुवार को नामांकन करेंगी. पिछली बार स्मृति ईरानी राहुल गांधी से एक लाख से ज़्यादा वोटों से हारी थीं. हालांकि उससे पहले के दो चुनावों में राहुल गांधी की जीत का अंतर तीन लाख से ज़्यादा था. यही वजह है कि अमेठी के तमाम लोगों का कहना है कि राहुल गांधी के लिए इस बार मुक़ाबला आसान नहीं है.
अमेठी के ही रहने वाले शशांक शेखर सिंह कहते हैं कि लड़ाई कठिन है लेकिन पलड़ा राहुल गांधी का ही भारी है. शशांक शेखर इसकी वजह बताते हैं, “देखिए वोट यहां पूरी तरह से जाति और धर्म के नाम पर पड़ते हैं. मुस्लिमों का पूरा वोट राहुल गांधी को मिलेगा जबकि हिन्दुओं के वोटों में आधे-आधे का बँटवारा हो जाएगा. तो ऐसी स्थिति में राहुल गांधी की जीत लगभग सुनिश्चित है.”
अमेठी रेलवे स्टेशन के पास एक दुकान के मालिक अपूर्व मिश्र की उम्र क़रीब 25 साल है. अपूर्व मौजूदा केंद्र सरकार की तमाम कमियों के बावजूद उससे हमदर्दी रखते है, “सबसे महत्वपूर्ण है हमारे देश की सीमाओं की सुरक्षा. नरेंद्र मोदी जी ने इस मामले में जो काम किया है, वो आज तक किसी प्रधानमंत्री ने नहीं किया है. उन्हें एक बार और ज़रूर मौक़ा मिलना चाहिए.”
हालांकि अपूर्व इस बात को स्वीकार करते हैं कि उनके किसी मित्र या किसी परिचित को पिछले पांच साल के दौरान कोई नौकरी नहीं मिली जबकि कोशिश बहुत लोगों ने की. कुछेक प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हो गए हैं लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है. उनकी नज़र में नौकरी और रोज़गार कोई मुद्दा नहीं है. वो कहते हैं कि जो सक्षम और योग्य हैं, उन्हें नौकरी मिल ही जाएगी.
अमेठी बस स्टैंड से ही कुछ दूरी पर खेरौना गांव है. इसी गांव से अमेठी को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली थी. वहां के लोग पहले कांग्रेस के पक्के समर्थक थे लेकिन अब कई लोगों का मन डोल गया है. गांव के निवासी राम लखन शुक्ल कहते हैं, “राजीव गांधी तक तो अमेठी का विकास हुआ और उन लोगों ने अमेठी का ध्यान भी रखा. लेकिन राहुल गांधी ने अमेठी में कुछ ख़ास नहीं किया है.”
गांव की ही एक बुज़ुर्ग महिला की शिकायत थी कि उन्हें न तो उज्ज्वला योजना का गैस सिलिंडर मिला है और न ही उनका मकान बना है, जबकि वो ग़रीबी रेखा से नीचे आती हैं. उन्होंने स्मृति ईरानी को भी नहीं देखा है, लेकिन राहुल गांधी के बारे में ये जानती हैं कि वो राजीव गांधी और सोनिया गांधी के बेटे हैं.
गांव के लोगों की ये भी शिकायत है कि राहुल गांधी क्षेत्र में आते भी कम हैं जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी स्मृति ईरानी चुनाव हारने के बावजूद यहां बराबर आती हैं और लोगों की मदद भी करती हैं. ये ज़रूर है कि विकास के नाम पर लोग यही कहते हैं कि स्मृति ईरानी ने भी ऐसा कुछ नहीं किया है जिसे बताया जा सके.
अमेठी के वरिष्ठ पत्रकार योगेंद्र श्रीवास्तव कहते हैं, “विकास के नाम पर तो अमेठी में जो कुछ भी है, निश्चित तौर पर वो गांधी परिवार की ही देन है. इतनी कंपनियां, राष्ट्रीय स्तर की फ़ैक्ट्रियां, संस्थान, सड़क, अस्पताल बहुत कुछ किया है गांधी परिवार ने. पिछले तीन दशक से राज्य में सरकार न होने के बावजूद केंद्रीय स्तर पर कई अच्छे प्रयास हुए हैं लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जिस तरह का आत्मविश्वास पाल रखा है यहां, उसका उन्हें नुक़सान भी हो सकता है. हालांकि अति आत्मविश्वास बीजेपी वालों में भी कम नहीं है.”
लेकिन स्थानीय महाविद्यालय में प्राध्यापक के पद से रिटायर होने के बाद जल संवर्धन के लिए काम कर रहे डॉक्टर अर्जुन पांडे बड़ी बेबाकी से कहते हैं, “अमेठी वीआईपी सीट है. जिस वजह से यह सीट वीआईपी सीट के रूप में जानी जाती है, वह है यहां से गांधी परिवार का जुड़ना. यहां के लोगों को और किसी मुद्दे से बहुत वास्ता नहीं है. उन्हें पता है कि अमेठी से बाहर जाने पर अमेठी उन्हें कैसी पहचान दिलाती है.”
बहरहाल, नामांकन के ज़रिए बुधवार को अगर अमेठी में कांग्रेस ने शक्ति प्रदर्शन किया तो गुरुवार का दिन बीजेपी का है और अमेठी में हो रही तैयारियों को देखकर लगता है कि बीजेपी कोई क़सर नहीं छोड़ने वाली है. इस शक्ति प्रदर्शन में कौन जीतता है, ये तो चुनाव के बाद ही पता लगेगा.
समीरात्मज मिश्र,
(बीबीसी से साभार)