अरुण कुमार चौधरी
रांची : इस समय पूरे देश में सरकार के नाकामी के कारण झारखंड पूरी तरह से बदनाम हो गई है। इस समय टीवी चैनलों से लेकर संसद तक केवल झारखंड के मॉब लिंचिंग की ही सरेआम चर्चा हो रही है और इस चर्चा में जहां एक ओर संसद में प्रतिपक्ष नेता गुलाम नबी आजाद ने पूरी जोर-शोर के साथ झारखंड के मॉब लिंचिंग पर अपनी बातों को रखा और कहा कि झारखंड में मॉब लिंचिंग का अड्डा बन गया है। वहीं दूसरी ओर प्रधानमंत्री मोदी ने मॉब लिंचिंग की घटनाओं को शर्मनाक बताया तथा खुलेआम आरोपियों को सजा दिलाने के पक्ष में बयान दिये। इसके साथ-साथ उन्होंने आगे कहा कि इस घटना से झारखंड को बदनाम नहीं करना चाहिए। इसके साथ-साथ राज्य के मंत्री सीपी सिंह ने कहा कि इस घटना की पूरी जांच होनी चाहिए तथा इस घटना से ऐसा लगता है कि कुछ लोग हिंदू संगठनों को बदनाम करने पर लगे हुये हैं। इस संबंध में विभिन्न पत्रकारों तथा चैनलों की राय निम्न है- दप्रिंट में लिखा है कि आदिवासी अस्मिता के लिए प्रसिद्ध राज्य झारखंड की इन दिनों अखबारों और चैनलों में सबसे ज्यादा चर्चा ‘मॉब लिंचिंग’ की लगातार हो रही घटनाओं के कारण हो रही है। पिछले तीन वर्षों में यहां लिंचिंग की कुल 18 घटनाएं हो चुकी हैं। भीड़ की हिंसा के शिकार होने वालों में चार हिंदू भी हैं। मारे गये 11 लोग मुस्लिम समुदाय के, दो ईसाई आदिवासी और एक दलित समुदाय के थे। झारखंड की घटनाओं का अब इतना असर है कि संसद में ये मामला उठ चुका है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी घटना पर दुख जता चुके हैं। हालांकि, उनका कहना है कि इसकी वजह से पूरे झारखंड राज्य को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए। पूरे मामले में जो चौंकाने वाली बात है, वह यह कि इन 18 मामलों में से आठ पूर्वी सिंहभूम के हैं। ताजा तरीन घटना, जिसमें तबरेज अंसारी मारा गया, बगल के सरायकेला खरसावां क्षेत्र का है। ये पूरा इलाका भाजपा के शीर्ष नेताओं का राजनीतिक क्षेत्र रहा है। वर्तमान मुख्यमंत्री रघुवर दास, पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा आदि इसी इलाके के हैं। अब यदि इसे सिर्फ कानून व्यवस्था का ही प्रश्न मान लिया जाए, जैसा कि बीजेपी के नेता चाहते हैं, तो भी यह निराश करने वाली स्थिति है कि मुख्यमंत्री के अपने क्षेत्र में कानून की धज्जियां लगातार उड़ रही हैं और वहां सड़कों पर भीड़ तंत्र हावी है। झारखंड की छवि आदिवासी बहुल प्रदेश की है। यही इस राज्य के गठन का आधार भी बना था। हालांकि, 2011 की जनगणना के मुताबिक झारखंड में अब सिर्फ 26 परसेंट आदिवासी रह गए हैं। फिर भी कई लोगों को लगता है कि झारखंड के आदिवासी इन हिंसक घटनाओं में लिप्त हैं। इन घटनाओं के ब्योरे में जाने पर ये तथ्य सामने आता है कि मॉब लिंचिंग की इन घटनाओं में सामान्यत: आदिवासियों का हाथ नहीं होता। मसलन, तबरेज अंसारी की बर्बर पिटाई, जिसके बाद उनकी मौत हो गई, के मामले में अब तक गिरफ्तार लोगों के नाम हैं