राहुल की नागरिकता पर सवाल कितना जायज?

How justified is the question of Rahul's citizenship?

News Agency : 14-15 अगस्त 1947 की आधी रात को दुनिया सो रही थी तब हिन्दुस्तान अपनी नियति से मिलन कर रहा था। कांग्रेस आज़ादी की लड़ाई का दूसरा नाम बन चुकी थी। उस कांग्रेस के सबसे बड़े नेता थे पंडित जवाहर लाल नेहरू। आज़ादी के उस दौर के पांच साल के भीतर कांग्रेस का सत्ता से साक्षात्कार हुआ। लेकिन नियति से हाथ मिलाने के 72 साल बाद आज उसी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष की नागरिकता चुनावी बाजार में संदिग्ध बताई जा रही है। भाई पर उठते सवालों से झुंझलाई बहन प्रियंका को चित्रकूट से अमेठी तक बताना पड़ रहा है कि मेरा भाई हिंदुस्तानी है। राहुल गांधी की नागरिकता पर सवाल नए सिरे से तब खड़ा हो गया जब गृह मंत्रालय ने उन्हें नोटिस भेजकर 15 दिन में जवाब मांगा। गृह मंत्रालय ने भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी की 27 सितंबर 2017 को लिखी चीट्ठी पर 19 महीने बाद बीच चुनाव में जागकर राहुल गांधी को यह नोटिस भेजा है।

2003 में ब्रिटेन में एक कंपनी बनाई गई थी बैकॉप्स लिमिटेड । भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी का दावा है कि राहुल गांधी इसके निदेशक मंडल में थे। कंपनी के आवेदन में राहुल की नागरिकता ब्रिटिश बताई गयी है। 2009 के डिजाल्यूशन आवेदन में भी राहुल को ब्रिटिश बताया गया था। हालांकि कांग्रेस ने उसी कंपनी का दस्तावेज पेश करते हुए बताया कि उनमें राहुल गांधी की भारतीय नागरिकता का जिक्र है। 

अमेठी में राहुल की उम्मीदवारी के दौरान भी निर्दलीय उम्मीदवार ने आपत्ति जताई थी और दावा किया था कि राहुल ब्रिटिश नागरिक हैं। चुनाव आयोग ने राहुल के उम्मीदवारी रदद् के दावे को खारिज़ कर दिया था। अगर थोड़ा और पहले जाए तो सुप्रीम कोर्ट ने साल 2015 में राहुल की नागरिता को लेकर डाले गए याचिका को खारिज कर दिया था। मार्च 2016 में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने लोकसभा की आचार समिति को शिकायत की। समिति के सचिवालय ने राहुल गांधी को नोटिस जारी किया। राहुल ने स्वामी को अपना आरोप साबित करने की चुनौती दी। लेकिन फिर आचार समिति की कोई बैठक ही नहीं हुई। बाद में इस मामले को लेकर स्वामी गृह मंत्रालय गए। लेकिन सवाल सिर्फ राहुल की नागरिकता पर नहीं बल्कि उनकी डिग्री पर भी उठ रहे हैं। राहुल ने अपनी चुनावी हलफनामें में कहा है कि उन्होंने टिन्रटी कॉलेज कैंब्रिज से 1995 में डिवलपमेंट स्टीज में एमफिल किया है। राहुल गांधी की इस डिग्री पर भाजपा नेता अरुण जेटली सवाल उठाया है। जेटली ने ब्लॉग लिखकर कहा एक दिन फोकस भाजपा उम्मीदवार की शैक्षणिक योग्यता पर रहता है। इस बात को पूरी तरह भूलाकर कि राहुल गांधी की शैक्षणिक साख का पब्लिक ऑडिट हो तो शायद बहुत सारे सवालों का जवाब न मिले। आखिर मास्टर डिग्री के बिना उन्होंने एमफिल कर ली है।

