छड़वा मुहर्रम मैदान में मोहर्रम मेले का किया गया भव्य आयोजन

गगनचुंबी इस्लामी परचम बना मेले का मुख्य आकर्ष

_अंतू साव के ताजिया ने पेश की सद्भावना की मिसाल

हजारीबाग। मोहर्रम पर्व को लेकर हजारीबाग के ऐतिहासिक छड़वा मुहर्रम मैदान में प्रत्येक वर्ष मोहर्रम मेले का आयोजन किया जाता है इस वर्ष भी तीन दिवसीय मोहर्रम मेले का आयोजन किया गया जिसमें मोहर्रम कमिटी द्वारा शनिवार को मोहर्रम की दसवीं (यौम-ए-आशुरा) के दिन मोहर्रम मेले का आयोजन किया गया।

जिसमें मोहर्रम कमिटी के तत्वाधान में कई अखाड़ा धारी शामिल हुए जिसमें गगनचुंबी इस्लामी परचम (झंडा) आकर्षक ताजिया सहित अखाड़ा में शामिल खिलाड़ियों द्वारा जांबाज़ी का प्रदर्शन करते हुए विभिन्न प्रकार के खेल करतब दिखाए गए। जिसे देखकर लोगों ने काफी लुत्फ उठाया। *छड़वा मोहर्रम कमेटी ने पगड़ी रस्म समारोह का आयोजन कर अतिथियों को किया सम्मानित*मोहर्रम मेले में छड़वा मोहर्रम कमेटी के द्वारा पगड़ी रसम आयोजित कर प्रशासनिक पदाधिकारियों, जनप्रतिनिधियों, समाज सेवियों व विभिन्न अखाड़े के खलीफा को पगड़ी पहनाकर सम्मानित किया गया।मोहर्रम मेले में उप विकास आयुक्त प्रेरणा दीक्षित, सदर अनुमंडल पदाधिकारी विद्या भूषण कुमार, प्रशिक्षु आईएएस सुलोचना मीणा, प्रशिक्षु आईपीएस कुमार शुभाशीष, सीसीआर डीएसपी आरिफ एकराम, मुख्यालय डीएसपी राजीव कुमार, सार्जेंट मेजर देवव्रत कुमार, कटकमसांडी अंचल अधिकारी अनिल कुमार, प्रखंड विकास पदाधिकारी वेदवंती कुमारी मुख्य मंच से लगातार मेले पर निगरानी बनाए हुए थे।पेलावल ओपी प्रभारी अभिषेक कुमार सिंह व आरक्षी निरीक्षक उत्तम तिवारी पुलिस बल के जवानों के साथ पूरी मुस्तैदी के साथ नजर आए।

मोहर्रम पर्व के मद्देनजर छड़वा में आयोजित मेले को सफलतापूर्वक समापन और विधि संधारण को लेकर प्रशासनिक महकमा पूरी मुस्तैदी से ड्यूटी पर तैनात रहे। इस दौरान जगह-जगह दंडाधिकारियों और पुलिस बल के जवानों की प्रतिनियुक्ति की गई थी। मोहर्रम कमिटी के द्वारा भी मेले पर बराबर निगरानी रखी गई। मेले के सफल आयोजन को लेकर मोहर्रम कमिटी ने सभी का आभार प्रकट किया। मंचासीन अतिथियों ने मोहर्रम पर्व को लेकर सभी को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि मोहर्रम सब्र व बलिदान का त्यौहार है। इमाम हुसैन के बलिदान को सदैव याद किया जाएगा।

