तो क्या उत्तर प्रदेश की राजनीतिक जमीन पर अपने पांव मजबूती से जमाने के लिए कांग्रेस की नजर भी जातीय समीकरणों पर है?
ये सवाल इसलिए क्योंकि इन दिनों लखनऊ के मॉल एवेन्यू स्थित कांग्रेस के दफ्तर पर प्रियंका गांधी वाड्रा और बाकी नेताओं से मिलने वालों का जमावड़ा लगा है। लेकिन इन नेताओं से मिलने से पहले कांग्रेस कार्यकर्ताओं के हाथ में थमाया जा रहा है एक फॉर्म।
इस फॉर्म में उनसे तमाम जानकारियां मांगी जा रही हैं। शुरुआत किसी भी दूसरे फॉर्म की तरह नाम और तस्वीर के साथ होती है। लेकिन शिक्षा तक पहुंचने से पहले जाति की जानकारी भरने को कहा जाता है। पता भरने से पहले उपजाति पूछी जाती है।
2014 की चुनावी टीस कांग्रेस भूली नहीं होगी। कांग्रेस 80 में से महज दो सीटें जीत सकी। वो भी सिर्फ और सिर्फ अपनी परंपरागत सीटें। अमेठी पर काबिज हुए राहुल गांधी तो रायबरेली गया मां सोनिया गांधी के खाते में। लेकिन तब से अब तक चुनावी वैतरणी में काफी पानी बह चुका है। हाल ही में कांग्रेस ने तीन राज्यों में जीत का जायका चखा है। कुछ उसके सबक कहिए और कुछ सपा-बसपा के गठबंधन से बने हालात, कांग्रेस को फिलहाल जातिगत समीकरणों पर सवार होकर उत्तर प्रदेश में पैठ बनाने का मौका दिख रहा है। माना जा रहा है कि टिकट बंटवारे के वक्त ये डेटा काफी काम आ सकता है।
इस फॉर्म से ये भी साफ होता है कि कांग्रेस, सोशल मीडिया पर सक्रियता को लेकर कितनी गंभीर है। कार्यकर्ताओं से उनके व्हॉट्सएप नंबर और ईमेल के अलावा ट्विटर हैंडल का पता भी पूछा जा रहा है।
वैसे ये भी दिलचस्प है कि खुद पार्टी की नई नवेली महासचिव और पूर्वी उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी भी हाल ही में ट्विटर पर आई हैं। हालांकि, व्यस्तता के चलते वो कोई ट्वीट भले न कर पाई हों लेकिन उनके फॉलोअर्स की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। खबर लिखे जाने तक ट्विटर पर उनके फॉलोअर्स की संख्या 1 लाख 85 हजार के पार चली गई। इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस भी भाजपा की तरह सोशल मीडिया पर तेजी से प्रचार करने वाली है।