बिहार की राजनीति में वंशवाद की लहराती बेल

वंशवाद और परिवारवाद को लेकर बड़ी चर्चा हो रही है। सबसे अधिक आलोचना पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद की होती है। उन्होंने पत्नी, बेटा-बेटी-सबको राजनीति में बढ़ा दिया। उनसे पहले बने मुख्यमंत्री सत्येंद्र नारायण सिन्हा की राजनीतिक विरासत को लोग नहीं देख पा रहे हैं। आप देखिए-पत्नी,पुत्र, पुत्रवधु, सबके सब लोकसभा के सदस्य बने।

दूसरा-किन लोगों को उनकी पार्टी के नेताओं ने अपने लाभ के लिए आगे बढ़ाया। पहले मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह के दो पुत्र शिवशंकर सिंह और बंदीशंकर सिंह राजनीति में आए। दोनों विधायक बने। बंदीशंकर सिंह मंत्री भी बने। विधानसभा के लिए दोनों की यात्रा डॉ.श्रीकृष्ण सिंह के निधन के बाद शुरू हुई। दोनों के गुजरने के बाद वह यात्रा खत्म भी हो गई। श्रीबाबू के पौत्र सुरेश शंकर सिंह उर्फ हीराजी जीवित हैं। उनके पुत्र यानी श्रीबाबू के प्रपौत्र 2015 में निर्दलीय चुनाव लड़कर हार चुके हैं। आज की तारीख में प्रथम मुख्यमंत्री के परिवार का कोई सदस्य किसी सदन में नहीं है।

दूसरे मुख्यमंत्री दीप नारायण सिंह को पुत्र नहीं था। उनकी पारिवारिक विरासत आगे नहीं बढ़ी। तीसरे मुख्यमंत्री विनोदानंद झा के पुत्र कृष्णानंदन झा बिहार सरकार में मंत्री थे। अभी झारखंड कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय हैं। केबी सहाय और महामाया प्रसाद सिंह के परिजनों ने राजनीति में सक्रिय होने की कोशिश की। पार्टी और मतदाताओं का सहयोग नहीं मिलने के कारण दूर तक नहीं चल पाए।

सतीश प्रसाद सिंह जीवित हैं। उनकी पुत्री सुचित्रा सिन्हा राज्य सरकार में मंत्री रह चुकी हैं। उनकी राजनीतिक सक्रियता कायम है। वीपी मंडल भले ही कम दिनों के लिए मुख्यमंत्री रहे हों, लेकिन उनके नाम पर एक राजनीतिक धारा बन गई। उनके पुत्र मणिंद्र कुमार मंडल उर्फ ओम बाबू अल्पकाल के लिए राजनीति में आए।

पांच साल जदयू के विधायक रहे। सत्ता की राजनीति इस परिवार को रास नहीं आ रही है। यह अलग बात है कि उनके परिवार के कई लोग आज भी राजनीति में सक्रिय हैं। किसी सदस्य को संरक्षण नहीं मिल पाया। भोला पासवान शास्त्री, हरिहर सिंह, रामसुंदर दास, अब्दुल गफूर, चंद्रशेखर सिंह, केदार पांडेय और बिंदेश्वरी दुबे ऐसे मुख्यमंत्री रहे हैं, जिनके परिवार का कोई सदस्य आज की तारीख में किसी सदन का सदस्य नहीं है।

रामसुंदर दास और अब्दुल गफूर के पुत्र विधायक रहे हैं। केदार पांडेय के पुत्र सांसद रहे हैं। चंद्रशेखर सिंह कीपत्नी सांसद रही हैं। भागवत झा आजाद के पुत्र कीर्ति आजाद इस समय भी सांसद हैं। भागवत झा आजाद ने अपने कार्यकाल में परिजनों को राजनीति में बढ़ावा नहीं दिया।

श्री बाबू की तरह कर्पूरी ठाकुर के परिजन भी उनके जीवन काल में राजनीति में नहीं आए। उनके पुत्र रामनाथ ठाकुर, विधायक और मंत्री के बाद इस समय राज्यसभा सदस्य हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दरोगा प्रसाद राय के बाद उनकी पत्नी विधायक बनी थीं। इस समय उनके पुत्र विधायक हैं।

छपरा से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे हैं। बुराई नीचे से आई या ऊपर से कुल मिलाकर बात यह बनती है कि राजनीति में परिवार और वंश की परंपरा अगर गलत है तो इस गलती के लिए किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। यह प्रवृत्ति सिर्फ मुख्यमंत्रियों तक सीमित नहीं है। अपवाद को छोड़ दें तो सांसद, मंत्री और विधायक तक में यही प्रवृत्ति है।

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