झ्र भीमसेन मंडल, प्रेमचंद महली, कमल महतो, सोनामो प्रधान, सत्यनारायण नायक, सोनाराम महली,चामू नायक, मदन नायक, महेश महली और सुमंत महतो। एक अन्य अभियुक्त प्रकाश मंडल उर्फ पप्पू मंडल की गिरफ्तारी पूर्व में हो चुकी है। यहां इन नामों को देने का उद्देश्य यह बताना है कि मॉब लिंचिंग की घटनाओं में शामिल अभियुक्तों का सामाजिक आधार क्या है। इसके पूर्व गुमला की मॉब लिंचिंग घटना में, जिसमें एक ईसाई आदिवासी मारा गया, गैर-आदिवासी समुदाय के लोग अभियुक्त बनाये गये थे। गुमला की घटना एक मरे हुए बैल को लेकर हुई थी। झारखंड में गैर-आदिवासियों में भाजपा का असर तेजी से बढ़ा है। पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा को झारखंड में विशाल जीत दिलाने में इसी समुदाय का योगदान है। आरोप यह लगाया जाता है कि पुलिस प्रशासन इस तरह के मामलों में केस कमजोर बनाती है और अभियुक्त सजा पाने से बच जाते हैं। झारखंड में भाजपा के शीर्ष नेता जयंत सिन्हा ने तो रामगढ़ के अलीमुद्दीन लिंचिंग केस के आठ मुजरिमों को, जिन्हें निचली अदालत से सजा हो चुकी है, मालाएं पहनाकर काफी विवाद खड़ा कर दिया था। इस मामले में भी कोई आदिवासी शामिल नहीं था। झारखंड में मॉब लिंचिंग की दो तरह की घटनाएं हुई हैं। इसमें पहली श्रेणी में वे घटनाएं हैं, जिनकी वजह बच्चा चोरी के अफवाह थी। ऐसी तमाम घटनाओं में मारे गए लोग हिंदू समुदाय से थे। मुस्लिम समुदाय के लोग गोकशी, गोमांस, या सांप्रदायिक नफरत आदि मामलों में हिंसा के शिकार हुए। तबरेज की पिटाई का कारण कथित रूप से चोरी था। इसमें सबसे अहम मसला यह है कि मॉब लिंचिंग के हर मामले में प्रशासन और स्थानीय मीडिया ने भी बहस की दिशा यह तय की कि हिंसा का शिकार व्यक्ति प्रतिबंधित मांस रख रहा था, मांस खा रहा था, मांस लेकर यात्रा कर रहा था, या फिर वह चोरी करता पकड़ा गया या नहीं। मानो ऐसा करने वालों को भीड़ सड़क पर पकड़ कर पीट या मार सकती है। इनमें से किसी की चिंता के दायरे में ये बात नहीं है कि देश के लोकतंत्र पर भीड़तंत्र हावी होता जा रहा है। भीड़ कानून को अपने हाथ में लेकर सजा सुना भी रही है और सजा पर अमल भी कर रही है। यह कानून के शासन का अंत है। तबरेज वाले मामले में भी इस बात को चर्चा में बनाये रखा जा रहा है कि वह और उसके दो साथी 17-18 जून की रात सरायकेला थाना क्षेत्र के धतकीडीह में चोरी की नीयत से मोटर साइकल से पहुंचे थे। ग्रामीणों ने देख लिया तो शोर >> शेष पेज 5 पर
मचा। तीनों में से दो भाग गये और तबरेज पकड़ा गया। रात भर उसकी पिटाई हुई। पिटाई के वक्त का वीडियो वायरल हुआ है, जिसमें यह देखा गया कि उसे बर्बरता से पीटने वाले उस पर ‘जय श्रीराम’ का नारा लगाने का दबाव डाल रहे हैं। जबकि, तबरेज की विधवा कह रही है कि उसका पति वेल्डर था और पूना शहर में काम करता था। ईद के अवसर पर वह यहां आया और भीड़ के हाथों पीटा गया और पुलिस हिरासत में उसकी मौत हो गई। इस पूरे प्रकरण में पुलिस की भूमिका भी विवादों के दायरे में है। पुलिस का कहना है कि सिपाहियों ने तबरेज भीड़ के चंगुल से निकाला और प्राथमिक उपचार कराया। उसके पास से चोरी का वाहन और कुछ अन्य सामान बरामद हुए। जिला अस्पताल में उसका उपचार कर उसे न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया। 