झारखंड में कांग्रेस-बीजेपी के बीच आमने-सामने की लड़ाई

झारखंड में कांग्रेस-बीजेपी के बीच आमने-सामने की लड़ाई

News Agency : झारखंड की जमीन पर कदम रखते ही लोगों का गुस्सा नजर आता है। जिन तीन सीटों पर twenty nine अप्रैल को मतदान होना है, 2014 के चुनाव में ये तीनों सीटें बीजेपी ने जीती थीं। इन तीनों सीटों के लोगों से बात करते वक्त एक बात सामने आती है, वह यह कि लोग बीजेपी के खिलाफ बोलते हुए डरते हैं। बहुत से लोग पहले आश्वस्त होते हैं कि वे किससे बात कर रहे हैं उसके बाद ही कुछ बोलते हैं। लेकिन अगर उन्हें लगता है कि सामने वाला व्यक्ति बीजेपी समर्थक है तो वे अपनी बात रोक लेते हैं।

इन तीनों ही सीटों पर मौजूदा बीजेपी सांसदों को लेकर लोगों की नाराजगी साफ दिखती है। सांसदों से शुरु होकर नाराजगी पीएम नरेंद्र मोदी, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री रघुबर दास तक पहुंचती है। यही वजह है कि स्थानीय बीजेपी नेताओं के साथ ही बीजेपी के स्टार प्रचारक यहां पूरी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन रोचक यह है कि कांग्रेस-झामुमो और विकास मोर्चा के साथ ही आरजेडी के महागठबंधन की सरगर्मी यहां इतनी नजर नहीं आती।

मोदी को जमीनी हकीकत का शायद एहसास है, इसीलिए मुख्यमंत्री रघुबर दास ने ऐलान किया है कि सरना धार्मिक कोड को 2021 तक लागू कर दिया जाएगा।

दरअसल झारखंड का आदिवासी समुदाय लंबे अर्से से सर्ना कोड की मांग करता रहा है। इसके लागू होने से आदिवासियों के धर्म को अलग पहचान मिल जाएगी। हालांकि आदिवासी अलग-अलग धार्मिक परंपराएं मानते हैं, लेकिन फिर भी उन्हें हिंदू ही माना जाता रहा है, क्योंकि उनके धर्म के लिए अलग से कोई व्यवस्था नहीं है।

लोहरदगा सीट के आदिवासियों के लिए यह सबसे बड़ा मुद्दा और चिंता है। बीजेपी इस कोड को लागू करने में हिचकिचाती रही है क्योंकि आरएसएस की नजर में सारे आदिवासी हिंदू ही हैं।

लोहरदगा सीट अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित है, और कांग्रेस ने यहां से सुखदेव भगत को उतारा है जिनका मुकाबला मौजूदा सांसद बीजेपी के सुदर्शन भगत से है। कांग्रेस ने 2004 में इस सीट से जीत हासिल की थी। सुखदेव भगत फिलहाल लोहरदगा विधानसभा सीट से विधायक हैं और उनकी पत्नी पंचायत अध्यक्ष।

संयोग से इस बार के चुनाव में इस सीट से कोई भी निर्दलीय उम्मीदवार मैदान में नहीं है, जो 2014 की तरह कांग्रेस के वोट काट ले। इलाके में एक एसी की दुकान चलाने वाले शमसुल हक कहते हैं कि, “पिछली कांग्रेस करीब 6000 वोट से हारी थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। ज्यादातर आदिवासियों को समझ आ गया है कि बीजेपी उनका भला नहीं करने वाली।” लोहरदगा में 20 फीसदी मुस्लिम मतदाता है, जबकि 51 फीसदी आदिवासी और 4 फीसदी ईसाई वोटर हैं।

