सीएमपीडीआई को एमईसीएल में  विलय  करना देश हित में नहीं

बिशेष प्रतिनिधि द्वारा
राँची : सीएमपीडीआइ देश की रीढ़ की हड्डी हैं। कोयला उद्योग के साथ-साथ देश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सीएमपीडीआई (सेंट्रल माइन प्लानिंग एंड डिज़ाइन इंस्टीट्यूट लिमिटेड), एक ISO-9001 कंपनी, भारत के सबसे बड़े कंसल्टेंसी संगठन और एक विस्तारित पृथ्वी संसाधन क्षेत्र में मार्केट लीडर के रूप में पूर्व-प्रतिष्ठित स्थान रखती है। इस सफलता का एक प्रमुख कारक संसाधन अन्वेषण और विकास, कोयला तैयारी, उपयोग और प्रबंधन, कोयला/सामग्री प्रबंधन व्यवस्था, साथ ही इंजीनियरिंग और पर्यावरण प्रबंधन के क्षेत्र में सेवाओं की पूरी श्रृंखला की पेशकश है।
सीएमपीडीआई की स्थापना वर्ष 1975 में कोल इंडिया लिमिटेड (भारत सरकार का एक उद्यम) की एक सहायक कंपनी के रूप में कोल इंडिया लिमिटेड को कुल परामर्श सेवाएं (यानी अवधारणा से कमीशनिंग तक) प्रदान करने के लिए की गई थी और इसकी सात सहायक कंपनियां हैं जो कुल कोयले का लगभग 90% उत्पादन में योगदान करती हैं। इस के प्रथम सीएमडी स्व.एच. बी घोष तथा बर्तमान में २९वां सीएमडी मनोज कुमार हैं !
पिछले वर्षों में, प्रारंभिक अनुभवों को प्रभावी ढंग से कोयले की खोज से लेकर इसके वाणिज्यिक अनुप्रयोग तक विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में व्यापक श्रेणी की सेवाएं प्रदान करने के लिए विस्तारित किया गया है। वर्तमान में सीएमपीडीआई, कोल इंडिया लिमिटेड और इसकी सात सहायक कंपनियों के अलावा, भारत और विदेशों में ग्राहकों की मेजबानी के लिए परामर्श सेवाएं प्रदान करता है। ग्राहकों में सरकारी और निजी उद्यमी, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थान आदि शामिल हैं। सेवाओं की गुणवत्ता पर पूरा ध्यान देने के कारण सीएमपीडीआई को ब्यूरो वेरिटास क्वालिटी इंटरनेशनल (बीवीक्यूआई) द्वारा आईएसओ-9001 प्रमाणपत्र मान्यता प्राप्त हुई।
सीएमपीडीआई रांची में अपने मुख्यालय और आसनसोल, धनबाद, रांची, नागपुर, बिलासपुर, सिंगरौली और भुवनेश्वर में स्थित सात क्षेत्रीय संस्थानों के माध्यम से संचालित होता है, जो भौगोलिक रूप से देश के छह राज्यों में फैले हुए हैं।
सीएमपीडीआई को भू-संरचनात्मक जटिलताओं वाली खनन परियोजनाओं से निपटने का व्यापक अनुभव है। सीएमपीडीआई ने प्रति वर्ष 500 मिलियन टन से अधिक कोयले की अतिरिक्त क्षमता उत्पादन के लिए लगभग 700 परियोजनाओं की योजना बनाई है। इसने खानों के पुनर्निर्माण, भूमिगत खानों को खुली खदान में बदलने, ऊबड़-खाबड़ इलाकों में खनन आदि में विशेषज्ञता विकसित की है
अनुमानित कोयला धारक क्षेत्र का आकलन लगभग 32761 वर्ग किलोमीटर किया गया है, जो पहले के अनुमान 19,400 वर्ग किलोमीटर से लगभग 69 प्रतिशत अधिक है। इससे नए कोयला ब्लॉकों की पहचान हो सकेगी। नवंबर, 2020 में कोल इंडिया लिमिटेड द्वारा कोकिग कोल मिशन पर एक कार्यदल का गठन किया गया था और सीएमपीडीआइ द्वारा एक रिपोर्ट सीआइएल ब्लॉकों में कोकिग कोल पर रिपोर्ट, दिसंबर, 2020 प्रस्तुत की गई थी। इसके आधार पर भारत सरकार ने कोकिग कोल मिशन शुरू किया। कड़े पर्यावरण नियंत्रण उपायों के कारण, रेलवे रेक में मशीनीकृत कन्वेयर सिस्टम और कम्प्यूटरीकृत लोडिग जैसे वैकल्पिक परिवहन विधियों को नियोजित कर कोयला हैंडलिग दक्षता बढ़ाने के लिए 35 फ‌र्स्ट माइल कनेक्टिविटी (एफएमसी) परियोजनाओं का चयन किया गया था।
इस समय कोल इंडिया की सहायक कंपनियों सीएमपीडीआई और एमईसीएल का विलय होगा। कोयला, खान और संसदीय कार्य मंत्रालय ने इस प्रस्‍ताव पर मुहर लगा दी है। कैबिनेट नोट तैयार करने के लिए सीएमपीडीआई से सूचना मांगी गई है।
