रोहित उपाध्याय
अयोध्या से तक़रीबन10 किलोमीटर दूर एक ग्राम पंचायत है मांझा बरहटा. उत्तर प्रदेश सरकार ने इसी ग्राम पंचायत में भगवान राम की 251 मीटर ऊंची मूर्ति बनवाने की घोषणा की है. मूर्ति के निर्माण के लिए ज़मीन अधिग्रहण भी किया जा रहा है. हालांकि ग्रामीणों की शिकायत है कि सरकार ज़बर्दस्ती उनकी ज़मीनों का अधिग्रहण कर रही है.
एक दिसम्बर 2021 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या स्थित महर्षि वेद विज्ञान विद्यापीठ के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था.उस दिन मांझा बरहटा ग्राम पंचायत के निवासी अरविंद कुमार यादव को हाउस अरेस्ट किया गया था. अरविंद कुमार एक किसान हैं.
अरविंद कुमार का कहना है कि उन्होंने उस दिन पुलिस वालों से गुज़ारिश की थी कि उन्हें खेतों की जुताई करनी है जो घर के पास ही है. उनके अनुसार पुलिस वालों ने अनुमति दी तो वे ट्रैक्टर से अपने खेतों की जुताई करने लगे और इस दौरन खेत की मेड़ पर बैठे दोनों पुलिसकर्मी उन पर निगरानी रख रहे थे.चारों तरफ़ गन्ने की फ़सल लहलहा रही थी. बीच के कुछ खेत धान की फ़सल दे चुके थे और अगली फ़सल के लिए तैयार किए जाने थे. मांझा बरहटा की मिट्टी उपजाऊ है, पानी की कोई कमी नहीं है. इसलिए यहां के किसान एक ही सीज़न में कई चीज़ों की खेती करते हैं.
अरविंद कुमार ने जुताई पूरी कर अपना ट्रैक्टर खड़ा किया, कपड़ों से मिट्टी झाड़ी और नंगे पैर ही खेत में चलते हुए कहा, “देखिए खेती के लिए कितनी बढ़िया ज़मीन है ये, हमारे बाप दादा पुरखे यहां रहते और खेती करते आए, लेकिन अब सरकार हमें उजाड़ना चाहती है. और हम अपनी बात सरकार से कह न सकें इसलिए जब भी मुख्यमंत्री (योगी आदित्यनाथ) जी यहां आते हैं तो मुझे हाउस अरेस्ट कर लिया जाता है.”
यह पूछे जाने पर कि आख़िर सरकार क्यों ये ज़मीन लेना चाहती है, वह कहते हैं, ”योगी जी यहां विश्व की सबसे बड़ी मूर्ति लगवाना चाहते हैं. भगवान राम की मूर्ति जो 251 मीटर ऊंची होगी.”
नौ नवंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर बनाने के पक्ष में फ़ैसला दिया था. इस फ़ैसले के दो महीने बाद 14 जनवरी 2020 में अयोध्या के डीएम ऑफ़िस से नोटिफ़िकेशन निकाला गया था.
नोटिफ़िकेशन में लिखा था कि भगवान राम की मूर्ति बनाने के लिए मांझा बरहटा ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले गांव नेऊर का पुरवा, बनवारी पुरवा, छोटी मुजहानिया, बड़ी मुजहानिया, धरमू का पुरवा, खाले का पुरवा और मदरहिया की 85.977 हेक्टेयर ज़मीन का सरकार अधिग्रहण करना चाहती है. इस ग्राम पंचायत में लगभग 350 परिवार हैं और आबादी तीन हज़ार के आसपास है.
अरविंद कुमार बताते हैं, “इस नोटिफ़िकेशन से सब गांव वाले परेशान हो गए. हम किसान हैं, खेती और पशुपालन कर जीवन यापन करते हैं. अगर सरकार हमारी ज़मीन ले लेगी तो हम कहां जाएंगे! हमने संबंधित अधिकारियों से बात करने की कोशिश की लेकिन हमें कहीं से संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहा था. उल्टे सरकार और प्रशासन ने ज़मीन अधिग्रहण की सहमति देने के लिए हम लोगों पर दबाव डालना शुरू कर दिया. इसके बाद 28 फ़रवरी 2020 को हमने हाईकोर्ट जाने का फ़ैसला किया.”
