SP-BSP की टेंशन बढ़ाएंगे कांग्रेस के कई दमदार उम्मीदवार

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस अपनी जड़ें मजबूत करती दिख रही है। इससे करीब छह लोकसभा क्षेत्रों में एसपी-बीएसपी गठबंधन के कुछ वोट कांग्रेस की ओर जा सकते हैं। ऐसा होने पर वहां त्रिकोणात्मक संघर्ष होगा और बीजेपी को फायदा हो सकता है। ऐसे में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की पैठ जमाने की कोशिश में भी बीजेपी को मौका दिख रहा है, जो एसपी-बीएसपी के साथ आने से मुकाबले को चुनौतीपूर्ण मानकर चल रही है।

आपको बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनावों में गाजियाबाद, सहारनपुर, लखनऊ, कानपुर, बाराबंकी और कुशीनगर में कांग्रेस दूसरे स्थान पर थी। कांग्रेस इन सीटों पर मुकाबला त्रिकोणात्मक बना सकती है, वहीं, बीएसपी के कुछ उम्मीदवार कमजोर दिख रहे हैं। इससे मुस्लिम वोटर भ्रम में पड़ सकते हैं कि वोट गठबंधन को दिया जाए या कांग्रेस को। कुछ शहरी निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी के सामने कांग्रेस मुख्य प्रतिद्वंद्वी बन सकती है, जहां एसपी और बीएसपी के पास दमदार नेता नहीं हैं। 

कांग्रेस ने सहारनपुर से इमरान मसूद को उतारा है। बीजेपी के खिलाफ बराबर की टक्कर के तीखे बयान देने वाले मसूद की मुस्लिम वोटरों पर अच्छी पकड़ है और वह इस सीट पर एसपी-बीएसपी के वोट बैंक में सेंध लगा सकते हैं। ऐसी सूरत में बीजेपी कैंडिडेट राघव लखनपाल को बढ़त मिल सकती है।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर को मुरादाबाद से फतेहपुर सीकरी भेज दिया गया है, जहां वह एक बार मामूली अंतर से हारे थे। इस बार उनका दावा मजबूत दिख रहा है और वह लड़ाई को तिकोना बना सकते हैं। वहां भी कांग्रेस और एसपी-बीएसपी में मुस्लिम वोटों का बंटवारा होने पर बीजेपी को फायदा हो सकता है। बब्बर चाहे फिरोजाबाद से लड़े हों या इस सीट से, उन्हें मुसलमानों का अच्छा समर्थन मिला था। कांग्रेस ने मुरादाबाद से शायर इमरान प्रतापगढ़ी को उतारा है। वह बब्बर की तरह दमदार कैंडिडेट तो नहीं हैं, लेकिन मुस्लिम वोटों में बंटवारा करा सकते हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद फर्रूखाबाद से उतारे गए हैं और वहां भी मुसलमान वोटों का बंटवारा हो सकता है। अलीगढ़ सीट से बीएसपी प्रत्याशी अजित बालियान बाहरी हैं और वह वोटों में सेंध लगा सकते हैं। कांग्रेस ने वहां बृजेंदर सिंह को उतारा है, जिन्हें मुसलमानों का अच्छा समर्थन हासिल है।

सिनेमा और राजनीति। दोनों में बड़ा पुराना नाता है। सितारे आज से नहीं बल्कि 1967 से राजनीति में अपनी किस्मत आजमाते रहे हैं। इस चलन को कांग्रेस ने शुरू किया जिसे बीजेपी और फिर टीएमसी ने आगे बढ़ाया। अबतक किन सितारों ने लोकसभा चुनाव लड़ा है जानिए

तेलुगू स्टार कोंगारा जग्या पहले ऐसे फिल्मी सितारे कहे जाते हैं जिन्होंने लोकसभा चुनाव जीता। वह करीब 80 हजार वोटों से आंध्र प्रदेश की ओंगोल सीट से जीते थे। कहा जाता है कि यह चुनाव उन्होंने बिना प्रचार के जीत लिया था।

