रिपोर्ट- अविनाश मंडल
पाकुड़/कौन कहता है आसमाँ में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों”, मतलब है कि कोई भी कार्य कठिन नहीं होता बस जरूरत है सही मन और पक्के इरादे से उस कार्य को पूरा करने की कोशिश करना। राकेश कुमार दास ने इसको चरितार्थ कर दिखाया।जिले अमडापाड़ा के गरीब दलित के बेटे राकेश कुमार दास ने पीएचडी की उपाधि प्राप्त किया।
पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा गांव से पीएचडी डिग्री प्राप्त करने का सफर तय किया। सिदो कान्हू मुर्मू विश्वविद्यालय दुमका से मनोविज्ञान विषय में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। राकेश ने डॉक्टरेट उपाधि प्राप्त करके न सिर्फ गांव, शहर सहित जिला का नाम भी रौशन किया है, बल्कि सभी आने वाली छात्रों और युवाओं के लिए एक उम्दा मिसाल कायम की, अगर इरादे बुलंद हो तो क्या नहीं हो सकता।
अल्लामा इक़बाल की बहुत ही मशहूर पंक्तियाँ है कि “ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले, ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है”. राकेश ने बहुत ही गरीबी और संघर्ष करते हुए ये उपलब्धि हासिल किया है। इन्होंने बातचीत में बताया कि मैंने अपना शोध कार्य अपने गुरु और शोध निदेशक डॉ कलानंद ठाकुर के निर्देशन में किया और गुरु डॉ स्वतंत्र कुमार सिंह के मार्गदर्शन में किया, उनके बिना शोध संभव नहीं था मेरे लिए। अपने इस उपलब्धि का श्रेय अपने परिवार और मित्रों को दिया है, डॉ राकेश ने कहा कि मेरे इस संघर्ष में पिता गिरिधारी दास, माता सुनीता देवी, ससुर जी दिलीप कुमार मेहरा, सासु मां नीतू देवी, पत्नी प्रिया भारती, बेटा श्रेयांश नील, भाई राज शेखर, साले साहब रवि रंजन, राजीव रंजन, साली मिंकी रानी, बहन रेणु और प्रीति, जीजाजी संजीव कुमार दास, भांजा शिवम सभी शामिल रहे।
इन सभी के आशीर्वाद, प्यार, त्याग, धैर्य और प्रेरणा के वजह से गरीबी से लड़ते हुए ये मुकाम हासिल कर सका हूं।