अरविंद कहते हैं, “हाईकोर्ट में हमने अपनी बात रखी कि हम कई पीढ़ियों से मांझा बरहटा में रह रहे हैं. आज़ादी के पहले से ही हम ज़मींदारों की ज़मीनों पर रिआये (प्रजा) की तरह बसे हुए हैं. लेकिन सर्वे बंदोबस्त न होने की वजह से हम गांव वालों की आबादी दर्ज नहीं हो पाई. साल 1992 में महर्षि रामायणविद्यापीठ ट्रस्ट ने मांझा बरहटा की काफी ज़मीन रामायण विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए किसानों से ख़रीदी थी.
विश्वविद्यालय के नाम पर हमारे बुज़ुर्गों ने ख़ुशी-ख़ुशी ज़मीन ट्रस्ट को बेच दी, लेकिन ट्रस्ट ने कोई विश्वविद्यालय नहीं बनवाया और न ही भूमि पर कभी क़ब्ज़ा किया. अब क्योंकि 1984 से आज तक न तो ज़मीन का सर्वे बंदोबस्त हुआ है और न ही चकबंदी हुई है तो ऐसे में हमें नहीं पता कि हमारी कौन सी ज़मीन ट्रस्ट के पास है, ज़मीन कहां से कहां तक है, सड़क कहां है और नाली किधर से निकलेगी. इतने सालों में इस गांव की आबादी भी बढ़ गई है और लोगों ने घर भी बनवाए हैं. सरकार सर्वे बंदोबस्त कराए और 2013 के भूमि अधिग्रहण क़ानून का पालन करते हुए अधिग्रहण करे.”
हाईकोर्ट ने किसानों की बात सुनी और 16 जून 2020 को ऑर्डर पास किया. ऑर्डर में प्रशासन को भूमि का सर्वे बंदोबस्त कराने और भूमि अधिग्रहण क़ानून (2013) के तहत किसानों की ज़मीनों का अधिग्रहण करने का निर्देश दिया.
अरविंद कहते हैं कि साल भर बीत जाने के बाद भी ना तो प्रशासन ने किसानों की सहमति ली, न मुआवज़े पर बात बनी और न ही सर्वे कराया गया. बल्कि गाव वालों को प्रशासन ने तरह-तरह से टॉर्चर करना शुरू कर दिया. 15 नामज़द और 200 अज्ञात लोगों के ख़िलाफ़ धारा 188 IPC के तहत मुक़दमा दर्ज किया गया.
अरविंद कुमार यादव का कहना है कि उन पर भी गुंडा ऐक्ट लगा दिया गया. प्रशासन की मनमानी से परेशान गांव वालों ने फिर हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. पाँच जुलाई 2021 को कोर्ट ने प्रशासन को अदालत की अवमानना के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया और सर्वे कराने के लिए फ़रवरी 2022 तक का समय दिया.
“हां, कोर्ट ने फ़रवरी 2022 तक का समय दिया है तो क्या हुआ? हम अभी अदालत से एक साल का समय और लेंगे. इस सब काम में समय लगता है”, फ़ाइल समेटते हुए सहायक अभिलेख अधिकारी (ARO) भान सिंह ने कहा.
टोके जाने पर, कि ‘सर्वे बंदोबस्त तो 1984 से चल रहा है, 35 साल से अभी एक ग्राम पंचायत का सर्वे बंदोबस्त पूरा नहीं हो सका है?’ भान सिंह ने कहा, “‘लोगों को मालूम नहीं कि कितना समय लगता है. दरअसल ऐसा है कि महर्षि महेश योगी का ट्रस्ट आवास विकास परिषद को ज़मीन देने के लिए राज़ी हो गया है. और जब आवास विकास वाले ज़मीन पर क़ब़्ज़ा कर रहे हैं तो लोग नहीं चाहते कि वो ज़मीन छोड़ें.”
लेकिन यह पूछे जाने पर कि बिना सर्वे बंदोबस्त के कैसे आवास विकास परिषद ज़मीनों का अधिग्रहण कर रहा है तो भान सिंह ने तपाक से कहा, “वो आवास विकास जाने, वो उसका काम है.”
