महागठबंधन के भय से कांपती भाजपा!


अरुण कुमार चौधरी
रांची : लगता है कि बीजेपी झारख्ांड में चुनाव हार स्वीकार कर लिया है। क्योंकि पिछले 25 वर्षों से झारख्ांड के गिरिडीह संसदीय क्षेत्र में भाजपा सांसद श्री रवींद्र पांडेय ने झंडा फहराये हुये थे उसी सीट को भाजपा ने आजसू को जीता-जीताया सीट दे दिया और अब लगता है कि झारख्ांड में भाजपा का आत्मविश्वास पूरी तरह से डगमगा गया है। क्योंकि पिछले चार वर्षों में भाजपा में रघुवर सरकार के नाकामी के कारण सभी उपचुनाव हार गये है। जिसके कारण वह अपने आत्मविश्वास को पूरी तरह से खो गये और जिससे लगता है कि अभी से ही भाजपा झारख्ांड में अपना हथियार डाल दिया है जहां एक ओर प्रधानमंत्री अपने भाषण में राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रश्नों पर चुनाव में भरपूर फायदा का प्रयास कर रहे हैं वहीं झारख्ांड में भाजपा अस्त और पस्त लग रही है। लेकिन उपचुनावों में हार के बाद आजसू भाजपा के साथ संबंधों की समीक्षा की बात करते रहे हैं। भाजपा ने उनके बयानों को तबज्जों भी नहीं दिया। लेकिन भाजपा ने तालमेल कर लिया। इससे भाजपा के लोग भी चकित हैं। भाजपा के भीतर ही गिरिडीह में कई दावेदार उभर आये थे। भाजपा जिन सीटों पर अपनी जीत पक्की मान कर चल रही थी उसमें गिरिडीह अहम है। भाजपा का यह कदम बताता है कि भाजपा अपनी तमाम चुनावी तैयारियों के बाद भी जीत को लेकर निश्चिंत नहीं हो पा रही है। इस हालात में आजसू ने एक लोकसभा सीट हासिल कर राजनीतिक कामयाबी हासिल की है। भाजपा ने बिहार में भी जदयू से गठबंधन करने के बाद अपनी जीत वाली कई सीटों को छोडा है। लेकिन बिहार से झारखंड का मामला भाजपा के लिए अलग इसलिए है कि भाजपा के लिए झारखंड राजनीतिक ताकत का इलाका है। राजनीतिक प्रेक्षक अब भी मान रहे हैं कि अनेक ऐसे सवाल हैं, जिसके कारण भाजपा परेशान है। इसमें आरक्षण का सवाल सबसे ऊपर है। आदिवासी, दलित ओर पिछड़ों के बड़े तबके में यह महसूस हो रहा है कि भाजपा देर-सबेर आरक्षण को उनसे पूरी तरह छीन लेगी। इससे ऐसा लगता है कि झारखंड में झारखण्ड में महागठबंधन ने उसकी जबर्दस्त रुप से घेराबंदी कर दी है, और ऐसी हालत में भाजपा का झारखण्ड से वर्तमान की 14 में से जीती हुई 12 सीट पुन: निकाल पाना मुश्किल है, इसलिए वह वो काम भी करने लगी है, जो एक तरह से भाजपा के लिए नामुमकिन कहा जाता था। इस फैसले से आजसू खुश है कि उसे अपने गरम रूख के कारण बैठे-बैठाये एक सीट मिल गई और वह भी गिरिडीह। 2014 की लोकसभा चुनाव में भाजपा के रवीन्द्र पांडे यहां से चुनाव जीते थे, तथा झामुमो के जगरनाथ महतो यहां दूसरे स्थान पर रहे थे। रवीन्द्र पांडे ऐसे भी अब तक गिरिडीह से पांच बार चुनाव जीत चुके है, और इस बार यहां से लड़ने के लिए बाघमारा के दबंग भाजपा विधायक ढुलू महतो ने भी जोर लगा दिया था, और वे इसके लिए प्रयासरत भी थे, माना भी जा रहा था कि राज्य के मुख्यमंत्री रघुवर दास और ढुलू महतो एक ही जाति से आते है, इसलिए इस बार ढुलू को भाजपा से गिरिडीह संसदीय सीट के लिए टिकट मिल जायेगा, पर गिरिडीह सीट भाजपा की ओर से आजसू को गिफ्ट कर दी गई, ऐसे में बेचारे ढुलू को भी घोर निराशा हुई है। सूत्र बताते है कि पहले झाविमो से बाघमारा के विधायक बने और फिर बाद में भाजपा के टिकट पर विधायक बने ढुलू महतो की अंतिम इच्छा हैं, सूत्र यह भी बताते है कि वे पलटी मारने को भी तैयार है, वे झामुमो और झाविमो दोनों से संबंध बनाये हुए हैं, और अगर इन्हें इन पार्टियों से टिकट मिल जाता है, तो वे चुनाव लड़ भी लेंगे। इधर गिरिडीह के वर्तमान सांसद रवीन्द्र पांडे भी यह समाचार सुनकर स्तब्ध रह गये, उनको लगता था कि यह सीटिंग सीट है, भाजपा नहीं छोड़ेगी, और फिर उन्हें ही टिकट मिलेगा, पर अमित शाह के निर्णय से वे भी आश्चर्यचकित हैं तथा सोच में पड़ गये कि क्या किया जाये, सूत्र बताते है कि वे भी आगे की रणनीति बनाने में लग गये है। राजनीतिक पंडितों की बात मानें तो भाजपा ने गिरिडीह सीट आजसू को देकर, मान लिया कि वह झारखण्ड में भी कमजोर है, क्योंकि झारखण्ड में आजसू उतनी सशक्त नहीं, जितना भाजपा समझ रही है, अगर जातिवाद की भी बात करें तो बहुत कम ही लोग हैं, जो सुदेश महतो को जाति के नाम पर वोट करें या अपना नेता माने, क्योंकि आज भी यहां का कुरमी समुदाय स्व. विनोद बिहारी महतो को ही अपना नेता मानते है, और झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन आज भी उन्हें अपना धर्म पिता मानते है, उनका सम्मान करते है। पिछले दिनों दिल्ली में भाजपा ने गिरिडीह लोकसभा की अपनी सीटिंग सीट आजसू को दे दी है। पिछले दिनों दिल्ली में भाजपा-आजसू की हुई बैठक में इस पर सहमति बनी। गिरिडीह संसदीय क्षेत्र से भाजपा के रवींद्र पांडेय सांसद हैं। भूपेंद्र यादव ने इसकी घोषणा की। इस मौके पर भाजपा के प्रदेश प्रभारी मंगल पांडेय और आजसू प्रमुख सुदेश महतो भी मौजूद थे। जानकारी के मुताबिक श्री महतो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बुलावे पर दिल्ली पहुंचे थे। वहां अमित शाह के साथ सुदेश महतो की लंबी बातचीत हुई, जिसमें तालमेल पर सहमति बनी। हालांकि आजसू की ओर से दो सीटों (हजारीबाग और गिरिडीह) की मांग की जा रही थी। पर भाजपा फिलहाल एक सीट पर राजी है़ अब भाजपा राज्य की 13 लोकसभा सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। गिरिडीह भाजपा की परंपरागत सीट है। इस बार बाघमारा के विधायक ढुल्लू महतो इस सीट से अपनी दावेदारी चाह रहे थे। ढुल्लू महतो और सांसद रवींद्र पांडेय कई बार इस सीट को लेकर आमने-सामने भी हो चुके हैं। लेकिन भाजपा महागठबंधन के डर से हथियार डाल दिया है।


