News Agency : चर्चित सामाजिक कार्यकर्ता स्टेन स्वामी 80 साल की उम्र में राजद्रोह का आरोप झेल रहे हैं। उनके खिलाफ झारखंड की बीजेपी सरकार ने देशद्रोह की धाराओं में मुकदमा दर्ज किया था। पिछले साल खूंटी जिले में व्यापक तौर पर चले पत्थलगड़ी आंदोलन को समर्थन देने के कारण झारखंड के कई अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ सरकार ने इस आरोप में मुकदमा किया हुआ है।
पूर्वी और पश्चिमी सिंहभूम जिलों में भी दर्जनों लोगों पर पुलिसिया कार्रवाई की गई है। उनके खिलाफ विभिन्न थानों में रिपोर्टें दर्ज हैं। इनमें अधिकतर आदिवासी हैं। झारखंड की बीजेपी सरकार ने इनके खिलाफ तब राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करा दिया, जब वे अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने और ग्रामसभा की व्यवस्था के पक्ष में आंदोलन कर रहे थे।
अब राजद्रोह का आरोप झेल रहे यही लोग झारखंड में बीजेपी के लिए चुनौती बने हुए हैं। लोकसभा के मौजूदा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा है। लोगों का आरोप है कि बीजेपी की सरकार ने अपने निहित स्वार्थ के लिए निर्दोष आदिवासियों और उनसे सहानुभूति रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा किया है। अब उन्हें जवाब देने की बारी है।
चर्चित सोशल एक्टिविस्ट सिराज दत्ता ने कहा कि नरेंद्र मोदी की सरकार ने उन तमाम लोगों की आवाजें बंद कराने की कोशिश की, जो उनकी तानाशाही का विरोध कर रहे थे। पूरे देश में सोशल एक्टिविस्टों के खिलाफ न केवल झूठे मुकदमे दर्ज कराए गए, बल्कि कई मामलों में तो लोगों की हत्या तक कर दी गई। फादर स्टेन स्वामी पर की गई कार्रवाई इसका उदाहरण है।
दत्ता कहते हैं कि वह आदमी, जिसने अपनी पूरी जिंदगी जंगलों में आदिवासियों के साथ काम करते गुजार दी और जो बीमारी के कारण पिछले कुछ सालों से रांची से बाहर नहीं गया, सरकार ने उन्हें भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी बना दिया। इसी तरह झारखंड के आदिवासियों के खिलाफ मुकदमे कराए गए, क्योंकि वे अपना अधिकार मांग रहे थे।
सिराज दत्ता बताते हैं कि झारखंड पांचवीं अनुसूची का राज्य है। भारत का संविधान इन इलाकों के लिए विशेष शासन व्यवस्था का प्रावधान करता है। इन जगहों पर ग्रामसभा सबसे मजबूत है और उसे कई तरह के विशेष अधिकार मिले हुए हैं। जब खूंटी जिले के कुछ आदिवासी ग्राम सभाओं ने बैठक कर पत्थलगड़ी अभियान चलाया, तो झारखंड सरकार ने उसे कुचलने का काम किया। दर्जनों आदिवासियों पर देशद्रोह के मुकदमे लाद दिए।
अब न केवल खूंटी बल्कि सिमडेगा, गुमला, रांची, चाईबासा, सरायकेला खरसांवा, पूर्वी सिंहभूम समेत प्रदेश के अधिकतर जिलों में इसके खिलाफ आवाज उठ रही है। लोग कह रहे हैं कि इस चुनाव में बीजेपी की उस सरकार के खिलाफ वोटिंग होगी, जिसने उन पर देशद्रोह के झूठे आरोप लगाए। करीब 30 जनसंगठनों के मंच झारखंड जनाधिकार महासभा ने भी कहा है कि गरीबों-दलितों और आदिवासियों की आवाज कुचलने वाली मोदी सरकार का अंत होना चाहिए।
इस बीच, कांग्रेस ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कहा है कि अगर कांग्रेस की सरकार बनी, तो वह ‘न्याय’ के साथ विकास करेगी और राजद्रोह कानून के दुरुपयोग को रोकेगी। कांग्रेस की इस घोषणा का झारखंड में बड़ा असर हो रहा है। वरिष्ठ पत्रकार विनोद कुमार ने कहा कि बीजेपी की सरकार ने राजद्रोह कानून का बड़ी बेशर्मी से दुरुपयोग किया। अब अगर कांग्रेस इसे खत्म करने की बात कर रही है तो यह स्वागत योग्य है। लोकसभा चुनाव में उसे इसका निश्चित तौर पर फायदा मिलेगा।
झारखंड में पहले चरण की वोटिंग 29 मई को है। इस दिन चतरा, लोहरदगा और पलामू संसदीय सीटों के लिए मतदान होना है। इन तीनों ही जगहों पर बीजेपी उम्मीदवार परेशानी में हैं। इनमें सिर्फ चतरा की सीट ही सामान्य है। पलामू सीट अनुसूचित जाति (एससी) के लिए और लोहरदगा सीट अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है।
चतरा में काफी चर्चाओं के बाद बीजेपी ने मौजूदा सांसद सुनील सिंह को टिकट दिया। उनसे मतदाताओं की नाराजगी का आलम ये है कि सीएम रघुवर दास के समक्ष ही बीजेपी कार्यकर्ताओं ने उनकी हूटिंग कर दी। उन्हें माफी मांगनी पड़ी। वहां कांग्रेस के मनोज यादव और आरजेडी के सुभाष यादव उन्हें टक्कर दे रहे हैं।
इसी तरह पलामू में बीजेपी के मौजूदा सांसद और उम्मीदवार बीडी राम के खिलाफ बड़ा असंतोष है। इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उनके नामांकन में गए झारखंड सरकार के मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी ने अपने भाषण में कहा कि आप बीडी राम की गलतियों को नजरअंदाज कीजिए। नरेंद्र मोदी को देखिए और उनके नाम पर वोट दीजिए। उनका सीधा मुकाबला आरजेडी के घूरन राम से है। घूरन राम को सभी विपक्षी पार्टियों का समर्थन हासिल है, लिहाजा वह मजबूत स्थिति में हैं।
वहीं लोहरदगा में केद्रीय मंत्री सुदर्शन भगत को मतदाताओं का विरोध झेलना पड़ रहा है। उन्हें कांग्रेस पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुखदेव भगत कड़ी चुनौती दे रहे हैं। जाहिर है कि देशद्रोह कानून के दुरुपयोग और दलितों-आदिवासियों की उपेक्षा और उत्पीड़न के मुद्दे पर बीजेपी बुरी तरह घिर चुकी है। ऐसे में पिछले लोकसभा चुनाव में झारखंड की कुल चौदह में से बारह सीटें जीतने वाली बीजेपी के लिए इस बार अपनी सीटें बचा पाना असंभव हो चुका है।