पिनाकी दास
बीते मंगलवार त्रिपुरा के दो बीजेपी विधायकों सुदीप रॉय बर्मन और आशीष साहा को लेकर चल रहे कयासों पर पूर्ण विराम लग गया.त्रिपुरा विधानसभा के अध्यक्ष रतन चक्रबर्ती को बीते सोमवार अपना इस्तीफ़ा सौंपने वाले सुदीप रॉय बर्मन और आशीष साहा ने मंगलवार को दिल्ली में कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण कर ली.वहीं, सोमवार तक बाग़ी विधायकों के साथ नज़र आए तीन अन्य बीजेपी विधायक डॉ अतुल देबबर्मा, दिबा चंद्र ह्रंगख्वाल और बर्बा मोहन त्रिपुरा मंगलवार को उनके साथ दिखाई नहीं दिए.त्रिपुरा के स्वास्थ्य मंत्री रहे सुदीप रॉय बर्मन ने अपने कांग्रेस में शामिल होने की घटना को ‘घर वापसी’ करार दिया है.
मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब पर निशाना साधते हुए बर्मन ने कहा कि वह बीते डेढ़ साल से शासन चलाए जाने के निरंकुश ढंग के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा रहे थे,जिसमें सिर्फ एक व्यक्ति की चलती है. कैबिनेट मंत्रियों को भी सुना नहीं जाता है.
उन्होंने ये भी आरोप लगाया है कि बीजेपी के राज में आतंक को खुली छूट दे दी गई है. लोकतंत्र दांव पर लगा है क्योंकि आम लोगों, विपक्ष और मीडिया की आवाज़ को दबा दिया गया है.त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री समीर रॉय बर्मन के बेटे सुदीप रॉय बर्मन को राज्य की राजनीति में एक कद्दावर नेता माना जाता है. साल 2018 में उन्होंने बीजेपी को त्रिपुरा की गद्दी पर बिठाने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी.बर्मन कहते हैं कि उन्होंने इस्तीफ़ा देकर राहत की सांस ली है क्योंकि यह सरकार जनता से किए उन वादों को पूरा करने में बुरी तरह असफल रही है, जिनके दम पर यह सत्ता में आई थी.वह कहते हैं, “इस निरंकुश सरकार में सिर्फ एक व्यक्ति को सुना जाता है और उसके आदेशों का पालन किया जाता है. कोई विधायक या मंत्री अपनी शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर सकता. उनके आदेशों पर काम नहीं होता है. पूरे प्रदेश में आतंक का बोलबाला है. लोकतंत्र का गला घोंट दिया गया है. ”
उहोंने कहा, ” मीडिया की भी आवाज़ दबा दी गयी है. ऐसे में ये हमारी ज़िम्मेदारी है कि हम राज्य में लोकतंत्र को पुनर्स्थापित करें और ये सुनिश्चित करें कि सभी लोकतांत्रिक संस्थाएं संवैधानिक रूप से चलें. इस तरह की निरंकुश सोच से किसी भी राज्य में विकास और समृद्धि नहीं आ सकती.”उन्होंने ये भी कहा कि ये सरकार अपने किए वादों को पूरा करने में बुरी तरह असफल हुई है .अब ये साफ़ हो गया है कि सत्ता में आने के लिए खोखले वादे किए गए थे.
वह कहते हैं, “बीजेपी ने इस राज्य की जनता को मूर्ख बनाया है और अब ये पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि उनका उद्देश्य जनता से किए वादे पूरे करना नहीं, बल्कि आर्थिक संसाधनों को लूटना है.”
कांग्रेस के त्रिपुरा प्रभारी डॉ अजय कुमार और त्रिपुरा कांग्रेस के अध्यक्ष बिराजीत सिन्हा की मौजूदगी में रॉय बर्मन ने दावा किया कि बीजेपी समेत अन्य दलों के 13 विधायक कांग्रेस में शामिल होने की कतार में हैं. सही मौका आने पर वे सामने आएंगे और बीजेपी सरकार अल्पमत में आ जाएगी.
इसी बीच, विधानसभा अध्यक्ष रतन चक्रबर्ती ने दोनों विधायकों के इस्तीफ़ों को स्वीकार कर लिया है.
बातचीत में रतन चक्रबर्ती बताते हैं, “विधानसभा के कार्य संचालन नियम – 364 के अनुसार दोनों विधायक सुदीप रॉय बर्मन और आशीष साहा ने सभी ज़रूरी शर्तों को पूरा किया है. ऐसे में उनके इस्तीफ़ों को स्वीकार किया गया है. और ये सोमवार से मान्य होंगे क्योंकि उन्होंने सोमवार को इस्तीफ़ा दिया था.”
वह बताते हैं, “दोनों नेता अब विधानसभा के सदस्य नहीं रहेंगे और कानून के मुताबिक़, छह महीने के अंदर उप-चुनाव होने चाहिए. इन दो रिक्तताओं के साथ त्रिपुरा में चार विधानसभाओं में उप-चुनाव होने की स्थिति बन गयी है.
क्योंकि हाल ही में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और सीपीआईएम विधायक रामेंद्र चंद्र नाथ के निधन से एक सीट खाली हुई है. कुछ महीने पहले बीजेपी छोड़कर टीएमसी में जाने वाले बीजेपी विधायक आशीष दास की दलबदल कानून की वजह से विधायकी जाने के बाद भी एक अन्य सीट खाली हुई है. दास आने वाले छह सालों तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे लेकिन सुदीप रॉय बर्मन और आशीष साहा उप-चुनाव लड़ सकते हैं.
