साहब मेहरबान तो आॅपरेटर पहलवान! तालाब के मछली और कमल की जोड़ी जैसी है पहचान।

बात हो रही है पाकुड़ जिले के हिरणपुर प्रखंड का। यूं तो हिरणपुर प्रखंड अपने मवेशी हाट के लिए विख्यात है, परन्तु इन दिनों यह प्रखंड एक पदाधिकारी और कम्प्यूटर आॅपरेटर के संबंधों को लेकर कुछ खास ही चर्चित है।

यह चर्चा इतना खास है कि लोग इस आॅपरेटर को कलेक्शन मास्टर, मैनेज मास्टर, छोटे साहब, साहब का पार्टनर इत्यादि उपनाम से भी बुलाने लगे हैं। जी हां, चर्चा जब सरेआम है तो बात में भी दम है।

सरकार की गरीब कल्याणकारी योजनाओं से ये दोनों अपने कल्याण करने में लगे हैं, यह भी एक चर्चा का विषय है जो कि प्रायः अखबारों, मिडिया न्यूज ग्रूप एवं ट्विटर हैंडल पर पी.एम.ओ. तक को टैग किया जाता है।

सभी तरह की योजना में 15 से 20 प्रतिशत की सुविधा शुल्क साहब के नाम उगाही करता है यह कलेक्शन मास्टर। सभी तरह के कच्चा-पक्का काम में। योजना स्वीकृति की फीस अलग और मेट, मजदूरी, मिस्त्री के एफ.टी.ओ. पर अलग डिमांड।

प्रधानमंत्री आवास में तो खेला होता है खेला! गलत सही लाभुकों को एफ.टी.ओ. से क़िस्त की राशि भेजकर फिर बिचौलियों के माध्यम से निकलवा भी लेते हैं। इस मंत्र का गुरु वर्तमान में समाज का कल्याण करने में लगे हुए हैं।

जिस लाभुक का आवास नहीं बनता है और सुर्खियों में आ जाता है तो ये बाबू लोग बिचौलिये को दूसरे योजना का सहयोग देकर मैनेज करते हैं। साथ ही सुर्ख लोगों को भी मैनेज करने की दौड़ लगाते हैं यह मैनेज मास्टर ~ मैनेजर।

अब इस आॅपरेटर की जो तीसरी खासियत है कि यदि ये अपना जबान किसी भी बिचौलिये को दे दें तो साहब उसे पूरा करने पर कभी नहीं मुकरते और अपनी कलम चलाकर हामी भी भर देते हैं।

सभी तरह की योजनाओं को कम्प्यूटराईज्ड करने का जिम्मा खुद लेकर बैठे हैं, औरों के पल्ले ही नहीं पड़ने देता। इसीलिए तो लोग इसे छोटा साहब के नाम से भी पुकारते हैं।अब बारी है बड़े साहब और छोटे साहब के पार्टनरशिप काम की। पैसे की इतनी भूख आजतक हमने ना सुना और ना देखा।

लिट्टीपाड़ा अंचल में पड़ने वाले प्लाॅट 522, खाता संख्या 95 का एक दुकान, जो विमल दास नामक व्यक्ति के नाम आवंटित था और उसपर बेचारा दुकान चलाता था। इतने में छोटे साहब की वक्र दृष्टि उस दुकान पर पड़ी और बड़े साहब को हस्तक्षेप कराते हुए जबरन उसपर कब्जा कर लिया।

अपनी फरियाद विमल दास ने जिले के आला अधिकारियों तक पहुंचाई पर नतीजा अबतक शून्य है। सुना है की दोनों का पार्टनरशिप में सीमेंट, छड़ का दुकान चलता है उसमें और मनरेगा भेंडर को वहीं से माल उठाने का आदेश दिया जाता है।

सूना है बड़े साहब के कारनामों से जिले के आला अधिकारी भी वाकिफ हैं पर वो इनके खिलाफ कार्रवाई करने से कतराते हैं, ना जाने क्यूं? शायद आला की खाला की बादशाहत कायम रहा हो।

हे भगवान! कहां हो तुम और तुम्हारा कल्कि अवतार? आखिर कब तक न्याय के लिए लोग न्यायालय का चक्कर लगाएंगे और ऐसे दुष्ट प्रवृत्ति के साहब अपने कारनामों से कमजोर, वंचित लोगों को सताते रहेंगे।

तेरे घर देर है अंधेर नहीं, ये तो मैं जानता हूं। जिस तरह तुने झारखंड सरकार को सद्बुद्धि देकर हिरणपुर के जफर हसनात को बर्खास्त कराया। इसे उससे भी कहीं ज्यादा दे। क्योंकि इसे ज्यादा की लत लग गई है और ज्यादती भी करता है।

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