अंग्रेजी में ऐसे लोगों को ‘मैवेरिक’ कहते हैं। जिन्हें कोई गंभीरता से नहीं लेता, लेकिन व्यवस्था में इनका खास महत्व होता है। सुब्रमण्यम स्वामी भारत की राजनीति में ऐसा ही व्यक्तित्व हैं। भारत की न्यायप्रणाली को लोग जितना भी कोस लें लेकिन समय-समय पर उन्होंने साबित किया है की ऐसी मंद पड़ी व्यवस्था में भ्रष्टाचार पर लगाम कैसे लगायी जा सकती है। आम लोगों को इस बात की हैरानी होती है कि आखिर उन्हें इतनी गोपनीय जानकारियां मिलती कैसे हैं और उनमें ऐसा क्या है कि वह गांधी परिवार के खिलाफ मोर्चा बुलंद करने से भी नहीं कतराते हैं। टी-20 क्रिकेट के ज़माने में भी टेस्ट के मंझे हुए खिलाड़ी जैसा टेम्परामेंट रखने वाले स्वामी की चिट्टी के वजह से ही देश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने के वारिश राहुल गांधी की नागरिकता गली कूचों में चर्चा का सबब बनी है।

हमेशा से अलग-अलग ख़ुलासा करने की वजह से स्वामी को गणित और आर्थिक मामलों के साथ-साथ कानून का भी जानकार माना जाता है। कई लोग स्वामी को वकील समझने की भूल कर जाते हैं। लेकिन उन्होंने कानून की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली है बल्कि मशहूर वकीलों के नोट्स पढ़कर कानून की बारिकियों को सीखा है। वे कभी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी  के करीबी हुआ करते थे, तो समय-समय पर भाजपा के भी खास रहे हैं। हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी ने हमेशा उनसे दूरी रखने की कोशिश की, फिर भी भाजपा के कुछ  बड़े नेताओं का उनसे जुड़ाव रहा। सुब्रमण्यम स्वामी का सपना अपने पिता की तरह गणितज्ञ बनने का था। गौरतलब है कि उनके पिता सीताराम  सुब्रमण्यम प्रसिद्ध गणितज्ञ थे। सुब्रमण्यम स्वामी ने हिंदू कॉलेज से गणित में स्नातक की डिग्री ली। इसके बाद वे आगे की पढ़ाई के लिए भारतीय  सांख्यिकी इंस्टीट्यूट कोलकाता चले गए। सुब्रमण्यम स्वामी ने महज 24  साल की उम्र में ही हॉवर्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल कर ली थी। इसके बाद  27  साल में उन्होंने हॉर्वर्ड में ही गणित की टींचिंग शुरू कर दी थी। बाद में अमर्त्य सेन ने 1968 में स्वामी को दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ाने के लिए आमंत्रित किया और स्वामी दिल्ली आ गए। साल 1969 में वे आईआईटी दिल्ली से जुड़े।

भारत के सबसे शक्तिशाली प्रधानमंत्रियों में से एक इंदिरा गाँधी ने 1970 के बजट के दौरान अवास्तविक विचारों वाला सांता क्लॉस करार दिया था। स्वामी ने इन टिप्पणियों को दरकिनार करते हुए अपने कार्य को जारी रखा और आपातकाल घोषित होने पर उन्होंने इंदिरा गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था और इंदिरा गांधी को ललकारते हुए संसद में प्रवेश कर गए थे। जिसके बाद इंद्रा समर्थकों ने स्वामी को सीआईए एजेंट का दर्ज़ा दे दिया था। हालांकि भाजपा से सुब्रमण्यम स्वामी का रिश्ता बनता बिगड़ता रहा है और इस रिश्ते के इतिहास पर नज़र डालें तो 1999 में भारतीय जनता पार्टी की अटल बिहारी वाजपेयी  सरकार को खतरे में डालने के काम को भी स्वामी अंजाम दे चुके हैं।  जब गठबंधन सरकार की अहम सहयोगी जयललिता ने स्वामी को वित्त मंत्री बनाने की जिद पकड़ ली थी तब स्वामी ने भी सरकार गिराने की योजना पर काम करना शुरू करते हुए  जयललिता और सोनिया गांधी को करीब लाने के लिए चाय-पार्टी आयोजित। हालांकि वे सरकार गिराने की कोशिश में सफल नहीं हो पाए। 2014 के चुनावों से ठीक पहले पीएम नरेंद्र मोदी ने  स्वामी को वापस भाजपा में शामिल करा लिया। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा की आने वाले समय में तरह-तरह के खुलासे करने में माहिर स्वामी के तरकश से एक-एक कर निकलते तीर किन-किन लोगों को छलनी करते हैं। लेकिन लोकसभा चुनाव के बीच अचानक से बार-बार राहुल गांधी की नागरिकता पर सवाल उठते शोर के बीच कहीं देश के प्रमुख मुद्दे गौण न हो जाए!

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