साठ सीटों वाली त्रिपुरा विधानसभा में अगले साल फरवरी – मार्च में चुनाव होने हैं. इससे पहले साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 36 सीटें हासिल करके सीपीआईएम के नेतृत्व वाले लेफ़्ट फ्रंट के 25 साल पुराने शासन को उखाड़ फेंका था. इसके बाद बीजेपी ने नौ सीटें जीतने वाले राजनीतिक दल आईपीएफ़टी के साथ मिलकर सरकार बनाई.
लेकिन 43 फीसदी वोट हासिल करने वाली बीजेपी की सबसे बड़ी चिंता ये है कि उसका वोट शेयर वाम मोर्चे की तुलना में सिर्फ 0.3 फीसदी ज़्यादा है.
हालांकि, त्रिपुरा की बीजेपी सरकार इसे बड़ा नुकसान नहीं मानती है. लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो दो विधायकों का इस्तीफ़ा पार्टी के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि पांच बार के विधायक सुदीप रॉय बर्मन ने बीजेपी को सत्ता में लाने में एक बड़ी भूमिका निभाई थी.उनके नेतृत्व में ही कांग्रेस छोड़कर टीएमसी जाने वाले छह विधायकों ने बीजेपी की सदस्यता ग्रहण की थी, जिसे त्रिपुरा की राजनीति में एक टर्निंग प्वॉइंट माना जाता है.
हालांकि, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष डॉ साहा और रॉय बर्मन के राजनीतिक शिष्य माने जाने वाले सूचना मंत्री सुशांत चौधरी दावा करते हैं कि बाग़ी विधायकों के पार्टी छोड़ने से कोई संकट नहीं आया है क्योंकि बीजेपी के पास साठ सीटों वाली विधानसभा में पूर्ण बहुमत है.
बाग़ी विधायकों के इस्तीफ़े पर प्रतिक्रिया देते हुए सूचना मंत्री सुशांत चौधरी दावा करते हैं कि वह इसमें अपनी सरकार को गिराकर लेफ़्ट फ़्रंट की सरकार को पुनर्स्थापित करने की साजिश देख रहे हैं.वे कहते हैं कि ये सभी साजिशें बेकार साबित होंगी क्योंकि बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत है.
चौधरी दावा करते हैं, “फिलहाल सरकार के सामने कोई संकट नहीं है क्योंकि उसके पास पूर्ण बहुमत है. लेकिन भविष्य के बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता.”
“ऐसा लगता है कि बाग़ी विधायक सीपीआईएम की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं ताकि वह सत्ता में वापस आ सके. और कम्युनिस्ट इस स्थिति का फायदा उठाने की कोशिश करेंगे क्योंकि उन्हें इस तरह की विषम परिस्थितियों का लाभ उठाने के लिए जाना जाता है.”
मामले पर पूर्व सांसद एवं सीपीआईएम के राज्य सचिव जितेंद्र चौधरी कहते हैं कि बीजेपी की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है और ऐसा होना ही था.चौधरी कहते हैं, “बीजेपी चुनाव से पहले किया गया एक भी वादा पूरा करने में सफल नहीं हुई है. और प्रदेश की जनता और इसके विधायकों को खोखले वादों का अहसास हो गया है. यहां पार्टी के भीतर और बाहर लोकतंत्र नहीं
ऐसे में ये बिलकुल चौंकाने वाला नहीं है. ये होना ही था और ये होना शुरू हो चुका है. ये सिर्फ शुरुआत है क्योंकि त्रिपुरा की बीजेपी किसी आंदोलन, संघर्ष, राजनीतिक संघर्ष और विचारधारा से नहीं उपजी है. ये अवसरवादियों का एक कैंप है.
उनका कहना है, ” पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के झूठे वादों से प्रभावित सभी लेफ़्ट विरोधी नेता ये सोचकर एकजुट हुए थे कि जब बीजेपी सत्ता में आएगी तो नकदी का प्रवाह काफ़ी बढ़ेगा और इससे उन्हें फायदा होगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बल्कि इस प्रवाह में कमी आई.
”बीजेपी की उलटी गिनती काफ़ी पहले शुरू हो गयी थी. लेकिन ये सबके सामने नहीं थी. अब चूंकि ये प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, तो आने वाले दिनों में हर दिन बीजेपी की उलटी गिनती चलेगी.”चौधरी, जो कि सीपीआईएम की आदिवासी प्रभाग के भी अध्यक्ष हैं, मानते हैं कि आने वाले दिनों में स्थिति और ख़राब होगी.वहीं, सुदीप रॉय बर्मन और आशीष साहा के इस्तीफ़े को त्रिपुरा तृणमूल बीजेपी का आंतरिक मामला बताती है. लेकिन बीजेपी के नेतृत्व वाली लोकतंत्र विरोधी सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकने की दिशा में वह इसका स्वागत करती है.
त्रिपुरा में टीएमसी का काम संभाल रहे पश्चिम बंगाल के पूर्व मंत्री राजीब बनर्जी कहते हैं, “ये उनका निजी और दलगत मुद्दा है. हम इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहते. लेकिन हम सभी ग़ैर-बीजेपी मानसिकता वाले लोगों से अपील करते हैं कि वे हमारे साथ जुड़ें ताकि यहां इस लोकतंत्र-विरोधी दल के साथ हमारे संघर्ष को बल मिल सके. वो सभी लोग जो कि त्रिपुरा में लोकतंत्र की पुनर्स्थापना करना चाहते हैं, उनके लिए हमारे द्वार खुले हुए हैं. अब फ़ैसला उन्हें करना है.”(बीबीसी से साभार )