सभी विस सीटों पर चुनाव लड़ने का आजसू ने कर रखा है एलान
आजसू काफी पहले ही कार्यसमिति की बैठक में विधानसभा की सभी सीटों पर चुनाव लडऩे की घोषणा कर चुकी है। लोकसभा चुनाव को लेकर कहा गया था कि संसदीय बोर्ड की बैठक में इसपर निर्णय लिया जाएगा। अभी इस बोर्ड की बैठक नहीं हुई है।


उपचुनाव में दोनों ने दिए थे प्रत्याशी
भाजपा और आजसू ने पिछले लोकसभा चुनाव अलग-अलग लड़ा था। इसके बाद 2014 में ही हुए उपचुनाव में दोनों का गठबंधन हुआ। हाल ही में सिल्ली तथा गोमिया विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने सिल्ली में तो प्रत्याशी नहीं दिया लेकिन गोमिया में भाजपा और आजसू दोनों ने अपने-अपने प्रत्याशी दिए थे।

आजसू के लिए भी राह आसान नहीं
आजसू के लिए भी गिरिडीह लोकसभा सीट आसान नहीं है। इससे पहले भी आजसू यहां अपना उम्मीदवार उतार चुकी है। लेकिन बूरी तरह से मुंह की खानी पड़ी है। आजसू के प्रबल दावेदारों में सबसे पहला नाम तो सुदेश महतो का ही है। दूसरे नंबर पर उनके ससुर यूसी मेहता, तीसरे नंबर पर टुंडी विधायक राज किशोर महतो और चौथे नंबर पर लंबोदर महतो। जो भी हो इतना तय है कि कोई महतो चेहरा ही गिरिडीह लेकसभा के लिए आजसू की तरफ से उम्मीदवार होगा। मतलब जितने भी दिग्गज जो सांसद सीट के लिए फाइट करेंगे लगभग सभी महतो फ्लेवर वाले ही होंगे। ऐसे में कौन बाजी मारेगा इसके लिए थोड़ा और इंतजार करने की जरूरत है।

Related posts

Leave a Comment