खूंटी के गुनी गांव की चर्चा देश भर में हो रही है—-

विशेष संवाददाता द्वारा
खूंटी. झारखंड़ के एक गांव की चर्चा देश भर में हो रही है. इस गांव के नाम में ही उसकी सफलता का राज छुपा है. सफलता भी ऐसी वैसी नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कार पाने वाली. केंद्रीय ग्रामीण विकास विभाग के द्वारा इस गांव को नेशनल वाटर अवार्ड में तीसरा स्थान दिया गया है. विज्ञान भवन दिल्ली में मुख्य अतिथि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की उपस्थिति में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और प्रह्लाद सिंह पटेल के हाथों मेंटर गौरव कुमार सिंह और गुनी गांव निवासी लक्ष्मण सांगा ने ये पुरस्कार ग्रहण किया. खूंटी जिले गुनी गांव ने आज अपने काम का डंका देश भर में बजा दिया है. दिल्ली के विज्ञान भवन में जब झारखंड के गुनी गांव का नाम लिया गया, तो खूंटी जिले पर अति नक्सल प्रभावित जिला होने का दाग इस सफलता के आगे फीका पड़ गया.
बता दें, कभी खूंटी का नाम जुबां पर आते ही नक्सली घटना और उसके ख़ौफ़ की चर्चा शुरू हो जाती थी , पर आज गुनी गांव ने जैसा नाम वैसा ही काम को कर दिखाया . गांव की दहलीज पर कदम रखते ही आपको सुखद अनुभूति होगी. गांव के रास्ते आपका स्वच्छता और सुद्धता के वातावण में स्वागत करते नजर आएंगे. 65 परिवार वाले इस आदिवासी बहुल गांव की सबसे बड़ी पूंजी उसकी ग्राम सभा और एकता है. दरअसल यही से शुरू होती गुनी गांव की गौरव गाथा. गुनी गांव के विकास का फार्मूला 65 गुना 6 के फार्मूले पर टिका है. इसी फार्मूले ने गुनी गांव को भीड़ से अलग पहचान बनाने में कामयाबी दिलाई. आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये कौन सा नायाब फार्मूला है.
तो जनाब जान लीजिए कि इसमें नायाब कुछ भी नहीं है बस 65 परिवार को 6 भाग में बांट दिया गया है. यही 6 टीम गुनी गांव के विकास में अपना योगदान दे रही है . रोजाना अहले सुबह 5 बजे से स्वच्छता के संदेश के साथ दिन की शुरुआत होती है. गांव के लोग अपने घर को ही नहीं बल्कि पूरे गांव की सफाई में जुट जाते हैं. गांव में हर तरफ कूड़ादान का निर्माण किया गया है. ताकि किसी तरह की कोई गंदगी गांव के किसी भी कोने में देखने को नहीं मिले, क्योंकि गांव के लोगों को पता है कि स्वच्छता में ही स्वस्थ रहने का राज छुपा है .
गुनी गांव की पहचान आज से 3 साल पहले तक नशेड़ियों के गांव के तौर पर होती थी. गांव के हर घर में देशी शराब यानी हड़िया बनाने का काम चलता था. पूरा गांव नशे में डूबा रहता था. फिर गांव की महिलाओं ने बगावत का झंडा बुलंद किया. देखते ही देखते महिलाओं की एक जुटता का असर सामने आने लगा. फिर शुरू हुआ मनरेगा के तहत गांव को विकसित करने का काम. आज गांव में स्वरोजगार के नाम पर बत्तख पालन से लेकर मशरूम के उत्पादन में गांव की महिलाएं जी जान से जुटी है.
गुनी गांव में आपको जल संरक्षण से लेकर जंगल बचाओ अभियान तक की झलक खुली आंखों से दिख जाएंगी. आपके या हमारे घर मे शायद वाटर हार्वेस्टिंग को लेकर कोई व्यवस्था ना हो, पर गुनी गांव के हर एक घर के आंगन में जल संरक्षण के लिये सोखता बनाया गया है. इतना ही नहीं गांव का पानी गांव में और खेत का पानी खेत में रोकने के लिये ट्रेंच काटे गए है. 400 एकड़ में फैले जंगल को बचाने के लिये ग्राम सभा ने सख्त नियम बना रखे है. गांव के लोग अलग-अलग टीम बना कर जंगल की रखवाली करते है . जंगल से पेड़ की कटाई के लिये ग्राम सभा से अनुमति लेना जरूरी है. जिसने नहीं लिया वो दंड का भागीदार होता है.
गुनी गांव को विकास के पथ पर ले जाने में सरकार के साथ-साथ ग्रामीणों की भी बड़ी भूमिका है. मनरेगा के तहत कई योजनाओं से गांव की तस्वीर और तकदीर बदली है और जहां सरकार का साथ नहीं मिला वहां गांव के लोगों ने श्रम दान के जरिये ऐसा कर दिखाया जिसकी उम्मीद किसी को नहीं थी. आज अवार्ड मिलने के बाद अब दूसरे गांव के लोग भी गुनी गांव को आदर्श मानकर आगे बढ़ने की योजना बनाने में जुट गए है .

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