लोहरदगा की बाहरी सीमा पर मिट्टी के मकान में रहने वाले सुखनाथ ओरांव कहते हैं कि, “इस बार हम कांग्रेस को वोट देंगे। कम से कम वह हमारी बात तो सुनते हैं। चुनाव के मौके पर लोग तो तरह तरह की बातें करते हैं, लेकिन हमें पता है कि कौन क्या कर रहा है।”

थोड़ा आगे बढ़ने पर विनीता ओरांव मिलती है, जो सड़क किनारे पकोड़े बेचकर गुजारा करती हैं। वे कहती हैं, “यह सड़क पिछले कुछ सालों में बनी है, जिससे हमारी जिंदगी कुछ बेहतर हुई है, लेकिन सिर्फ इसके लिए हम सरकार नहीं चुनेंगे। ”

इलाके में रहने वाले कमल केसरी का कहना है कि, “बाईपास बनाने का वादा कहां गया? छोटानागपुर किराएदारी कानून का क्या हुआ? गुमला तक रेल लाइन का क्या हुआ? अगर हम बीजेपी को चुनेंगे तो वे तो ओबीसी आरक्षण भी छीन लेंगे।”

परेसर गांव में बहुत से ऐसे लोग मिले जो बहुत आक्रामक तरीके से बीजेपी का समर्थन करते दिखे। ये सारे के सारे इलाके की एकमात्र बैंक के पास जमा हैं। इनकी मौजूदगी के चलते बहुत से गांव वालों ने अपनी न रखना ही मुनासिब समझा।

लेकिन पलामू में मामला थोड़ा आसान दिखा। यहां से आरजेडी के घुरम राम चुनाव लड़ रहे हैं और उनका सीधा मुकाबला बीजेपी के विशु दयाल राम से है। बीएसपी के दुलाल भुइयां भी यहां से मैदान में हैं, लेकिन उनके होने न होने से कोई फर्क दिखाई नहीं देता।

पलामू के मुद्दे कुछ अलग हैं। इनमें सूखा, पानी की कमी, पेंशन और आधार से होने वाली तकलीफें मुख्य हैं। आधार के कारण यहां के मजदूरों को मनरेगा का पैसा नहीं मिल पा रहा है। राज्य की बीजेपी सरकार के दौर में इन सारी तकलीफों में इजाफा ही हुआ है।

मानवाधिकारों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ता जेम्स हेरेंज समझाते हैं कि, “यहां लड़ाई पैसे और सिद्धांतों की है। बीजेपी के पास पैसे की कोई कमी नहीं है और बेशुमार पोस्टर बैनर, तमाम प्रचार गाड़ियां देखकर इसका अंदाज़ा भी लग जाता है।” वे बताते हैं कि, “यहां के चर्च ने ईसाइयों से कह दिया है कि अगर कांग्रेस का उम्मीदवार नहीं है तो ऐसे उम्मीदवार को वोट दें जो बीजेपी को हरा सके। इससे इस सीट पर लड़ाई कुछ आसान सी दिखने लगी है।“ जेम्स का मानना है कि, ‘सरना वोट भी शायद आरजेडी को ही जाएगा। अगर शराब और पैसे का खेल नहीं हुआ तो घुरन राम का जीतना लगभग तय है।‘

उधर चतरा में चुनाव काफी नाटकीय है। यहां मुकाबला त्रिकोणीय दिखता है जो कांग्रेस, बीजेपी और आरजेडी के बीच है। इस सीट पर कांग्रेस का आरजेडी के साथ गठबंधन नहीं है। वैसे यहां के मौजूदा सांसद सुनील सिंह को लेकर जबरदस्त गुस्सा है। स्थानीय लोग इसलिए नाराज हैं क्योंकि वह लोगों से मिलते-जुलते नहीं हैं। इसीलिए वे अब रैलियों में माफी मांगते फिर रहे हैं। कांग्रेस ने इस सीट से मनोज यादव को उतारा है जिनका मुकाबला आरजेडी के संजय यादव से है। संजय यादव रेत व्यापारी है और लालू परिवार का उन्हें नजदीकी माना जाता है।

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