मांझा-बरहटा क्षेत्र में (जहां मूर्ति लगनी है) अधिग्रहीत की जा रही क़रीब 70 प्रतिशत ज़मीन महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट के नाम है. ट्रस्ट ने 56.82 हेक्टेयर भूमि प्रदेश सरकार को देने के लिए आवास विकास परिषद के MOU पर हस्ताक्षर कर दिया है.
आवास विकास परिषद के अधिशासी अभियंता ओम प्रकाश पाण्डेय ने फ़ोन पर बताया कि, “मांझा बरहटा में ज़मीन अधिग्रहण का काम चल रहा है और ग्रामीण स्वेच्छा से अपनी ज़मीनें दे रहे हैं. कोई विरोध नहीं कर रहा है.”
आवास विकास के दफ्तर में जाने पर वहां मौजूद आवास विकास तहसीलदार प्रवीण कुमार ने भी यही बात दोहराई कि सभी किसान अपनी मर्ज़ी से ज़मीनें दे रहे हैं और कोई भी विरोध नहीं कर रहा है.
यह पूछे जाने पर कि, सर्वे बंदोबस्त के बिना ज़मीनों का अधिग्रहण कैसे किया जाएगा? किसकी ज़मीन कहां तक है, और किसका घर किस गाटा संख्या में है यह प्रशासन कैसे तय करेगा? जवाब में प्रवीण कुमार कहते हैं, “अगर सर्वे बंदोबस्त नहीं हुआ है तो जिस भी शक्ल में मैप है उसी के आधार पर अधिग्रहण होगा.”
महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट ने रामायण विश्वविद्यालय बनवाने के लिए ज़मीन ख़रीदी थी, लेकिन न तो तुरंत बाद क़ब्ज़ा किया गया और न ही विश्वविद्यालय बनाया गया.
इस सवाल पर महर्षि रामायण विद्यापीठ ट्रस्ट के एक ट्रस्टी सालिक राम मिश्रा ने बताया, “महर्षि जी का प्लान एक नई अयोध्या बसाने का था. बड़े प्लॉट्स पर हमारा क़ब्ज़ा था लेकिन कुछ छोटे प्लॉट्स पर नहीं था. हमने कई बार ऐप्लीकेशन दी. कभी पुलिस हमारे साथ जाकर हमारे पक्ष में बोलती थी तो कभी उन लोगों के पक्ष में जिन्होंने हमारी ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर रखा है. हमने बढ़िया दाम देकर ज़मीन ख़रीदी है और बाक़ायदा चेक से पेमेंट किया है. ज़मीन की वैल्यू बढ़ने से गांव वालों की नीयत बदल गई है.”
हालांकि मांझा बरहटा गांव के 70 वर्षीय राम अवध यादव कहते हैं कि यह सब उनके सामने की बात है. महर्षि महेश योगी के ट्रस्ट को गांव वालों ने ज़मीन स्कूल बनवाने के नाम पर बेची थी क्योंकि गांव के आसपास कोई स्कूल नहीं था और सब चाहते थे कि उनके बच्चे स्कूल में पढ़ें और आगे बढ़ें लेकिन लगभग 30 साल का वक़्त बीत जाने के बाद भी गांव में स्कूल नहीं खोला गया.
राम अवध अपनी बात ख़त्म करते इससे पहले ही रामचंद्र यादव (37) ने बोलना शुरू कर दिया, “प्रशासन ने हमें हर तरह से परेशान कर रखा है. मेरी पत्नी इस गांव की प्रधान हैं. मुझे कभी ब्लॉक डेवलपमेंट ऑफ़िसर) के माध्यम से कभी सेक्रेटरी के माध्यम से DM ऑफ़िस ले जाया जाता और मुझसे कहा जाता कि गांव वालों से ज़मीन की सहमति दिलाओ. मजबूरी में मुझे अपनी सहमति देनी पड़ी. दबाव डालकर सहमति ली जा रही है.”
इस पूरे मामले पर किसानों का पक्ष हाईकोर्ट में रखने वाले अधिवक्ता ओंकार नाथ तिवारी ने कहा कि सरकार गांव वालों के साथ तानाशाही रवैया अपना रही है.(बीबीसी से साभार )