कंपनी के सीएमडी ने भी कोयला मंत्रालय से मार्गदर्शन मांगा है। जानकारी के अनुसार खान मंत्रालय के निदेशक तकनीकी प्रदीप सिंह के हस्ताक्षर से 13 अप्रैल को ज्ञापन सीएमपीडीआई के सीएमडी को भेजा गया है।
पत्र में लिखा गया है कि कोयला, खान और संसदीय मामलों के मंत्रालय ने सीएमपीडीआई और एमईसीएल के विलय को मंजूरी दे दी है। इसमें निगमन-पंजीकरण और स्वामित्व पैटर्न की तिथि, अधिकृत पूंजी और चुकता पूंजी, मुख्य वित्तीय हाइलाइट्स जैसे टर्नओवर, लाभ, वर्तमान ऑर्डर बुक की स्थिति, भविष्य के नकदी प्रवाह की जानकारी मांगी गई है।
साथ ही व्यापार अवसर और सहयोग, वर्तमान और भविष्य की मानव शक्ति की स्थिति, संपत्ति, प्रतिष्ठानों और उसके मूल्यांकन का विवरण, संगठन की भूमिकाएं और कार्य संबंधी सूचनाएं मांगी गई हैं। सूचनाएं खान मंत्रालय को 20 अप्रैल तक भेजने को कहा गया है। इधर, सीएमपीडीआई के सीएमडी मनोज कुमार ने इस बारे में कोयला मंत्रालय के संयुक्त सचिव को 18 अप्रैल को पत्र लिखा है।
इसके बाद सीएमपीडीआइ के मजदूर यूनियन ने भारी बिरोध किया और उसके बाद कोयल मंत्री ने कहा कि सीएमपीडीआइ का विलय एमईसीएल नहीं होगा !इसके बाद से ही पिछले 15 दिनों से झारखंड के नौकरशाहों तथा कोयला कर्मियों के बीच काफी जोर-शोर से चर्चा होने लगी कि सीएमपीडीआई का विलय एमईसीएल से क्यों हो रहा है!
इस जिज्ञासा को पता लगाने के लिए हमारे संवाददाता ने कोयला मंत्रालय तथा कोल कंपनी के सहायक कंपनी के अधिकारियों तथा मजदूर यूनियन से संपर्क कर जानकारी लेने का कोशिश किया और जिसमें पता चला कि वर्ष 2002 तक सीएमपीडीआई में सिर्फ 200000 मीटर ड्रिलिग करता था, परंतु देश में बढ़ते कोयला की मांग को ध्यान में रखते हुए कोयला मंत्रालय ने एक कमेटी बनाया और उस रिपोर्ट के अनुसार सीएमपीडीआइ अपने संसाधन को बढ़ाकर 2010-11 में पूरे देश में 1300076 मीटर ड्रिलिग कराया इसमें सिर्फ 500000 मीटर ड्रिलिग सीएमपीडीआइ करता था और बाकी सीएमपीडीआइ कंपनी यानी ठेकेदारी में एमईसीएल से ड्रिलिग कराता था और यह सिलसिला २०१८- 19 तक चलता रहा
इस ड्रिलिग से एमईसीएल की उत्पादन उपयोगिता 85% रहता था और सीएमपीडीआइ के कार्य से ही एमईसीएल कंपनी को काफी मुनाफा होता था ,परंतु बाद में भारत सरकार के कोयला मंत्रालय ने कह दिया कि हमें कोल ब्लॉक की गुणवत्ता की जानकारी नहीं करना है क्योंकि भारत सरकार सभी कोल ब्लॉक को निजी हाथों में देने का निर्णय लिया है!
इसके कारण कोयला मंत्रालय ने धीरे-धीरे राशि आवंटन बंद कर दिया! जिसके कारण एमईसीएल को सीएमपीडीआइ ने काम देना बंद कर दिया ,जिसके कारण एमईसीएल को अपने 900 कामगारों को पैसा देना तथा अन्य कार्य के खर्च में बड़ी कठिनाई का सामना करना पर रहा है !
दूसरी ओर कोल इंडिया का बचा हुआ कुल ब्लॉक में ही सिर्फ 20% ही कोल ब्लॉक बचा हुआ है , जिसमें केवल 1800000 मीटर ही ड्रिलिग करना है !जिसके कारण अब कोल इंडिया के बचे कोल ब्लॉक को सीएमपीडीआई के क्षमता अनुसार 4 से 5 वर्ष का ही काम है !जिसके कारण सीएमपीडीआई ने एमईसीएल को काम देना बंद कर दिया और इस संबंध में जानकारी मिली है सीएमपीडीआई के आदेश के कारण एमईसीएल को काफी लाभ होता था !इस समय एमईसीएल से करीबन चार -पांच राजनीतिक लोग काफी पैसा कमातेहैं और यही लोग अपनी राजनीतिक आकाओं के द्वारा दिल्ली में हल्ला कर एमईसीएल को सीएमपीडीआई में मर्ज कराना चाहते हैं,जबकि सीएमपीडीआई सिर्फ 43% ही ड्रिलिग का काम करता है बाकी ५७% काम संसाधन अन्वेषण और विकास, कोयला तैयारी, उपयोग और प्रबंधन, कोयला/सामग्री प्रबंधन व्यवस्था, साथ ही इंजीनियरिंग और पर्यावरण प्रबंधन के क्षेत्र में सेवाओं को देती है
इन सारी बातों से स्पष्ट होगया की सीएमपीडीआई को एमईसीएल मर्ज करना देश हित में नहीं है और दूसरी तरफ फलता -फूलता सीएमपीडीआई दूसरे के बोझ से दबकर खत्म न हो जायगा

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