*छड़वा मुहर्रम मेले में 3 प्रखंडों के अखाड़ा हुए शामिल* इस विशाल मेले के आयोजन में छड़वा मोहर्रम कमेटी के तत्वाधान में कटकमदाग कटकमसांडी, इचाक प्रखंड अंतर्गत बलियंद, गदोखर, खुटरा, पबरा, पकरार,हैदलाख, नवादा,भुसवा, हरीना, रोमी, डुकरा, लुपुंग, सुलमी, डांड़, पिचरी, डुमरौन, कंचनपुर का अखाड़ा अपने गगनचुंबी परचम और गाजे-बाजे के साथ शामिल हुआ। आयोजित मेले को देखने के लिए हजारीबाग सहित झारखंड के विभिन्न प्रांतों से हजारों की संख्या में लोग शामिल हुए।*अंतु साव का ताजिया बना सद्भावना की मिसाल, देखने वालों की लगी हुजूम*छड़वा मोहर्रम मेले में अंतू साव का ताजिया संप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश किया। अंतु साव के द्वारा मोहर्रम मेले के आयोजन में आकर्षक ताजिया की झांकी प्रस्तुति की गई जिसे देखने वालों की भीड़ उमड़।

ऐसे में बताना अहम होगा कि अंतु साव का परिवार लगातार पिछले कई वर्षों से मोहर्रम पर्व को श्रद्धा के साथ मनाता चला आ रहा है अंतु साव के द्वारा संप्रदायिक सौहार्द कायम करने को लेकर लगातार किए जा रहे इस सराहनीय कार्य को लोगों के द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है लोग उनकी तारीफ करते नहीं थकते। बता दें कि अंतू साव के द्वारा आकर्षक ताजिया को कई बार पुरस्कृत भी किया जा चुका है। सामाजिक सरोकार के तहत अंतू साव ने गंगा जमीनी की तहजीब की मिसाल कायम की है जो अपने आप में एक मिसाल है और सद्भावना को कायम रखने वाला सराहनीय कार्य है।इस मोहर्रम मेले के आयोजन में मोहर्रम कमीटी के अध्यक्ष मो. मुख्तार अंसारी, सचिव नौशाद खान, प्रवक्ता साजिद अली खान, कोषाध्यक्ष मो. इंतेफाद, कांग्रेस के जिला प्रवक्ता निसार खान, पंसस प्रतिनिधि राजू खान, मुखिया प्रतिनिधि मो. अकबर, मिस्बाह उल इस्लाम, मुखिया अनवारुल हक,मो.कमालुद्दीन, कमरुज्जमा, ओबैदुल्लाह मलिक, बाबर अंसारी, गुलाम साबिर, जमशेद खान, दुर्गा सोरेन के जिला संयोजक मो. फिरोज खान, मो. महबूब, अब्दुल सत्तार, मो. मिनहाज,पन्नू महतो, जिप प्रतिनिधि मनीष ठाकुर,जिप सदस्य मंजु नंदनी, कटकमसांडी प्रमुख संगीता देवी, प्रमुख प्रतिनिधि मुकेश कुमार, प्रखंड बीस सूत्री अध्यक्ष सरयू यादव,कांग्रेस प्रमंडलीय अध्यक्ष (स्वास्थ्य) डॉ आरसी प्रसाद मेहता, कांग्रेसी नेता मुन्ना सिंह, प्रदेश महासचिव कांग्रेस बिनोद कुशवाहा, कांग्रेस प्रदेश प्रतिनिधि दिगंबर मेहता, भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा जिला अध्यक्ष सैयद तनवीर अहमद, मुखिया प्रतिनिधि अशोक राणा, कटकमसांडी कांग्रेस प्रखंड अध्यक्ष नरसिंह प्रजापति,मुखिया अनवारूल हक, अजमत मलिक, मुखिया नारायण साव, उदय मेहता, एपीसीआर के मो. तस़्लीम अंसारी,ओबैदुल्लाह मलिक, तस्लीम अंसारी उर्फ दारोगा अंसारी, नौशाद खान (डिस्को) अंतु साव सहित कई जनप्रतिनिधि एवं बुद्धिजीवी वर्ग के लोग उपस्थित रहे। *इमाम हुसैन की शहादत और कर्बला के शहीदों के बलिदानों को किया जाता है याद* पूरी दुनिया में इस्लामी देशों में