संवाददाता श्रीकान्त यादव
शानदार नालंदा विश्वविद्यालय को पुनः प्राप्त करने में 831 साल लग गए, जिसका उद्घाटन 19 जून को प्रधानमंत्री मोदी ने किया। यह प्राचीन विश्वविद्यालय सदियों से खंडहर में पड़ा हुआ था।
खिलजी की आगजनी के बाद, ऐसा कहा जाता है कि नालंदा तीन महीने से अधिक समय तक जलता रहा, जिससे लगभग नौ मिलियन पुस्तकें और पांडुलिपियाँ नष्ट हो गईं।
जो बख्तियार खिलजी का एक नाम नालंदा के समानांतर चला आ रहा था, आज उस कलंक को इतिहास के पन्नों से खुंरच दिया है l
उम्मीद है लगे हाथ नालंदा विश्वविद्यालय को जलाने वाले आततायी मुगल बख्तियार खिलजी के नाम पर बसे शहर और रेलवे स्टेशन बख्तियारपुर का नाम भी बदल दिया जाएगा…
नालंदा जलाए जाने की कहानी जो बताई जाती है-
तुर्की का सैन्य कमांडर बख्तियार खिलजी गंभीर रूप से बीमार पड़ गया। सारे हकीम हार गए परंतु बीमारी का पता नहीं चल पाया। खिलजी दिनों दिन कमजोर पड़ता गया और उसने बिस्तर पकड़ लिया। उसे लगा कि अब उसके आखिरी दिन आ गए हैं।
एक दिन उससे मिलने आए एक बुज़ुर्ग ने सलाह दी कि दूर भारत के मगध साम्राज्य में अवस्थित नालंदा महाविद्यालय के एक ज्ञानी राहुल शीलभद्र को एक बार दिखा लें, वे आपको ठीक कर देंगे। खिलजी तैयार नहीं हुआ। उसने कहा कि मैं किसी काफ़िर के हाथ की दवा नहीं ले सकता हूँ, चाहे मर क्यों न जाऊं!!
मगर बीबी बच्चों की जिद के आगे झुक गया। राहुल शीलभद्र जी तुर्की आए। खिलजी ने उनसे कहा कि दूर से ही देखो मुझे छूना मत क्योंकि तुम काफिर हो और दवा मैं लूंगा नहीं। राहुल शीलभद्र जी ने उसका चेहरा देखा, शरीर का मुआयना किया, बलगम से भरे बर्तन को देखा, सांसों के उतार चढ़ाव का अध्ययन किया और बाहर चले गए।
फिर लौटे और पूछा कि कुरान पढ़ते हैं?
खिलजी ने कहा दिन रात पढ़ते हैं!
पन्ने कैसे पलटते हैं?
उंगलियों से जीभ को छूकर सफे पलटते हैं!!
शीलभद्र जी ने खिलजी को एक कुरान भेंट किया और कहा कि आज से आप इसे पढ़ें और राहुल शीलभद्र जी वापस भारत लौट आए।
उधर दूसरे दिन से ही खिलजी की तबीयत ठीक होने लगी और एक हफ्ते में वह भला चंगा हो गया। दरअसल राहुल शीलभद्र जी ने कुरान के पन्नों पर दवा लगा दी थी जिसे उंगलियों से जीभ तक पढ़ने के दौरान पहुंचाने का अनोखा तरीका अपनाया गया था।
खिलजी अचंभित था मगर उससे भी ज्यादा ईर्ष्या और जलन से मरा जा रहा था कि आखिर एक काफिर ईमानवालों से ज्यादा काबिल कैसे हो गया?
अगले ही साल 1192 में मोहम्मद गौरी ने सेना तैयार की और जा पहुंचा नालंदा महाविद्यालय मगध क्षेत्र। पूरी दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञान और विज्ञान का केंद्र। जहां 10000 छात्र और 2000 शिक्षक एक बड़े परिसर में रहते थे। जहां एक तीन मंजिला इमारत में विशालकाय पुस्तकालय था, जिसमें एक करोड़ पुस्तकें, पांडुलिपियां एवं ग्रंथ थे।
खिलजी जब वहां पहूँचा तो शिक्षक और छात्र उसके स्वागत में बाहर आए, क्योंकि उन्हें लगा कि वह कृतज्ञता व्यक्त करने आया है।
खिलजी ने उन्हें देखा और मुस्कुराया और तलवार से भिक्षु श्रेष्ठ की गर्दन काट दी (क्योंकि वह पूरी तैयारी के साथ आया था)। फिर हजारों छात्र और शिक्षक गाजर मूली की तरह काट डाले गए (क्योंकि कि वह सब अचानक हुए हमले से अनभिज्ञ थे)। खिलजी ने फिर ज्ञान विज्ञान के केंद्र पुस्तकालय में आग लगा दी। कहा जाता है कि पूरे तीन महीने तक पुस्तकें जलती रहीं।
खिलजी चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि तुम काफिरों की हिम्मत कैसे हुई इतनी पुस्तकें पांडुलिपियां इकट्ठा करने की? बस एक दीन रहेगा धरती पर बाकी सब को नष्ट कर दूंगा।
पूरे नालंदा को तहस नहस कर जब वह लौटा
तो रास्ते में विक्रम शिला विश्वविद्यालय को भी जलाते हुए लौटा।
डाॅ आरती वाजपेयी असिस्टेंट प्रोफेसर
(इंटरनेट से साभार)