राजनीतिक संवाददाता द्वारा
रांची : हेमंत सोरेन आदिवासी नेता। आखिर उन्होंने वह हासिल किया जो उनके पिता शिबू सोरेन अपने जीवनकाल में नहीं कर पाए। सोरेन सीनियर, नि:संदेह झारखंड की राजनीति के सबसे बड़े दिग्गज और झारखंड आंदोलन के दिग्गज, तीन बार सीएम बने। हालांकि, गुरुजी, जैसा कि शिबू सोरेन के नाम से जाना जाता है, सीएम कार्यालय में एक भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सके। सीएम के रूप में उनका सबसे लंबा कार्यकाल 153 दिनों का था, जबकि उनका सबसे छोटा कार्यकाल केवल 10 दिनों में समाप्त हुआ जब उन्हें मार्च 2005 में इस्तीफा देना पड़ा। झारखंड के मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन का पहला कार्यकाल भी जुलाई 2013 से दिसंबर 2014 तक अल्पकालिक था। विपक्षी बेंचों को गर्म करने और अपने आप में एक नेता के रूप में उभरने में उन्हें पांच साल से अधिक समय लगा। दिसंबर 2019 के विधानसभा चुनावों ने उन्हें 81 सदस्यीय सदन में 47 सीटें जीतने वाले तीन-पक्षीय गठबंधन का नेतृत्व करके भाजपा से सत्ता छीनते हुए देखा। तब से, सोरेन केवल ताकत में बढ़े हैं। वह संकट की स्थितियों के दौरान एक सक्रिय नेता के रूप में उभरे, जब झारखंड दो कोविद तरंगों से जूझ रहा था, जिसने उन्हें झारखंड के प्रवासी श्रमिकों को घर ले जाने और व्यक्तिगत रूप से उन्हें प्राप्त करने के लिए रेलवे स्टेशन तक पहुंचने के लिए वाणिज्यिक उड़ानों की बुकिंग करते देखा। इन सभी ने समृद्ध राजनीतिक लाभांश का भुगतान किया है, जिससे सत्तारूढ़ गठबंधन को 2020 में हुए दो विधानसभा उपचुनाव जीतने में मदद मिली है। हेमंत की झामुमो ने दुमका सीट जीती, जबकि कांग्रेस बेरमो से विजयी हुई। सोरेन का एक राजनेता और शासन करने वाले व्यक्ति दोनों के रूप में उभरना महत्वपूर्ण है। कोई है जो अपनी प्रारंभिक सफलता का श्रेय अपने पिता की विरासत को देता है, यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि हेमंत सोरेन एक अनिच्छुक राजनेता थे और उन्हें उत्तराधिकारी के रूप में भी नहीं देखा गया था। वह अपना पहला विधानसभा चुनाव 2005 में अपने पिता के गढ़ दुमका से हार गए थे। हेमंत शिबू सोरेन और बड़े भाई दुर्गा की छाया में रहना जारी रखा, जिन्हें सोरेन विरासत के उत्तराधिकारी के रूप में देखा जाता था। हालांकि, दुर्गा सोरेन की 2009 में मृत्यु हो गई। पार्टी का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी हेमंत पर आ गई, उन्होंने अपनी हिचकिचाहट को मजबूत करने के लिए छोड़ दिया। ट्विटर पर जनता की शिकायतों का संज्ञान लेने से लेकर लोगों से लगातार संपर्क बनाए रखने तक, हेमंत को एक उत्साही राजनेता के रूप में भी देखा जाता है, जो अपने पिता के विपरीत, जनता की धारणा की परवाह करते हैं।
लेकिन सत्ता में दो साल पूरे करने के बाद सोरेन को बढ़ती जनता की उम्मीदों को पूरा करने आखिरी चुनौती होगी! ऐसे इस समय हेमंत सरकार की लोकप्रियता में कमी आई है, इसका सबसे बड़ा कारण हेमंत जी के प्रेस सलाहकार श्री अभिषेक प्रसाद उर्फ पिंटू जी हैं ,जिनकी दृष्टिकोण बहुत ही संकुचित है, जिसके कारण पिंटू जी छोटे-मोटे बातों में हेमंत सरकार की फजीहत करवा रहे हैं ! संकुचित दृष्टिकोण व्यक्ति अ पने आस-पड़ोस के व्यक्तियों और जातीय बातों में उलझे रहते हैं और जिसका नुकसान हेमंत जी को हो रहा है! पिंटू जी का अनुभव और परिपक्वता की कमी के कारण झारखंड का बहुत बड़ा ‘‘मीडिया समूह’’ हेमंत सरकार के खिलाफ बिगुल बजाना शुरू कर दिया है! ऐसे पिंटू जी कभी किसी मीडिया संस्थाओं से जुड़े हुए भी नहीं थे और उनकी भाषा बहुत ही निम्म स्तर की होती है! ये खुलेआम मीडिया को ‘‘मीडियावा’’ कहते हैं तथा इसके साथ-साथ आपने छोटे अधिकारी से पुरे सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय झारखंड का काम करा रहे हैं!
जिनका नाम सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के उप निदेशक श्रीमती शालिनी वर्मा है! श्रीमती वर्मा हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री के प्रेस सलाहकार श्री अभिषेक प्रसाद उर्फ पिंटू जी की भाभी है
जिसके कारण पूरा का पूरा सूचना एवं जनसंपर्क विभाग श्रीमती वर्मा के इशारे पर नाच रहा है और
पिंटू जी के भाभी वर्तमान निदेशक श्री राजीव लोचन बख्शी के आंखों पर धृतराष्ट्र की तरह काली पट्टी लगा दिया गया है जिसके कारण श्री बक्शी एक मूकदर्शक निर्देशक के रूप में काम कर रहे हैं! श्रीमती वर्मा के तानाशाही रवैया के कारण विपक्षी दलों के साथ-साथ पत्रकारों का एक बड़ा वर्ग हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री झारखंड सरकार के खिलाफ बिगुल बजा दिया है जिसके कारण हेमंत सरकार की छवि धूमिल हो गई है! इसके साथ-साथ पीआरडी आरएसएस तथा भाजपा समर्थित समाचार पत्रों को दोनों हाथों से लाखों रुपए के विज्ञापन दे रहें हैं और इधर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की फजीहत हो रही है।