इस दिन इस्लाम धर्मावलंबियों की मजहब -ए- इस्लाम के प्रति अटूट आस्था का भरपूर समागम देखने को मिलता है। पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे (नाती) हजरत इमाम हुसैन की शहादत और कर्बला के शहीदों के बलिदानों को याद किया जाता है जिस बहादुरी से हजरत ए हुसैन और उनके काफिले वालों ने यह जंग लड़ी वह दुनिया में एक मिसाल है यजीद की 80000 की फौज के सामने हजरत इमाम हुसैन के सिर्फ 72 लोगों का काफिला था। जिसने यजीद के जुल्म व अत्याचार के खिलाफ यह जंग लड़ी जिसमें यजीदी फौज ने हुसैन के काफिले वालों का पानी तक बंद कर दिया था भूख प्यास की शिद्दत के बावजूद बहुत ही बहादुरी से हुसैनी काफिले ने यह जंग लड़ी। इमाम हुसैन के काफिले वालों ने बहुत ही बहादुरी के साथ यजीदी लश्कर का सामना किया अंत में शहीद हो गए मगर हजरत ए हुसैन को यजीदी लश्कर अंत तक शहीद नहीं कर पाए। मगर जब हजरत इमाम हुसैन असर की नमाज के दौरान सिजदा की हालत में थे तब यजीदी लश्कर ने धोखे से उन्हें शहीद कर दिया जो यजीद की नाकामी को साफ तौर पर बयान करती है, यजीदी फौज ने धोखेबाजी से जिस तरह से हजरत इमाम हुसैन को शहीद किया गया यह यजीदी फौज के धोखे को बयान करती है। आज पूरी दुनिया जानती है हजरत इमाम हुसैन इस्लाम की खातिर शहीद हो गए मगर उन्होंने यजीद के अत्याचार और जुल्म के आगे कभी भी सिर नहीं झुकाया और इंसानियत को जिंदा रखने के लिए इतिहास में अमर हो गए कर्बला के शहीदों ने इस्लाम धर्म को नया जीवन प्रदान किया। अल्लाह ने यजीद के नाम व निशान को इस कदर मिटा दिया कि आज यजीद का नाम लेने वाला कोई नहीं और हुसैन के नाम लेने वाले और उन को मानने वाले करोड़ों की तादाद में दुनिया में मौजूद हैं।*मोहर्रम बलिदान सब्र व इबादत का महीना*मोहर्रम बलिदान, सब्र व इबादत का महीना है यह इस्लाम धर्मावलंबियों का सबसे अहम महीना है। इस्लामी कैलेंडर के अनुसार मोहर्रम हिजरी संवत का प्रथम माह भी है जिसमें पैगंबर हजरत मोहम्मद के प्यारे नवासे (नाती) हजरत इमाम हुसैन एवं उनके परिवार व साथियों की शहादत का दर्दनाक मंजर का का वाकया (घटना)पेश आया। यह जंग 61 हिजरी को यानी कि आज से लगभग 1341 वर्ष पूर्व मौजूदा इराक (कर्बला) में घटित हुआ था। बता दें कि यजीद जो खुद को इस्लाम के खिलाफ जाकर खलीफा घोषित कर दिया था वह एक जालिम हुक्मरानों में से एक था जिसके अत्याचार और हैवानियत की कहानी से लोग काफी डरे सहमे हुए थे। वह खुद को अरब सल्तनत का बादशाह घोषित करना चाहता था। ऐसे में इंसानियत के पैरोकार इमाम हुसैन का खानदान यजीद के लिए सबसे बड़ी चुनौती था। जो यजीद के सामने झुकने को तैयार नहीं थे। इंसानियत के पैरोकार इमाम हुसैन का खानदान ऐसे में यजीद के लिए एक बड़ी चुनौती थी। यजीद के जुल्मों का अत्याचार को खत्म करने के लिए हजरत इमाम हुसैन का 72 लोगों का काफिला कर्बला के लिए रवाना हुआ। जिसमें औरतें और बच्चे भी शामिल थे। जिसमें 6 माह का मासूम अली असगर भी शामिल थे जिसकी यजीदी फौज ने बहुत ही बेरहमी