पिता बढ़ई मिस्त्री का काम, बेटा बना मैट्रिक टॉपर

शिक्षा प्रतिनिधि द्वारा
जमशेदपुर. झारखंड बोर्ड के दसवीं के नतीजों में गुदड़ी के लाल ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. लौह नगरी के नाम से विख्यात टाटानगर (जमशेदपुर) के बिष्टुपुर रामकृष्ण मिशन पब्लिक स्कूल के छात्र अभिजीत शर्मा ने मैट्रिक की परीक्षा में झारखंड टॉपर आ कर जिला ही नहीं बल्कि राज्य का नाम रौशन किया है. दरअसल जेएसी द्वारा जारी नतीजों के अनुसार झारखंड बोर्ड की 10वीं के नतीजों में कुल 6 बच्चों ने पहला स्थान प्राप्त किया है. टॉपर्स लिस्ट में अभिजीत शर्मा, जमशेदपुर निवासी, तनु कुमारी, तान्या साह, रिया कुमारी, निशा वर्मा एवं निशु कुमारी शामिल हैं.
मैट्रिक टॉपर बनने वाला जमशेदपुर का अभिजीत अपने माता-पिता का एकलौता बेटा है. अपने बेटे की सफलता पर जहां माता-पिता और ट्यूशन पढ़ाने वाले शिक्षक खुश हैं, वहीं शहर के लोगों का उसके घर पहुंच कर बधाई देने का तांता लगा है. अभिजीत बताते है किं वह पढ़ लिख कर आईएएस बनेंगे. झारखंड टॉपर आने पर उसने कहा कि यह तो उसका सपना था. झारखंड टॉपर आने के लिये उसने कड़ी मेहनत की थी.

अभिजीत के घर की माली हालत बेहद खराब है. उसके पिता कारपेंटर (बढ़ई) हैं जो शहर में गली-गली घूम कर फर्नीचर बनाते हैं और फर्नीचर बनाकर जो मजदूरी मिलती है उसी से घर का खर्चा और अपने बच्चे को पढ़ा रहे हैं. घर की हालत तो यह है कि कभी कभी भूखे भी रहना पड़ता है. सबसे अधिक परेशानी कोरोना काल के दौरान हुई जब इस परिवार का गुजारा इधर-उधर से मांग कर चलता था. बेटे की स्कूल फीस, पढ़ाई का खर्चा सहित अब तक 50 हजार सिर पर कर्ज है. वैसे तो 50 हजार कोई बड़ी रकम नहीं है लेकिन तिनका-तिनका जोड़कर परिवार चलाने वाले अभिजीत के पिता अखिलेश शर्मा के लिये पहाड़ जैसी बोझ है.
घर की माली हालत सुधारने के लिए कभी-कभी अभिजीत भी अपने पिता का हाथ बढ़ई के काम में बंटाता है.अभिजीत ने भी अपने पिता की मेहनत और मजदूरी को करीब से देखा है. अभिजीत के पिता बताते हैं कि आज उनको अपने बेटे पर गर्व है. उसकी पढ़ाई के लिये जितना भी मेहनत करनी पड़े, वो करते रहेंगे.
अभिजीत की मां तिलोका शर्मा बताती हैं कि वो भाड़े के मकान में रहती हैं. यह उनका आंठवा किराये का घर है. मकान का किराया बढ़ जाने पर उन्हें मकान छोड़ना पड़ता था. जमशेदपुर में जहां सस्ते में मकान मिल जाता है, वो वहीं किराये का मकान ले लेती हैं. उनके पास ना अपना घर है और ना ही जमीन. बस घर चलने भर की आमदनी में वो अपने बेटे को पढ़ा रही थीं और आज भी ऐसी ही स्थिति बनी है.

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