राजीव गांधी के वक्त में हुए इस चुनाव में तीन बड़े फिल्मी सितारों ने कांग्रेस का दामन थामा। इसमें अमिताभ बच्चन (इलाहाबाद), सुनील दत्त (नॉर्थ वेस्ट बॉम्बे), वैजयंती माला (मद्रास साउथ) जीतकर आए। तीनों ने इस चुनाव में जीतकर नए रेकॉर्ड स्थापित किए थे।

मंडल-कमंडल की आंधी का दौर था। राजेश खन्ना ने कांग्रेस का दामन थामा। नई दिल्ली से उन्हें लाल कृष्ण आडवाणी के खिलाफ लड़ाया गया। मुकाबला कड़ा था और आडवाणी सिर्फ 1,589 वोटों से जीत पाए।

इस चुनाव में बीजेपी की सरकार बनी थी। वहीं चुनाव से पहले कृष्णम राजू और विनोद खन्ना ने बीजेपी का दामन थामा था। राजू आंध्र के काकीनंदा (67 हजार वोट) और विनोद गुरदासपुर सीट से जीते।

इस साल राज बब्बर की राजनीति में एंट्री हुई। 1999 में वह समाजवादी पार्टी में शामिल हुए और लगातार दो बार (1999, 2004) आगरा से चुनाव जीता। इसके बाद वह 2009 का चुनाव (फिरोजाबाद) कांग्रेस से लड़कर जीते। फिर 2014 में उन्हें गाजियाबाद से लड़ाया गया, लेकिन वीके सिंह ने उन्हें हरा दिया।

इस साल तीन बड़े सितारों ने अलग-अलग पार्टियों का दामन थामा। इसमें गोविंदा (कांग्रेस), धर्मेंद्र (बीजेपी) और जया प्रदा (समाजवादी पार्टी) शामिल हैं। जय प्रदा के अलावा दोनों ही ऐक्टर राजनीति में चमक नहीं पाए।

शत्रुघ्न सिन्हा राजनीति में वैसे पहले से ऐक्टिव थे। लेकिन फिर उन्हें बीजेपी ने टिकट दिया। फिर पटना साहिब से लगातार दो (2009, 14) बार चुनाव जीते।

अबतक से चुनावों को देखा जाए तो 2014 में सबसे ज्यादा सितारों ने राजनीति में किस्मत आजमाई। इसमें मुन मुन सेन (टीएमसी), संध्या रॉय (टीएमसी), हेमा मालिनी (बीजेपी), परेश रावल (बीजेपी), बाबुल सुप्रीयो (बीजेपी), किरण खेर (बीजेपी) और मनोज तिवारी के नाम प्रमुख हैं।

गाजियाबाद में कांग्रेस समर्थकों की अच्छी संख्या है। पार्टी ने यहां से डॉली शर्मा को कैंडिडेट बनाया है। 2014 में बीजेपी के वीके सिंह के सामने 5.67 लाख वोटों के अंतर से राज बब्बर यहां से हारे थे। 2009 में कांग्रेस की ओर से शुरुआती चुनौतियों के बाद राजनाथ सिंह ने जीत हासिल कर ली थी। तब बीएसपी के अधिकृत प्रत्याशी ने राजनाथ के सपोर्ट में पर्चा वापस ले लिया था। राजनाथ 90681 वोटों के अंतर से जीते थे। इस बार एसपी-बीएसपी और कांग्रेस की रणनीति पर इस सीट का नतीजा निर्भर करेगा।

एसपी का गढ़ मानी जाने वाली बाराबंकी सीट 2009 में कांग्रेस के पीएल पुनिया ने जीती थी और 2014 में वह बीजेपी की प्रियंका रावत के मुकाबले दूसरे नंबर पर थे। इस बार उनके पुत्र तनुज कांग्रेस उम्मीदवार हैं, लेकिन एसपी-बीएसपी गठबंधन को इस आरक्षित सीट का गणित अपने पक्ष में होने का भरोसा है।

कानपुर में पूर्व केंद्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल कांग्रेस उम्मीदवार हैं। कानपुर में त्रिकोणीय मुकाबले से बीजेपी को लाभ हो सकता है। कुशीनगर से कांग्रेस के आर पी एन सिंह की बीजेपी से सीधी टक्कर हो सकती है, लेकिन मुकाबला त्रिकोणीय हुआ तो बीजेपी फायदे में रहेगी। 

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