22 जून की सुबह अचानक उसकी तबीयत खराब हो गई और अस्पताल पहुंचने से पहले उसकी मौत हो गई। तबरेज की पत्नी ने एफआईआर में आरोप लगाया कि उसकी मौत भीड़ की पिटाई से हुई। फिलहाल इस मामले में दो पुलिसकर्मी लापरवाही बरतने और उच्चाधिकारियों को सूचना न देने के आरोप में निलंबित किए गए हैं। सवाल उठता है कि क्या झारखंड में ये घटनाएं प्रशासन की मर्जी के खिलाफ हो रही हैं या फिर इनके पीछे प्रशासन की शह है? अगर इन घटनाओं को प्रशासन रोकना चाहता है और इसके बावजूद ये घटनाएं नहीं रुक रही हैं, तो इसका मतलब है कि झारखंड में कानून का राज कमजोर पड़ा है। यह एक चिंताजनक बात है। अगर इन घटनाओं का मकसद इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले समाज में ध्रुवीकरण पैदा करना है, तो और भी चिंताजनक है। वहीं वेब दुनिया के अनुसार गोस्वामी तुलसीदास ने कहा है- सिया राम मय सब जग जानी, करहु प्रणाम जोरी जुग पानी। अर्थात प्राणिमात्र में भगवान जानकर उन्हें प्रणाम करना चाहिए। वर्तमान संदर्भ में देखें तो जय श्रीराम उद्घोष के अर्थ ही बदल गए हैं। सांसदों की शपथ के समय भी लोकसभा में जय श्रीराम का नारा गूंजा और झारखंड में सड़क पर भी। लेकिन, बदनामी तो राम की ही हुई। हालांकि तुलसी के राम मर्यादित आचरण करते हैं, वे योद्धा हैं फिर भी सौम्यता की मूर्ति हैं। दूसरी ओर आज के दौर में रामभक्तों का जो रूप सामने आ रहा है, वह कहीं भी आततायी रावण को वध करने वाले राम से तो बिलकुल भी मेल नहीं खाता। पिछले दिनों संसद में भी जब एमआईएम सांसद और मुस्लिम नेता असदुद्दीन ओवैसी शपथ ले रहे थे तब भी लोकसभा में जयश्रीराम के नारे गूंजे थे। संसद में तो खैर राम के नाम से कटाक्ष किया गया, लेकिन सड़क पर जय श्रीराम के नारों के उद्घोष के बीच एक व्यक्ति को इतना पीटा गया कि गंभीर हालत में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। मामला झारखंड का है, जहां 18 जून को एक मुस्लिम युवक की 18 घंटे तक बुरी तरह पिटाई की गई, जिसकी 22 जून शनिवार को इलाज के दौरान मौत हो गई। भीड़ ने चोरी के शक में तबरेज अंसारी नामक इस युवक पर हमला किया था, जो कि ईद मनाने के लिए महाराष्ट्र से अपने गांव खरसवां पहुंचा था। सवाल यह भी क्या किसी को चोरी के शक में इस हद तक पीटा जाए कि उसकी मौत हो जाए। यदि मान भी लिया जाए कि उसने चोरी की थी तो उसे पुलिस के हवाले किया जाना चाहिए था कि पुलिस जांच कर उसे सजा दिलवाती, मगर दुर्भाग्य से ऐसा कुछ नहीं हुआ, भीड़ ने ऑन द स्पॉट अपना फैसला कर लिया। इतना ही नहीं भीड़ ने युवक से जय श्रीराम और जय हनुमान के नारे भी लगवाए। तबरेज ने भीड़ के दबाव में जय श्रीराम के नारे भी लगाए, लेकिन भीड़ ने उसे बख्शा नहीं, पीटना जारी रखा। उसे गालियां भी दी गईं। अंसारी की कुछ समय बाद शादी भी होने वाली थी। राम भी इस तरह की घटनाओं से खुश नहीं होंगे। उन्होंने तो वनवासी शबरी के जूठे बेर खाने में भी संकोच नहीं किया था साथ ही शत्रु के भाई विभीषण को भी गले लगा लिया था। हकीकत में, इस तरह की घटनाओं को अंजाम देकर ये तथाकथित और स्वयंभू रामभक्त राम को ही बदनाम कर रहे हैं। वहीं स्थानीय दैनिक का कहना है कि मॉब लिंचिंग की तथाकथित घटना में युवक तबरेज अंसारी की मौत के बाद सुर्खियों मे आए सरायकेला के धातकीडीह और कदमडीहा गांव में अचानक हलचल तेज हो गई है। तबरेज के गांव कदमडीहा में जहां मौत के बाद पसरे मातमी सन्नाटे को रह-रहकर नेताओं की आमद चीरती है, वहीं पहरे में तैनात पुलिसकर्मियों के बूटों की आवाज भी लोगों को तसल्ली देती है कि अब कुछ बुरा नहीं होगा। उधर तबरेज की मौत के घटनास्थल धातकीडीह गांव में 11 लोगों की गिरफ्तारी के बाद लोग दहशत के साये में हैं। धातकीडीह वहीं गांव है, जहां 17 जून की रात ग्रामीणों ने बाइक चोरी के इल्जाम में भीड़ ने आठ किलोमीटर दूर कदमडीहा गांव के रहनेवाले तबरेज अंसारी की खंभे से बांध कर पिटाई कर दी। बाद में 22 जून को जेल में उसकी मौत हो गई। यहां पुलिस की कार्रवाई और गिरफ्तारी के डर से जहां पुरुष सदस्य घर छोड़ भाग खड़े हुए हैं वहीं बच्चे स्कूल नहीं जा रहे। घर से बाजार जाने के लिए भी लोग मारे डर के नहीं निकल रहे हैं। तबरेज की मौत की बुरी खबर ने जहां इन गांवों को चर्चा में ला दिया है। वहीं इस घटना ने दोनों गांवों के लोगों का सुख-चैन भी छीन लिया है। गांवों में कायम भाईचारे और गंगा-जमुनी तहजीब के बीच भी इस घटना ने फिलहाल लकीर खींच रखी है। इन गांवों के लोग अब पुलिस की पहरेदारी में सांस ले रहे हैं। दोनों गांव अभी सहमे-सहमे हैं। घटनाएं बड़ा सबक दे गईं, अब जिंदगी के पटरी पर लौटने का इंतजार है।
ल्ल हाईकोर्ट की निगरानी में हो जांच, रासुका के तहत हो कार्रवाई : उधर, कदमडीहा गांव में भी तबरेज की मौत से हर ग्रामीण सहमा नजर आ रहा है। कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं। गम व गुस्से के बीच चारों तरफ अजीब-सा सन्नाटा पसरा है। तबरेज अंसारी की पत्नी शाइस्ता और अन्य परिजन से मिलने जब नेताओं की टोली यहां आती है तो सन्नाटा थोड़ी देर के लिए टूटता है। तबरेज के चाचा मशरूर आलम पूछने पर कहते हैं, हमें इंसाफ होना चाहिए। हाईकोर्ट की निगरानी में मामले की जांच हो। दोषियों पर रासुका के तहत राज्य सरकार कार्रवाई करे, ताकि फिर ऐसी घटना किसी के साथ नहीं हो।
ल्ल तबरेज की पत्नी को दिल्ली वक्फ बोर्ड में नौकरी का आश्वासन : अमानतुल्लाह और प्रतापगढ़ी ने कदमडीहा गांव जाकर तबरेज की पत्नी व परिवार से मुलाकात की। साथ ही आर्थिक मदद के रूप में पांच लाख रुपए का चेक भी दिया। यह भी कहा कि शाइस्ता को दिल्ली वक्फ बोर्ड में नौकरी दी जाएगी। उसके रहने की भी व्यवस्था की जाएगी। उन्होंने कहा कि देश में मॉब लिंचिंग की घटनाएं बढ़ी हैं। केंद्र सरकार को इस पर सख्त कानून बनाना चाहिए। तबरेज को चोर बताने पर आपत्ति जताते हुए कहा किसी को पीटकर मारने के बाद चोरी का आरोप मढ़ना ठीक नहीं है। झारखंड सरकार मामले की निष्पक्ष जांच कराए।