के साथ कत्ल किया जो इंसानियत को शर्मसार करने वाला घटना है। सन 61 हिजरी (680 ईस्वी) में यजीद के लश्कर ने हजरत इमाम हुसैन के काफिले को बीच रास्ते में रोक लिया साथ ही पानी भी बंद कर दिया और हर तरह से जुल्म और अत्याचार करता रहा इस बीच दोनों के दरमियान जंग लगातार जारी रहा भूख प्यास की शिद्दत के बावजूद हुसैनी काफिले में शामिल लोगों ने काफी हिम्मत और बहादुरी का प्रदर्शन करते हुए अंत में शहीद हो गए। मगर यजीदी फौज के बीच हजरत ए हुसैन का खौफ इस कदर हावी था कि वह हजरत इमाम हुसैन को शहीद नहीं कर पाए, यजीदी फौज ने हर कोशिश कर हार मान ली थी मोहर्रम की दसवीं तारीख यौमे आशूरा के दिन नमाज -ए- असर के दौरान नमाज में सजदे की हालत में यजीदी फौज ने उनको धोखे से वार कर शहीद कर दिया। इस धोखे की कहानी इतिहास के पन्नों में दर्ज है जो यजीद के द्वारा किया गया घटिया कृत्य था। यजीदी फौज के द्वारा इस कायराना तरीके से हमले को लोग धोखे की शक्ल में याद करते हैं, जो यजीद की नाकामी को साफ साफ तौर पर बयान करती है यजीद तो ऐसे में जंग जीत कर भी हार गया और हजरत इमाम हुसैन अपनी शहादत देकर इंसानियत और मजहब -ए- इस्लाम को जिंदा रखने का काम किया। हजरत इमाम हुसैन ने अपने नाना पैगंबर हजरत मोहम्मद के बताए सदाचार, अध्यात्म और अल्लाह से बेपनाह मोहब्बत से कर्बला के मैदान में यजीदी लश्कर के द्वारा मिलने वाली पीड़ा, भूख प्यास सब पर विजय प्राप्त कर ली दसवीं मुहर्रम तक हजरत इमाम हुसैन अपने परिवार वालों के शवों को दफनाते रहे और अंत में खुद भी शहीद होकर अमर हो गए और इस्लाम गालिब हो गया। यजीदी लश्कर के द्वारा किए गए इस कायराना हमले और हुसैनी काफिला में शामिल औरतों और बच्चों पर बेरहमी से कत्ल और अत्याचार के कारण अल्लाह यजीद से इस कदर नाराज हुआ कि यजीद के नाम व निशान को दुनिया से इस कदर मिटा दिया कि आज यजीद का नाम लेने वाला दुनिया में एक भी इंसान नहीं है। वही अल्लाह ने हजरत इमाम हुसैन के रुतबे को इस कदर बुलंद किया कि इमाम हुसैन को मानने वाले और उनके नाम लेने वाले करोड़ों की तादाद में आज दुनिया के हर हिस्से में मौजूद हैं। *जिक्र -ए- हुसैन की सजाई गई महफिले शहादत का किया गया बयान*मोहर्रम पर्व के अवसर पर मोहर्रम की 1 तारीख से लेकर मोहर्रम की दसवीं तारीख या मैं आशूरा तक हजारीबाग शहर व आसपास के इलाकों की मस्जिद है मदरसों खान का हो में जिक्र -ए- हुसैन की महफिलें सजाई गई। जिसमें कर्बला के शहादत के वाक्या का बयान किया गया बताया गया कि अल्लाह के दिन को बचाने के लिए और नबी की शरीयत पर अमल करने की दिशा में आने वाली रुकावट के खिलाफ चाहे कैसी भी स्थिति परिस्थिति क्यों ना हो हमें सब्र का दामन नहीं छोड़ना चाहिए जहां इंसानियत को शर्मसार किया जाता हो मजलुमों पर जुल्म व अत्याचार किया जाता हो वैसे में जुल्म के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए और इंसानियत की खातिर सदैव खड़े रहना चाहिए।

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