राजनीतिक संवाददाता द्वारा
रांची. लंबे समय के बाद दिल्ली में राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के नए-पुराने और अनुभवी नेताओं की मुलाकात ने पार्टी के अंदर नई ऊर्जा का संचार कर दिया है. ददई दुबे से लेकर फुरकान अंसारी जैसे नेता फिर एकबार हुंकार भरने को तैयार दिख रहे है. कल तक खुद की सरकार और संगठन को आईना दिखाने वाले फुरकान अंसारी अब पारा शिक्षकों के साथ सरकार का न्याय और किसानों की कर्जमाफी का बखान करने में जुट गए हैं. वहीं बंधु तिर्की जैसे कांग्रेस के विधायक विस्थापन-नियोजन-नियुक्ति-सरना धर्म कोड पर मुखर दिख रहे हैं. ये तेवर भविष्य की राजनीति की ओर इशारा कर रहा है.
नई दिल्ली में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात के बाद कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व तीन दिवसीय चिंतन शिविर की तैयारियों में जुट गया है। चिंतन शिविर के लिए नेतरहाट में आयोजन तय हो चुका है
संगठन की मजबूती, संगठन के विस्तार और संगठन में एकजुटता पर कांग्रेस के नेता काम करते हुए नजर आएंगे. 17 से 19 फरवरी तक आयोजित तीन दिवसीय चिंतन शिविर को लेकर कांग्रेस के नेता उत्साहित नजर आ रहे हैं. इस चिंतन शिविर में न सिर्फ संगठन को सर्वोपरी बनाने, बल्कि सरकार में रहने के नफा-नुकसान पर भी विस्तार से चर्चा होगी. प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर के अनुसार, तीन दिवसीय चिंतन शिविर से संगठन को बहुत कुछ मिलने जा रहा है. पार्टी आगामी कार्यक्रम के साथ सरकार में अपनी दमदार उपस्थिति की कार्ययोजना भी तैयार करेगी.
झारखंड कांग्रेस फिलहाल खुद को टूटने से बचाने में जुट गई है. आए दिन कांग्रेस विधायकों के पाला बदलने की अफवाह राजनीतिक गलियारों में उड़ती रहती है. इन सबसे दूर झारखंड कांग्रेस इस बार अपने विरोधियों की चिंता बढ़ाने के लिए चिंतन शिविर में भविष्य की राजनीति पर बड़ा फैसला लेने की तैयारी में जुट गई है
झारखंड विधानसभा सत्र से ठीक पहले आयोजित यह शिविर हेमंत सोरेन सरकार के लिए भी किसी चुनौती से कम नहीं है। अचानक इस चिंतन शिविर के आयोजन के मायने मतलब निकाले जा रहे हैं और यह माना जा रहा है कि झारखंड में कांग्रेस पहले से अधिक आक्रामक होगी। पार्टी के लिए राहत की बात यह है कि अभी तक कोई दूसरा गुट मजबूती से सामने आकर खड़ा नहीं हैं। एक-दो विधायक इधर उधर बातें करते हैं लेकिन मौके पर चुप्पी साध लेते हैं।
नई दिल्ली में राहुल गांधी ने विधायकों से बातचीत करते हुए साफ कहा है कि पार्टी के घोषणापत्र से कोई समझौता नहीं होगा और यह हेमंत सोरेन सरकार के लिए एक सख्ती का संदेश है। राहुल गांधी ने कांग्रेस मंत्रियों को विधायकों एवं संगठन की बातों को ध्यान में रखकर निर्णय लेने की नसीहत दी है। इससे तत्काल तो कांग्रेस का अंदरूनी झगड़ा शांत पड़ गया है, लेकिन झामुमो से तल्खी बढ़ सकती है। तल्खी बढ़ने का अहम कारण होगा अब तक अनदेखी का आरोप लगा रहे विधायकों की मांगों को पूरा करना।
कांग्रेस के कई विधायक झारखंड के बोर्ड एवं निगमों पर नजर गड़ाए हुए हैं और चिंतन शिविर के बाद उनके हाथ कुछ ना कुछ जरूर लगेगा। ऐसे भी राहुल गांधी ने यह कह कर इसके संकेत दिए हैं की पार्टी हित के आगे किसी समझौते को नहीं मानेंगे। कांग्रेस के कई विधायक बार-बार आरोप लगाते रहे हैं कि बोर्ड और निगम में उन्हें वाजिब हिस्सेदारी नहीं मिल रही है। संगठन इसकी पूरी सूची तैयार कर कांग्रेस मुख्यालय भेज चुका है, जहां से इस मुद्दे पर सरकार के साथ बातचीत होगी।
