गया लोकसभा सीट पर पहले चरण में 11 अप्रैल को वोटिंग होनी है। यहां हाई वोल्टेज चुनाव का शोर है। चुनाव का महापर्व बिहार आकर ही पता चलता है। गया में तो लोग चुनाव को जीतन राम मांझी बनाम पीएम मोदी बता रहे हैं। जीतन राम मांझी महागठबंधन की सहयोगी ‘हम पार्टी’ (हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा) से हैं तो एनडीए गठबंधन से जेडीयू ने विजय मांझी को मैदान में उतारा है।
सियासी बयार क्या और किसके पक्ष में बह रही है, इसे जानने की कोशिश के दौरान यह तस्वीर भी सामने आई कि आम लोगों के जेहन पर इसका कितना असर होता है। इसी लोकसभा सीट के निवासी रमाकांत यादव विस्तार से समझाते हैं, ‘मोदीजी गया की धरती पर 2015 विधानसभा चुनाव में जीतन राम मांझी को सबसे बड़ा दलित और जमीनी नेता बता गए थे। इसी मैदान से वह नीतीश कुमार को चंदन कुमार और गया के दलित बेटे को धोखा देने वाले को कभी माफ नहीं करने का आह्वान करके गए थे। लेकिन चार साल बाद जब मोदीजी तीन दिन पहले गया आए तो नीतीश कुमार से मिलकर जीतन मांझी को हराने की अपील कर गए। अब बताएं कि जनता क्या करेगी?’
गया की जनता उलझ कर रह गई है। कुछ भी हो सकता है। ईवीएम भी कन्फ्यूज हो जाएगा। 2014 आम चुनाव में बीजेपी के रामजी मांझी जीते थे। उस चुनाव में भी जीतन मांझी मैदान में थे और जेडीयू टिकट पर चुनाव लड़े थे और तीसरे स्थान पर रहे थे। चुनाव के बाद ही नीतीश कुमार ने जेडीयू के खराब प्रदर्शन की जिम्मेदारी लेते हुए मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया था और अपनी जगह जीतन मांझी को सीएम बना दिया था। इसी घटना के बाद बिहार की राजनीति में तेज घटनाक्रम का दौर शुरू हुआ जो अभी तक जारी है।
गया से 30 किलोमीटर दूर दिलबर गांव में दिलीप मांझी ने कहा कि मोदीजी ने अपनी झेंप के कारण यहां अपना सिलेबस ही बदल दिया। वह यहां आए और भारत-पाकिस्तान की बात करते रहे और नीतीश कुमार-जीतन मांझी की बात ही नहीं की। उनके अनुसार मोदी के लिए स्थानीय मुद्दों और समीकरण पर बात करना बहुत कठिन था। गठबंधन नेताओं की ओर से मोदी की रैली से पहले पूरे गया में जीतन मांझी को दलित का प्रतीक बताने वाला विडियो वॉट्सऐप पर वायरल किया जा रहा था। जीतन मांझी को उनके समुदाय में इस बार सहानुभूति भी मिल रही है।
मांझी समुदाय के वोटरों से बात करने पर अंदाजा लगा कि उस समुदाय की पसंद और झुकाव जीतन मांझी की ओर हो सकता है। इसके पीछे जीतन मांझी के पीछे आरजेडी और कांग्रेस का सपॉर्ट भी काम कर रहा है। मुसलमान और यादव भी मजबूती के साथ जीतन मांझी के पक्ष में खड़े हैं। आरजेडी नेता तेजस्वी यादव यहां दो बार रैली कर चुके हैं। 9 अप्रैल को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी रैली करने वाले हैं। इस समीकरण की बदौलत जीतन तीसरे प्रयास में दिल्ली के सफर का इरादा रखते हैं।
अगर जीतन मांझी के साथ महागठबंधन का समीकरण काम कर रहा है तो मोदी के मैदान में उतरने का असर भी जरूर हुआ है। गैर यादव, मुस्लिम और मांझी वोटरों का काउंटर ध्रुवीकण तेज हो गया। इन तीनों समुदाय के अलावा बाकी वोटर मोदी चेहरे के नाम पर वोट कर सकते हैं। ध्वजा प्रसाद साह के अनुसार मोदीजी के नाम पर पूरा वोट जेडीयू को मिलेगा। टीकाराम वर्मा कहते हैं कि लगता है कि जीतन की किस्मत में सांसद बनना नहीं लिखा है। उन्होंने कहा कि अगर इस बार जीतन मांझी एनडीए से खड़े हो जाते तो 5 लाख वोट से जीत जाते। वहीं, जेडीयू ऑफिस में एक स्थानीय नेता ने एनबीटी से कहा कि मोदी रैली का बहुत असर है। अब लगता है कि सीट निकाल लेंगे।
गया में राजपूत समुदाय से आने वाले विकास सिंह ने कहा कि मोदी की रैली से पहले एनडीए के सामने सबसे बड़ा खतरा था कि चुनाव बिहार विधानसभा चुनाव की तरह तरह बैकवर्ड बनाम फॉरवर्ड बन रहा था। लेकिन मोदी ने ऐसा नहीं होने दिया। अगर वही माहौल रहता तो जेडीयू उम्मीदवार को दिक्क्त हो जाती। इस तरह चुनाव मोदी बनाम जीतन मांझी का समीकरण हो गया है। गया में लगभग 17 लाख वोटर हैं। यह सुरक्षित सीट हैं। वोटरों में किसी एक जाति का दबदबा नहीं है। मुस्लिम और यादव को मिलाकर लगभग पांच लाख वोटर हैं। लगभग ढाई लाख वोटर मांझी समुदाय के भी हैं। 2009 और 2014 दोनों लोकसभा चुनाव में यहां से बीजेपी जीतती रही है।