24 घंटे पुलिस का पहरा खौफ का पसरा है साया
जिला मुख्यालय सरायकेला से 12 किमी दूर उकरी खरसावां रोड से सटे धातकीडीह गांव में शुक्रवार सन्नाटा पसरा दिखा। सड़क सुनसान। गांव के लगभग तमाम घरों में ताले लटके हैं। सड़क पर इक्का-दुक्के वाहन गुजर रहे हैं। गांव के सरायकेला वाले छोर पर बैरियर लगा है, जहां झारखंड पुलिस के एक एएसआइ और चार सिपाहियों के साथ एक दंडाधिकारी भी तैनात हैं। गांव के खरसावां वाले छोर पर भी बैरियर लगा है, यहां सैप के छह जवान और एक एएसआइ तैनात है। वाहनों को जांच-पड़ताल के बाद ही अंदर जाने दिया जा रहा है। दोनों बैरियर पर 24 घंटे पुलिस तैनात रहती है। बावजूद इसके, गांव का हर खास-ओ-आम खौफजदा है। उन्होंने बताया कि गांव गिरफ्तारी के भय से पुरुषों ने गांव छोड़ दिया है। अभी उनसे बात हो ही रही थी कि बगल के घर की एक खिड़की खुली और अनजान चेहरा देखकर तुरंत बंद हो गई। उनके घर के चार घर बाद दो महिलाएं दिखीं। जैसे ही बात करने के लिए उनकी ओर बढ़े, वह भी घर में घुसने लगीं। बड़ी मशक्कत के बाद संध्या महतो और सावित्री देवी बात करने के लिए राजी हो गईं। बहुत कुरेदने पर उन्होंने बताया कि 17 जून को चोरी करते रंगे हाथ पकडऩे पर लोगों ने तबरेज को पीटा था, लेकिन इतना नहीं पीटा था कि मौत हो जाए। बाद में घटना के तीन दिन बाद कैसे मौत हो गई, भगवान जाने।
डेढ़ माह में ही उजड़ गई शाइस्ता की दुनिया, अब गम का ही साथ
तबरेज की पत्नी शाइस्ता घटना के कई दिनों बाद भी अभी सदमे से नहीं उबर पाई है। हाल ही में सुहागन बनी शाइस्ता की ब्याह के डेढ़ महीने बाद ही मांग उजड़ गई। सास व ससुर पहले ही गुजर चुके थे। चाचा मशरूर आलम की गोद में खेलकूद कर बड़ा हुआ पति तबरेज अंसारी भी साथ छोड़ गया। पूरी जिंदगी अब किसके सहारे काटेगी, यह चिंता न केवल उसे बल्कि मां को भी खाए जा रही है। मां की आंखों में बेटी का गम साफ छलक रहा है। वहीं दूसरी ओर एक स्थानीय एक दैनिक ने लिखा है कि सरायकेला के धातकीडीह में मॉब लिंचिंग में मारे गए तबरेज अंसारी की पत्नी शाइस्ता परवीन के खाते से उसके चाचा ससुर मो. मशरूर ने 7 लाख रुपए निकाल लिए। ये राशि विभिन्न संस्थाओं और सामाजिक संगठनों ने पीड़ित परिवार को मदद के रूप में दी थी। शाइस्ता के खाते में कुल 27 लाख जमा कराए गए हैं। इसका खुलासा दिल्ली वक्फ बोर्ड के चेयरमैन अमानतुल्लाह और इमरान प्रतापगढ़ी ने किया है। दोनों शुक्रवार को पीड़ित परिवार से मिलने सरायकेला गए थे। उन्होंने बताया कि मशरूर ने शाइस्ता के खाते से पहले दो लाख नकद निकाले। उसके बाद चेक के माध्यम से पांच लाख रुपए निकालकर अपने खाते में डाल दिए। रिश्तेदारों और लोगों के दबाव पर मशरूर ने पैसे वापस शाइस्ता के खाते में डाले।