जब चार साल सरकार में रहे तब सब ठीक लग रहा था, अब जाने की बेला आई तो सरकार का भ्रष्टाचार दिख रहा है. कहीं राय जी का टिकट तो नहीं काटा जा रहा है. ये सरयू राय हैं, लोल्लो चप्पो नेता नहीं, लालू यादव और मधु कोड़ा को जेल भेजवाबे में ओकरा टाइमे नहीं लगा, इ रघुबर का चीज है जी.’
ये चर्चा मैंने बीते शनिवार को रांची के मोरहाबादी मैदान में दिशोम गुरू कहे जाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के आवास के ठीक सामने लगी चाय की दुकान पर सुनी. अचानक हुई बारिश की वजह से झारखंड का पारा गिर चुका था. सर्द हवाओं के बीच गरमा-गरम चाय और बढ़े राजनीतिक पारे पर लोग जोरदार चुस्की ले रहे हैं.
अपने राजनीतिक कैरियर में भ्रष्टाचार के मामले में अब तक बेदाग रहे सरयू राय ने अब सीएम रघुबर दास को निशाने पर ले लिया है. ऐसा वैसा नहीं, अवैध खनन घोटाले में कोर्ट में केस दर्ज करा दिया है और रघुबर और कुछ अधिकारियों को उसमें आरोपी भी बना दिया है.
बुधवार छह फरवरी को दिए एक साक्षात्कार में झारखंड सरकार के खाद्य आपूर्ति और सार्वजनिक मंत्री सरयू राय ने साफ कहा कि इस सरकार में अब उनका दम घुटता है. यहां रहने से शर्मिंदगी महसूस करते हैं. रघुबर दास की कार्यशैली ठीक नहीं है. अधिकारी सीएम के अलावा किसी और की सुनते ही नहीं. कई बार कई विभागों के भ्रष्टाचार को लेकर उन्हें पत्रों के माध्यम से जानकारी दी, लेकिन किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई.
वो यहीं नहीं रुके. उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को लेकर वह अगस्त 2017 में पीएम मोदी से भी मिले, उन्हें भी जानकारी दी. तो उन्होंने कहा कि मिलकर काम करना होगा, इस समस्या को बातचीत कर सुलझा लिया जाएगा. लेकिन अब तक ऐसा हुआ नहीं. अब वह इस्तीफा देने जा रहे हैं.
इधर विधानसभा सत्र चल रहा था. विपक्षी विधायक सरकार की मौज लेने लगे. किसी ने सरयू राय को आर-पार की लड़ाई की सलाह दी तो किसी ने कहा कि हमारे साथ आइए. बीजेपी घर की लड़ाई में उलझ चुकी है. प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ने सरयू के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि ‘सरकार को वरिष्ठ मंत्री की सलाह पर ध्यान देनी चाहिए थी. उनके सामने भी यह मुद्दा आया था, उन्होंने भी सरकार का ध्यान इस तरफ दिलाया था. लेकिन जब इंसान सुनेगा ही नहीं तो कोई क्या करेगा. अब अगर वह इस बात को लेकर दिल्ली चले गए तो इसमें कुछ गलत नहीं है.’
गुटबाजी का आलम देखिये प्रदेश प्रवक्ता प्रतुल शाहदेव कहते हैं कि ‘सरयू राय को अगर कोई परेशानी थी तो उन्हें पार्टी के फोरम पर रखना चाहिए था. न कि मीडिया के सामने. यह पार्टी के शिष्टाचार के तहत नहीं आता है.’ उन्होंने यह भी कहा कि किसी तरह का नीतिगत फैसला अगर सरकार लेती है तो वह कैबिनेट का फैसला होता है. सरयू राय कैबिनेट मंत्री रहे हैं, ऐसे में उनकी भी जिम्मेवारी उतनी ही बनती है, जितनी सीएम की.
