एकनाथ शिंदे आखिर क्‍यों हुए उद्वव ठाकरे से नाराज !

व्यूरो
मुंबई: महाराष्‍ट्र की तीन पहियों की महाअघाड़ी सरकार पर एक बार फिर संकट के बाद मंडरा रहे हैं। इस बार सत्‍ता पर काबिज मुख्‍यमंत्री उद्धव ठाकरे की ही शिवसेना पार्टी के नेता और मंत्री एकनाथ शिंदे ने बगावती तेवर दिखा दिए हैं। वो महाराष्‍ट्र के कई विधायकों के साथ सूरत के होटल में हैं और शिवसेना द्वारा किए जा रहे किसी फोन का जवाब नहीं दे रहे । बियर बॉर में काम करके और एक ऑटोरिक्शा चलाकर कभी जीवन यापन करने वाले शिंदे वर्तमान समय में ठाकरे परिवार के बाद शिवसेना के सबसे शक्तिशाली नेताओं में से एक बन चुके हैं। आखिर अब ऐसा क्‍या हुआ कि उद्धव ठाकरे के सबसे करीबी नेता एकनाथ शिंदे कई विधायकों के साथ संपर्क से दूर रहने के बाद अब पार्टी को विभाजित करने और सरकार को गिराने के लिए तैयार हैं।

वापसी मूल रूप से महाराष्‍ट्र के सतारा के रहने वाले शिंदे का परिवार 1970 के दशक में ठाणे चला आया था तब एकनाथ शिंदे बहुत छोटे थे। परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए छोटे-छोटे काम करने के बाद, वह 1980 के दशक में शिवसेना में शामिल हो गए। शिंदे 1997 में उन्होंने अपने गुरु आनंद दिघे की बदौलत ठाणे नगर निगम में एक सीट जीती, जिन्होंने न केवल उन्हें राजनीतिक रूप से ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत रूप से भी मदद की है। जब शिंदे ने अपने दो बच्चों को डूबने के कारण खो दिया, तब दिघे ही उनके साथ खड़े थे और उन्हें राजनीति में लौटने के लिए राजी किया।
2001 में दीघे के निधन के बाद, शिंदे ठाणे इकाई की देखभाल करते थे। 2004 में, वह कोपरी-पछपाखडी सीट जीतकर विधायक बने। उन्होंने लगातार चार बार उस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। बाल ठाकरे की मृत्यु और उद्धव ठाकरे के उदय के बाद, शिंदे जैसे कई लोग पार्टी में मजबूत हो गए क्योंकि पुराने गार्ड यानी राजठाकरे को दरकिनार कर दिया गया था। जब शिवसेना और भाजपा के बीच मतभेद हुआ, तो शिंदे ने ही दोनों दलों के बीच चीजों को सुधारने में मदद की। बाद में वह देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व वाली भाजपा-शिवसेना सरकार में लोक निर्माण विभाग मंत्री बने।
2019 में विधानसभा चुनाव के बाद सरकार बनाने के समय जब शिवसेना ने भाजपा को छोड़ दिया और राकांपा और कांग्रेस के साथ मिलकर महाअघाड़ी सरकार बनाई, तो शिंदे ने नाराजगी व्यक्त की। उसके बाद से लगातार शिंदे के कई बार विचार, बयान और तेवर खिलाफत वाले नजर आते रहे हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार एकनाथ शिंदे भी उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभालने और अपने बेटे को सरकार और पार्टी दोनों में बढ़ावा देने से नाखुश थे, जो उद्धव ने किया था वो बाल ठाकरे के कार्यों के विपरीत था। शिवसेना संस्‍थापक बाल ठाकरे जिन्होंने कभी सरकार में कोई पद नहीं लिया।

एकनाथ शिंदे के अचानक ऐसे बगावती तेवर और नाराजगी का एक और कारण यह भी हो सकता है कि शिंदे ने अकेले नगर निगम चुनाव लड़ने की सलाह शिवसेना पार्टी को दी थी लेकिन उनके इस सुझाव को खारिज कर दिया कि पार्टी ठाणे नगर निगम चुनाव अकेले लड़ती है। उन्हें बताया गया था कि पार्टी एनसीपी और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ेगी।

Related posts

Leave a Comment