News Agency : लोकसभा के चुनाव में उनका मकसद पूरा हो चुका है। वे 2 से 16 पर पहुंच गये हैं। अब बिहार विधानसभा चुनाव उनकी सबसे बड़ी प्राथमिकता है। लोकसभा चुनाव में नीतीश ने अत्यंत पिछड़े और अल्पसंख्यक समुदाय पर खास फोकस किया था। इसका उन्हें जबर्दस्त फायदा मिला। लोकसभा चुनाव में कामयाबी के बाद नीतीश इस जिताऊ सामाजिक समीकरण को कायम रखना चाहते हैं। लेकिन जब उन्हें लगा कि मोदी कैबिनेट में अत्यंत पिछड़े सांसदों का प्रतिनिधित्व नहीं हो सकेगा तो उन्होंने मंत्रिपरिषद में शामिल होने से इंकार कर दिया। इसके अलावा नीतीश कुमार यह भी बताना चाहते हैं कि बिहार चुनाव में जदयू ही बड़े भाई की भूमिका में होगा। चूंकि भाजपा ने अधिक सीटीं जीती हैं इस लिए नीतीश ने अभी से दबाव बनाना शुरू कर दिया है। जदयू नेता केसी त्यागी ने कहा भी है कैबिनेट प्रकरण का असर 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव पर पड़ेगा।2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश ने पिछड़ा और अत्यंत पिछड़ा वर्ग पर सबसे अधिक भरोसा किया था। 17 में से केवल दो सीट ही ऊंची जाति को दिये थे। 15 में पांच उम्मीदवार अत्यंत पिछड़ी जाति के थे। बिहार में पहली बार इस समुदाय के इतने सांसद चुने गये हैं। अत्यंत पिछड़े वर्ग ( कानू, कुम्हार, कहार, धानुक, माली, नोनिया आदि) में करीब सौ से अधिक जातियां हैं जो अब तक चुनावी राजनीति में हाशिये पर थीं। अनुमान के आधार पर इनका सम्मिलित वोट यादवों, कुर्मियों से अधिक है। नीतीश पिछले कई साल इनको एकजुट करने की कोशिश करते रहे हैं। जब नीतीश ने इस समुदाय के पांच उम्मीदवारों को टिकट दिया तो अत्यंत पिछड़ी जातियों ने थोक भाव में उनको वोट दिये। इसी नीति के तहत नीतीश ने यादव और भूमिहार बहुल जहानाबाद की सीट पर चंद्रेश्वर चंद्रवंशी को टिकट दिया था जो जीते भी।
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