झामुमो बड़ा पार्टनर होने के आधार पर अधिक हिस्सेदारी जरूर लेगा, लेकिन कांग्रेस अपने हक से एक कदम भी पीछे नहीं हटेगी। तमाम बातें इस बात की ओर संकेत कर रहे हैं कि गठबंधन में तनातनी बढ़ सकती है। चिंतन शिविर में प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी अविनाश पांडेय व सह प्रभारी उमंग सिंघार भी मौजूद रहेंगे। इनकी मौजूदगी में उठे मुद्दों का हल जल्द से जल्द करवाने की मशक्कत में पूरी टीम लगी है।
दूसरी ओर आलम यह है कि हेमंत सरकार में कांग्रेस के पास चार अहम मंत्रालय हैं. रामेश्वर उरांव के पास वित्त और खाद्य आपूर्ति, आलमगीर आलम के पास ग्रामीण विकास और पंचायती राज, बादल के पास कृषि, पशुपालन और सहकारिता तथा बन्ना गुप्ता के पास स्वास्थ्य और आपदा प्रबंधन मंत्रालय का जिम्मा है. हालांकि स्थिति यह है कि अपने अपने विभागों में ही पार्टी के जन घोषणा पत्र को लागू कराने में कांग्रेसी मंत्रियों का परफॉर्मेंश उम्मीदों से पीछे ही है. कहा जाये कि अब तक वे फिसड्डी ही साबित हुए हैं.
अब भी करीब 60 लाख कार्डधारकों को नियमतः 35 किलो चावल नसीब नहीं हो रहा जबकि इसके लिये वादा था. इसमें 2-3 किलो तक कटौती हो ही रही है. घोषणा पत्र के विपरीत कार्डधारकों को दाल, तेल मिल ही नहीं रहा है. केवल जून 2020 में ही कुछ समय के लिये दाल मिली थी. केवल अंत्योदय कार्ड वालों को चीनी मिलती है वह भी समय पर और गारंटी के साथ नहीं. रेगुलर राशन दिये जाने की गारंटी दो सालों में भी तय नहीं पायी है. पिछले साल अक्टूबर- नवंबर (2021) के दौरान कार्डधारकों को राशन मिल ही नहीं पाया था.
पार्टी ने घोषणा की थी कि राशन वितरण की समस्या दूर करने को वह चलती फिरती राशन दुकान सेवा शुरू करेगी. पर यह अब तक शुरू नहीं हो सकी है. डाकिया योजना के तहत चौबीसों जिलों में आदिम जनजाति परिवारों के घर राशन पहुंचाने की व्यवस्था को दुरूस्त करने की बात थी. पर हकीकत यह है कि 35 किलो के पैकेट की बजाये 30-32 किलो का ही पैकेट उन तक पहुंच रहा. वह भी रेगुलर नहीं. मिड डे मील के तहत वित्तीय राशि बढ़ायी जायेगी पर इसमें भी बदलाव नहीं हुआ है.
स्थानीय स्तर पर उत्पादित होने वाले अनाजों (मडुआ, मकई, मोटा अनाज व अन्य) को शामिल करने की बात थी. इससे स्थानीय उत्पादन और उत्पादों को प्रोत्साहन मिलने की उम्मीद थी पर इस दिशा में भी पहल अब तक नहीं की जा सकी है.
आधार से लिंक ना होने से करीब 12 लाख सदस्यों का कार्ड अक्टूबर 2020 में रद्द कर दिया गया था. अब भी फिर से सबों को पुरानी स्थिति में नहीं लाया जा सका है. फिर से सबों को नया राशन कार्ड नहीं मिल पाया है. अधिक से अधिक लोगों को पीडीएस से जोड़ने की मुहिम भी कागजी कोरम वाली है. पीएम मातृ वंदना का लाभ सभी लाभार्थियों को दिलाने का मसला भी कमजोर है. बल्कि देश भर में झारखंड में सबसे बुरी हालत है. योजना का लाभ केवल सिंगल चाइल्ड के लिये मिलता है. लंबा चौड़ा फॉर्मेट है जिसे भरना मुश्किल है. ऐसे में इसके जरिये 5000 रुपये तक का लाभ ले पाना ग्रामीण माताओं के लिये आसान नहीं.
ऐसे राहुल गाँधी के नसीहत के बाद कांग्रेसियों में जोश है तथा जे .एम. एम .में काफी बेचैनी लग रहा है