वायनाड आज किसे चुनेगा, राष्ट्रवाद नहीं, किसानों का कर्ज और रोजगार बड़े मुद्दे

Who will choose Wayanad today, not nationalism, farmers' debt and employment big issues

News Agency : केरल की वायनाड सीट लोकसभा चुनाव के अपने इतिहास में पहली बार इतनी सुर्खियों में है। कारण हैं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी। आज पहली बार यहां की जनता उन्हें कसौटी पर तोलेगी और फैसला ईवीएम में बंद करेगी। राहुल के यहां से लड़ने से भले ही चुनावी पारा चरम पर हो मगर मुद्दे किसानों का कर्ज, बेहाल खेती और बेरोजगारी ही हैं। नीति आयोग की one hundred fifteen सबसे पिछड़े जिलों की सूची में केरल से सिर्फ वायनाड ही शामिल है। राष्ट्रवाद यहां इतना बड़ा मुद्दा नहीं है।

कांग्रेस दावा करती है कि 2009 और 2014 के बाद इस बार पार्टी जीत की हैट्रिक लगाएगी। वहीं, वाम दलों का कहना है कि पिछले चुनाव में उनका वोट प्रतिशत सात फीसदी बढ़ा था जबकि कांग्रेस का आठ फीसदी कम हो गया था। ऐसे में उन्हें कम आंकना गलती होगी। मगर जनता का मिजाज क्या है? …जो हमारा कर्ज माफ करा दे हम उसी को वोट देंगे। कलपेट्ट में बस अड्डे पर एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति के. प्रकाश का मलयालम में यह जवाब वहां के किसानों की हालत को बयां कर गया। वायनाड में काली मिर्च की खेती करने वाले संदीपन के ऊपर तीन लाख का कर्ज है। वह कहते हैं कि अब भी गुजारा करने लायक आमदनी नहीं हो रही। उनके साथ मौजूद उन्नीकृष्णन चेहरे पर उम्मीद के भाव लाते हुए कहते हैं, राहुल गांधी की सरकार आई तो हमें कुछ तोहफा देंगे ही। पर वह यह कहना नहीं भूले कि ten सालों से यहां कांग्रेस के सांसद जीत रहे हैं मगर जिले में कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखा।

वायनाड लोकसभा सीट 2009 में अस्तित्व में आई थी। यहां ninety फीसदी आबादी खेती पर निर्भर है। पिछले एक साल में यहां आधा दर्जन किसान आत्महत्या कर चुके हैं देश के सबसे ज्यादा साक्षरता दर वाले राज्य में वायनाड के लोगों के लिए राष्ट्रवाद की परिभाषा जरा अलग है। पुलवामा के बाद भारत के पाक में हवाई हमले का कितना असर मानते हैं? पुलवामा हमले में शहीद वायनाड के वसंथ कुमार के गांव लक्किडी के वी सुरेश का जवाब उम्मीद से अलग था। वह कहते हैं राष्ट्र के लोगों को रोजगार मिले, भोजन और स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें, यही असली राष्ट्रवाद है। सेना किसी राजनीतिक दल के लिए काम नहीं करती। उसे राजनीति में शामिल न करें तो बेहतर है। उनकी इस बात से स्पष्ट था कि रोजगार यहां बहुत बड़ा मुद्दा है। जिले में nineteen आबादी जनजातियों की है। इनके पास घर और बेहतर स्वास्थ्य और पोषण सुविधाओं की भारी कमी है। इन जनजातियों के युवाओं को रोजगार सबसे बड़ी समस्या लगता है। मानंतवाड़ी कस्बे के एक गांव में रहने वाले लोगों का कहना है कि उनके क्षेत्र के अधिकतर युवा बेरोजगार हैं। पास के शहरों में भी काम नहीं मिल रहा। पर्यटन का व्यवसाय भी बेहतर नहीं चल रहा। इस वजह से कहीं भी काम नहीं है। यहां पयर्टन रोजगार का बड़ा जरिया रहा है। कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के यहां मैदान में होने से लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं।

सेना किसी राजनीतिक दल के लिए काम नहीं करती। उसे राजनीति में शामिल न करें तो बेहतर है। उनकी इस बात से स्पष्ट था कि रोजगार यहां बहुत बड़ा मुद्दा है। जिले में nineteen आबादी जनजातियों की है। इनके पास घर और बेहतर स्वास्थ्य और पोषण सुविधाओं की भारी कमी है। इन जनजातियों के युवाओं को रोजगार सबसे बड़ी समस्या लगता है। मानंतवाड़ी कस्बे के एक गांव में रहने वाले लोगों का कहना है कि उनके क्षेत्र के अधिकतर युवा बेरोजगार हैं। पास के शहरों में भी काम नहीं मिल रहा। पर्यटन का व्यवसाय भी बेहतर नहीं चल रहा। इस वजह से कहीं भी काम नहीं है। यहां पयर्टन रोजगार का बड़ा जरिया रहा है। कांग्रेस के सबसे बड़े नेता के यहां मैदान में होने से लोगों की उम्मीदें बढ़ी हैं।

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