तेजस्वी को नहीं मिला मायावती का आशीर्वाद

बीते 14 जनवरी को बिहार में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने लखनऊ में बहुजन समाजवादी पार्टी की अध्यक्ष मायावती के पैर छुए थे. इसके बाद कयास लगाए जा रहे थे कि मायावती उन्हें अपना आशीर्वाद भी देंगी, लेकिन बीएसपी ने महागठबंधन के इरादों को बड़ा झटका देते हुए बिहार की सभी 40 लोकसभा सीटों पर अपना उम्मीदवार खड़ा करने का निर्णय ले लिया है. हालांकि इसकी आधिकारिक जानकारी नहीं आई है, लेकिन पार्टी के विश्वस्त सूत्र बता रहे हैं कि यही अंतिम फैसला है.

दरअसल तेजस्वी की मुलाकात महज औपचारिकता नहीं बल्कि इसके पीछे सियासी मकसद भी छिपा हुआ था. आपको बता दें कि बिहार में 10 करोड़ से ज़्यादा आबादी में एससी समुदाय की संख्या डेढ़ करोड़ से अधिक है. इसी को भुनाने के मकसद से सपा-बसपा गठबंधन के जरिए आरजेडी यूपी में एंट्री करना चाहती थी तो वहीं अखिलेश और मायावती की निगाहें भी बिहार पर थीं.

लेकिन महागठबंधन के भीतर सीटों को लेकर मचे घमासान के बीच बीएसपी की एंट्री नामुमकिन हो गई. हालांकि आरजेडी के विश्वस्त सूत्रों के अनुसार वह सपा-बसपा को एक-एक सीट देने को तैयार है.

सपा के बिहार अध्यक्ष देवेंद्र यादव और बसपा को गोपालगंज की सीट दिए जाने और आरजेडी को यूपी से दो सीटें दिए जाने की चर्चा थी, लेकिन महागठबंधन में तमाम मंथन के बाद भी लगता है अंतिम बात नहीं बन पाई.

हालांकि असर के लिहाज से देखें तो अब तक बिहार से मायावती की पार्टी का कोई उम्मीदवार सांसद नहीं चुना गया है. फिर भी बिहार के कैमूर, बक्सर, सासाराम, बेतिया और गोपालगंज जैसे यूपी से सटे इलाकों में मायावती का असर माना जाता रहा है.

बावजूद इसके बीएसपी बिहार की राजनीति में सीटों के लिहाज से बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई है.  1995 में विधानसभा में दो सीटें जीतने के बाद उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन अक्टूबर 2000 को हुआ था जब पार्टी के पांच उम्मीदवार चुनकर विधानसभा में पहुंचे थे.

2004 में महज 4 सीटें ही मिल पाई थी. हालांकि साल 2010 में पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाया था जबकि उसने कुल 243 सीटों में से 239 पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. वोटों में भी उसकी हिस्सेदारी घटकर 3.21 प्रतिशत रह गई थी.

2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी को 7.65 लाख वोट मिले थे, जो 2015 के विधानसभा चुनाव में बढ़कर 7.88 लाख तक पहुंच गए. हालांकि उसे लोकसभा या विधानसभा में कोई सीट नहीं मिल पाई थी.

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