इधर सरयू राय ने कहा कि वह एक शादी समारोह में शामिल होने दिल्ली गए थे. वहां उन्होंने पार्टी के कई नेताओं से मुलाकात की. उन्होंने बताया, ‘पार्टी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात नहीं हो सकी, ऐसे में मैं अपनी बात पत्र के माध्यम से उनके दफ्तर में छोड़ आया. पत्र में साफ लिखा है कि रघुबर दास की कार्यशैली बदलने वाली नहीं है. उनके अनुरूप ढलना मेरे लिए संभव नहीं है.’
पत्र में उन्होंने लिखा है ‘केंद्रीय और राज्य नेतृत्व के पास इसे हल करने का समय नहीं है. इसलिए केंद्रीय नेतृत्व के सामने असमंजस की स्थिति पैदा करने के बजाए स्वयं मंत्रीपरिषद से अलग होना ही विकल्प है. ऐसा कर रोज-रोज के विवाद और शर्मिंदगी से मुझे छुटकारा मिलेगा.’
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सरयू राय ने कहा है कि ‘लौह अयस्क अवैध खनन में जिस तरीके से कोड़ा काम करते थे, वह जेल गए, इसमें मेरा भी हाथ था, हमने सरकार से कहा कि हमारा रास्ता कोड़ा के रास्ते से अलग हो, नहीं तो वह भी जेल जाएंगे.’
ये वही सरयू राय हैं जिन्होंने चारा घोटाला उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी. सबूत जुटाने और उसे सीबीआई को सौंपने तक में कोई कसर नहीं छोड़ी. कोयला घोटाले में मधु कोड़ा को जेल भिजवाने में इनका योगदान रहा. इसके अलावा झारखंड विधानसभा में अवैध नियुक्ति घोटाला उजागर किया. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार का साल 2012 में हुए जमशेदपुर उपचुनाव के वक्त उग्रवादी गुट एमसीसी के संपर्क में रहने का ऑडियो टेप जारी किया था. ये मामला कोर्ट में है.
इसी सरकार में हुए कंबल घोटाले को उजागर किया, जिसमें झारखंड खादी बोर्ड की सीईओ को पद से इस्तीफा देना पड़ा. फिलहाल जांच जारी है. सारंडा में अवैध खनन आयरन और माइनिंग पर पीआईएल चल रही है. मोमेंटम झारखंड में हुए अतिरिक्त खर्च के वक्त भी इसपर आपत्ति जताई थी.
जानकार मानते हैं कि सरयू राय अगले विधानसभा चुनाव तक रघुबर दास की इमेज को पूरी तरह तोड़ देना चाहते हैं. अगर बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व सरयू की बातों से समहत होता है तो भी वह ऐसा करने में सफल होंगे, अगर नहीं होता है तो वह कोर्ट के माध्यम से ऐसा करने में सफल हो सकते हैं. पार्टी के अंदर बड़ी संख्या में कार्यकर्ता रघुबर की कार्यशैली से खुश नहीं है, यही वजह है कि कोई मंत्री, विधायक या आम कार्यकर्ता भी इस मसले पर रघुबर के समर्थन में बोलता नहीं दिख रहा है. अगर ऐसा हो गया तो विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी के पास चेहरा बदलने का ऑप्शन मौजूद होगा. लेकिन इसका सबसे अधिक फायदा अर्जुन मुंडा ही उठा पाएंगे.
अगर केंद्रीय नेतृत्व मुद्दा सुलझाने की बात कहता है और उन्हें इस्तीफा देने से रोकता है, तब आगे बढ़कर सरयू राय शायद ही इस्तीफा दे सकें. इधर बीजेपी की पूरी कोशिश रहेगी कि चुनाव के वक्त सरयू राय कुछ ऐसे रहोस्योद्घाटन न कर दें, जिससे बीजेपी को बैकफुट पर जाना पड़ जाए. इन सबके बीच बीजेपी के लिए राहत बात इतनी भर है कि सभी विपक्षी पार्टियां लोकसभा चुनाव को लेकर सीटों के बंटवारे में फंसी है. इस मुद्दे को लेकर सिवाय ट्वीट के हेमंत सोरेन सहित अन्य विपक्षी नेताओं ने कुछ खास नहीं बोला है.
(एक ब्लाग से साभार)